निशा शर्मा।

हिमाचल की सियासत कांगड़ा ही तय करता है। कहा जाता है कि जिस पार्टी ने कांगड़ा पर फतह हासिल कर ली, वह हिमाचल पर पांच साल के लिए राज करता है। 15 विधानसभा वाली सीटों वाले कांगड़ा को ‘राजाओं की कर्मभूमि’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस शहर को महमूद गजनवी ने लूटा था और यहां के मशहूर ब्रजेश्वरी मंदिर को तबाह कर दिया था। राजनीतिक रूप से यह ओबीसी बहुल क्षेत्र है, क्षेत्र की यह परंपरा रही कि यहां जाति समीकरण हमेशा फिट बैठते हैं। जिसकी वजह से कोई बड़ी पार्टी पिछले दो दशक से यहां काबिज नहीं हो पाई है। यहां पड़ताल करते वक्त पाया कि ऊना जिला में जहां बाहरी सड़कें शहरों को मात दे रही थीं वहीं कांगड़ा जिले के देहरा में उलट था। यहां की सड़कें टूटी-फूटी हैं, रास्ते तंग हैं। देहरा निवासी राजेन्द्र कहते हैं कि, ‘‘यहां सड़कें और केंद्रीय विश्वविद्यालय एक मुख्य मुद्दा है। जैसे ही चुनावों की घोषणा हुई है जल्दबाजी में एक किराये के मकान में विश्वविद्यालय की कक्षाएं बिठा दी गई। शुरू से कहा गया था कि देहरा में यह विश्वविद्यालय बनना था लेकिन बीजेपी के विधायक इसे देहरा नहीं ला पाए या कहें कांग्रेस ने आने नहीं दिया।’’ यह विश्वविद्यालय कागजों में देहरा के नाम था अब धर्मशाला में कांग्रेस के विधायक हैं तो वह इस विश्वविद्यालय को वहां ले गए हैं। हालांकि अभी शाहपुर के लोग मांग कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय वहां बने। अब तो सिर्फ सरकारों का खेल है। यहां बीजेपी के उम्मीदवार रविन्दर सिंह रवि हैं, जिन्होंने इलाके में ज्यादा कोई काम नहीं किया है। वह पानी की समस्या भी हल नहीं कर पाए हैं। हम शुरू से मांग करते आ रहे हैं कि देहरा जिला बनना चाहिए। अभी यह कांगड़ा की सबसे बड़ी तहसील है जो 1857 में बनी थी। छोटी-छोटी तहसीलों में इसे बांट दिया गया है वरना इससे बड़ी तहसील हिमाचल में नहीं थी। देहरा में बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। यहां कोई इंडस्ट्री नहीं है जिससे लोगों को नौकरी मिले। लोग परवाणु जैसी जगहों पर जाते हैं। राजा जी (मुख्यमंत्री वीरभद्र) ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में कॉलेज तो नहीं दिया लेकिन डिग्री कॉलेज का तोहफा देहरा के लोगों को दे दिया है।

