नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद सरकार हर बैंक अकाउंट को ट्रैक कर रही है जिससे कि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को टैक्‍स के दायरे में लाया जा सके। इनकम टैक्‍स विभाग को ऐसे आंकड़े मिले हैं जिससे पता चलता है कि बड़े पैमाने पर लोग टैक्‍स के दायरे में आते हैं लेकिन वे वाजिब टैक्‍स का भुगतान नहीं कर रहे हैं।

आयकर विभाग ने बैंकों से उन सभी खातों की जानकारी मांगी है जिनमें एक साल में 10 लाख रुपये या अधिक कैश जमा हुए हैं। अगर यह रकम कई बार में जमा की गई है तो भी बैंकों को इसकी सूचना देनी पड़ेगी। किसी ने करंट अकाउंट में साल भर में 50 लाख या ज्यादा जमा किए या निकाले हैं तो भी इसकी सूचना विभाग को जाएगी।

किसी चीज या सेवा की खरीद के बदले किसी ने 2 लाख रुपये से ज्यादा का नगद भुगतान किया है तो पैसे लेने वाला इसके बारे में विभाग को बताएगा। सीबीडीटी ने 17 जनवरी को इसके बारे में नोटिफिकेशन जारी किया। खातों में 1 अप्रैल से 30 दिसंबर 2016 तक जमा की जानकारी 31 जनवरी 2017 तक देनी होगी। 31 मार्च 2017 तक जमा होने वाले पैसों की रिपोर्टिंग के लिए 31 मई तक का वक्त दिया गया है।

आयकर विभाग ने नोटबंदी के बाद कोऑपरेटिव बैंकों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी का पता लगाया है। उसने रिजर्व बैंक को इसकी सूचना दी है। विभाग की रिपोर्ट में मुंबई और पुणे के दो बैंकों का भी उल्लेख है। नोटबंदी के बाद इनके पास 500/1000 रुपये के जितने पुराने नोट जमा हुए,  इन्होंने आरबीआई को उससे 113 करोड़ रुपये ज्यादा बताए। बाद में ये बैंक इतना कालाधन जमा लेने वाले थे।

आयकर विभाग की जांच में पाया गया कि पुणे के कोऑपरेटिव बैंक ने रिजर्व बैंक को 242 करोड़ रुपये के पुराने नोट जमा होने की जानकारी भेजी थी। लेकिन इसके स्टॉक में सिर्फ 141 करोड़ रुपये मिले। बैंक ने 101.07 करोड़ रुपये ज्यादा दिखाए।

इसी तरह मुंबई के बैंक ने 11.89 करोड़ रुपये ज्यादा दिखाए। राजस्थान के अलवर में एक कोऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर ने 90 फर्जी नामों से कर्ज ले लिया। उसने पुराने नोटों से वे कर्ज लौटा दिए।

30 लाख या अधिक की प्रॉपर्टी खरीदने पर प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार आयकर विभाग को बताएगा। क्रेडिट कार्ड का एक लाख रुपये का बिल कैश जमा करवाया हो। क्रेडिट कार्ड का 10 लाख या अधिक का बिल किसी भी तरीके से चुकाया हो।

9 नवंबर से 30 दिसंबर तक करंट अकाउंट में 12.50 लाख या ज्यादा जमा। इसी अवधि में बचत खातों में 2.50 लाख या ज्यादा जमा। 10 लाख कैश देकर ड्राफ्ट या पे-ऑर्डर बनवाया हो। 10 लाख या ज्यादा की एफडी। कई एफडी हैं तो सबका योग। रिन्युअल शामिल नहीं।

10 लाख रुपये के बांड,  डिबेंचर, खरीदता है तो बांड या डिबेंचर जारी करने वाली कंपनी या संस्‍थान को इस बारे में सूचना देनी होगी। इसके अतिरिक्त शेयर और म्‍यूचुअल फंड खरीदने वालों के लिए भी यह लिमिट काम करेगी।