 कांगड़ा में पानी की बड़ी समस्या है। यहां के कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री ने कांगड़ा को विकास के लिए ज्यादा पैसा दिया ही नहीं जिसमें शाहपुर, देहरा, नूरपुर जैसे इलाके विकास से वंचित रह गए। कुछ लोग कहते हैं कि यहां का सारा पैसा धर्मशाला, नगरोटा जैसी जगहों पर दे दिया गया। इस वजह से उन जगहों पर तो लोगों को काफी सुविधाएं हो गईं, लेकिन हमारी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। कागंड़ा के नूरपुर, जवाली, जयसिंहपुर, जसमा, परागपुर, देहरा, जैसी जगहों को कांग्रेस ने अनदेखा किया है। उसका असर इस बार चुनाव में देखने को मिल सकता है। लोगों की कही बात को जांचने के लिए हमने धर्मशाला का रुख किया जहां से कांग्रेस के उम्मीदवार सुधीर शर्मा विधायक ही नहीं मंत्री भी हैं। सुधीर शर्मा के इलाके में बड़ी-बड़ी सड़कें हैं। लोगों का कहना है कि कांग्रेस के इस मंत्री ने काम किया है। चाय की एक छोटी-सी दुकान पर जमा लोगों ने कहा कि कांग्रेस ने यहां काम किया है। एक सदस्य को मैंने जब अपने साथ चलने को कहा कि वह यहां के गांव दिखाए तो वह हमें एक किलोमीटर ऊपर गांव में ले गया। वह रास्ते में बताने लगा कि पहले यहां सलेट की खदान बंद कर दी गई थी, लेकिन सुधीर शर्मा ने उसे खुलवा दिया, जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिल गया है। गांव में मिस्त्री का काम करने वाले एक सज्जन ने कहा कि, ‘‘यहां रोजगार नहीं है, सड़कें जरूर बड़ी हैं पर वे सड़कें सुधीर शर्मा ने अपने लिए बनवाई हैं, क्योंकि उनकी गाड़ियां टूटी-फूटी सड़कों पर नहीं चल पातीं। हम तो पैदल चलने वाले लोग हैं। जैसा भी रास्ता हो चल लेते हैं। हम तो मजदूर हैं। जब तक शरीर साथ देगा तब तक चलेंगे। लेकिन अगर कोई सरकार परिवार के एक सदस्य को भी रोजगार देती है तो वह परिवार खड़ा होने लायक हो जाता है, अब मैं मिस्त्री हूं पता नहीं कब तक दूर दराज तक जा पाऊंगा। यहां सलेट की खदान जरूर है लेकिन वहां भी गांव के सभी लोग थोड़े ही काम करते हैं।’’ इसी परिवार के बुजुर्ग सदस्य कहते हैं कि, ‘‘रोजगार बड़ा जरूरी है। देखिए, सड़कें हों संगमरमर की और खाने के लिए रोटी न हो तो ऐसी तरक्की भी क्या करनी। सुना है थोड़े समय में हमारा इलाका भी स्मार्ट सिटी में आ जाएगा। फिर तो हम बिल्कुल ही खत्म हो जाएंगे बताइए जिसके घर में सुबह कमाकर रात को खाया जाता हो वहां पर स्मार्ट सिटी के टैक्स की बात ही जान ले लेती है।’’ जब मैंने कहा कि स्मार्ट सिटी से आपको रोजगार भी मिलेगा तो वह कहते हैं कि नेता अपने ही लोगों को काम देते हैं अगर सबको काम मिलता तो हम भूखे थोड़े मरते। हालांकि फिर भी परिवार के सदस्य कहते हैं कि कांग्रेस के उम्मीदवार ने यहां काम किया है। धर्मशाला से कांग्रेस उम्मीदवार सुधीर शर्मा से बेरोजगारी को लेकर बात हुई तो उन्होंने कहा कि, ‘‘कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में यहां बहुत काम किया है। विकास हमारा बड़ा मुद्दा है। हमने महिलाओं के लिए कई ट्रेनिंग प्रोग्राम चालू किए, बेटियों के लिए एक कार्यक्रम चलाया जिसका नाम रहा ‘अहां दी मुन्नी’ जिसमें बेटी के जन्म का हमने जश्न मनाया और उसका अकाउंट खोला जिसमें कुछ पैसा जमा करवाया। रोजगार पर सुधीर कहते हैं कि हम टूरिज्म को बढ़ावा देंगे जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा।’’ पूछने पर कि विपक्ष कह रहा है कि आपकी सरकार ने रोजगार दिया नहीं बल्कि छीन और लिया है के जवाब में सुधीर कहते हैं- ‘‘ऐसा तो प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि वो दो करोड़ नौकरियां देंगे पर वह भी नहीं दे पाए, बीजेपी खुद के बारे में सोचे हम पर उंगली उठाने से पहले।’’

कांगड़ा जिले के नगरोटा विधानसभा क्षेत्र के कपड़ों के दुकानदार राहुल ने कहा कि करीब बीस साल पहले नगरोटा में कुछ नहीं था आज यहां अस्पताल हैं, स्कूल हैं, कॉलेज हैं, पीजी कॉलेज है, सड़कें बनी हुई हैं, पानी की पूरी व्यवस्था है। यह जगह दिल्ली जैसे शहरों को फेल करती है। जब से यहां इंजीनियरिंग कॉलेज आए हैं यहां लोगों को रोजगार मिला है। लोग किराये पर अपना घर देते हैं, बाजार में तेजी आई है। यहां बैडमिंटन कोर्ट तक है। यहां के लोगों को कभी भी कहीं भी बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। बाली जी ने यहां बहुत काम किया है। आप देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। वह अपना जन्मदिन तक लोगों के साथ लोगों की सेवा करके मनाते हैं। उनके जन्मदिन पर वह एक मेले का आयोजन करते हैं जिस पर आखों के डॉक्टर सबका इलाज मुफ्त करते हैं और उन्हें चश्में, सुनने वाली मशीनें बांटते हैं। आप पूरे क्षेत्र में धूम आइए आपको जी एस बाली के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं मिलेगा। ऐसा हमने पूरे क्षेत्र का मुआयना करने पर पाया भी। जीएस बाली से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘नेताओं को चुनाव के दौरान ही घर से नहीं निकलना चाहिए अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को समझना और देखना भी चाहिए। मैं अगर यहां अभी बेफिक्र होकर बैठा हूं तो इसका मतलब है कि मैं अपने क्षेत्र और क्षेत्रवासियों को जानता हूं।’’

पालमपुर पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का इलाका माना जाता है। यह एक तरह से पार्टी का गढ़ भी रहा है, लेकिन टिकटों के बंटवारे को लेकर यहां असंतोष है। पालमपुर में चाय के बगान हैं, जहां मौसम सुहावना रहता है। यहां के लोगों का कहना है कि यहां पानी के अलावा कोई बड़ी समस्या नहीं है, जिससे उन्हें जूझना पड़ता हो। दिवाली के समय हिमाचल में उस तरह की हलचल नहीं होती जैसी शहरों या दूसरे राज्यों में देखने को मिलती है लेकिन पालमपुर के बाजार में बड़ी तादाद में लोगों को देखा जा सकता था। वहां के एक दुकानदार ने कहा कि, ‘‘यहां पानी के साथ शौचालय की समस्या है, जिसे नजर अंदाज किया जाता रहा है।’’