ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

देश में शहर की गर्मी गांव में पशुपालकों के पशु बाड़े तक भी पहुंच रही है। यहां से आपकी चाय की प्याली तक। तापमान यदि यूं ही बढ़ता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब बहुत से लोगों को सिर्फ काली चाय भी पीनी पड़ सकती है। इसकी वजह कोई और नहीं हम ही हैं। हमारा रहन सहन ऐसा हो गया, इससे पैदा होने वाली गर्मी वातावरण में फैलकर तापमान को बढ़ा रही है। इस तापमान से पशु भी बचे हुए नहीं हैं। पशु वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया कि बढ़ती गर्मी पशुओं में तनाव पैदा कर रही है। नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल ने जो रिसर्च की है उससे तो यहीं अंदाजा लग रहा है। तापमान का पशुओं की मानसिकता पर असर पड़ रहा है। वे बेचैन हो रहे हैं। इसे रोकने के लिए समय रहते यदि उचित कदम नहीं उठाए गए तो इसका असर दूध पर भी पड़ सकता है। तापमान में बढ़ती गर्मी का असर इंसानों पर ही नहीं पशुओं पर भी नजर आ रहा है।
एनडीआरआई के निदेशक डॉ. आरआरबी सिंह ने कहा, ‘हमें आज से ही इस दिशा में सोचना होगा। देश के नौ केंद्रों (सीएजेडआरआई जोधपुर, सीआईआरजी यूपी, डीपीआर हैदराबाद, सीएसडब्ल्यूआरआई राजस्थान, आईवीआरआई ब्रेलली, एनडीआरआई, एनआईवीईडीआई बंगलुरु, आईजीएफआरआई, झांसी) पर इस बारे में रिसर्च चल रही है। इसका मुख्य उद्​देश्य यही आकलन करना है कि आने वाले खतरों से कैसे बचा जाए?’ उन्होंने बताया, ‘हम ऐसे उपाय खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जो बदले मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता को प्रभावित न करे। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि यदि एक डिग्री तापमान बढ़ जाता है तो एक फीसदी दूध की उत्पादन कम हो सकता है। खतरा सिर्फ मौसम और प्रदूषण ही नहीं है, इसके साथ ही फीड में पोषक तत्वों की कमी अच्छे चारे का अभाव समस्या को और ज्यादा बढ़ा रहा है। इसलिए चैलेंज ज्यादा है। इससे निपटने के लिए हर स्तर पर काम करना होगा, तभी हम भविष्य में दूध की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध करा सकने में सक्षम हो सकते हैं।’

देशी गाय तापमान के झटके सहने में सक्षम
रिसर्च में यह बात सामने आई कि अब वक्त आ गया है कि हमें देशी गायों पर ध्यान देना चाहिए। यह ऐसी नस्ल है जो तापमान के उतार चढ़ाव को काफी हद तक बर्दाश्त करने में सक्षम है। इस नस्ल में ही अब ज्यादा से ज्यादा रिसर्च होना चाहिए। क्योंकि यदि देशी नस्लों में दूध की मात्रा को बढ़ा दिया जाए तो हम तापमान के खतरों से काफी हद तक निपट सकते हैं। तापमान देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग होता है। ऐसे में पशुओं की नस्लों को भी उसी जोन के हिसाब से खोजना होगा। इसमें यह तय करना होगा कि किस जोन के किस तापमान पर कौन सा पशु तापमान के उतार चढ़ाव को सहन कर सकता है। उसकी पहचान कर वहां उसे बढ़ावा देने का काम किया जाएगा। भारत के अलग अलग हिस्सों में वहां की स्थानीय गायों की नस्लें है, हम उनकी पहचान भी कर रहे हैं।

क्या इस चैलेंज से निपटा जा सकता है
पशु विशेषज्ञ डॉ. महेंद्र सिंह ने कहा कि पशु पालकों को अब पारंपरिक तरीके को छोड़ कर थोड़ी तकनीक अपनानी होगी। उन्हें पशु प्रबंधन के तरीके सीखने होंगे। जिससे पशुओं को तनाव से बचाया जा सके। दूसरा काम यह किया जाना चाहिए कि पशुओं की फीड व चारे की ओर ध्यान देना होगा। इसमें ऐसे तत्व शामिल किए जाने चाहिए जिससे पशुओं में गर्मी से पैदा होने वाला तनाव कम हो सके। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए किसानों को एजुकेट किया जाना चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि कैसे पशुओं का प्रबंधन करना है। कैसे उनकीदेखभाल की जानी है। क्योंकि यदि ऐसा न हुआ तो पशुओं, पशुपालकों, दूध उत्पादन और हमारे जैसे लोग जो दूध के खरीददार है खासी परेशानी आ सकती है। डॉ महेंद्र सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक यहीं पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि आने वाले समय में कैसे पशुओं का प्रबंधन होना चाहिए। इसमें क्या क्या बदलाव किया जाना चाहिए।

पशुपालक क्या इस बदलाव के लिए तैयार है
करनाल जिले के तरावड़ी क्षेत्र में बड़े पशु पालक राम सिंह ने बताया कि हमें बदलना ही होगा। क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया तो दिक्कत आ सकती है। बदलाव मजबूरी और जरूरी है। रामसिंह ने बताया कि सवाल यह है कि इस बदलाव में कितना खर्च आएगा। दूध की उत्पादन लागत कितनी बढ़ जाएगी। अभी दूध की उत्पादन लागत औसत 25 से 30 रुपये प्रति लीटर है। समस्या यह कि अभी भी दूध की बिक्री इसमें वसा की मात्रा के आधार पर तय होती है। यह सालों पुराना तरीका है। जबकि दूध की गुणवत्ता में अन्य कई कारक तत्व भी होते हैं। मसलन जिस मवेशी का दूध है, उसने जो चारा खाया इसमें कितना कीटनाशक प्रयोग किया गया। दूध जिस मवेशी का है, क्या उस पशु को कोई रोगप्रतिरोधक दवा तो नहीं दी गई। दी तो इसकी मात्रा कितनी थी। पशु को जहां रखा गया, वह जगह कितनी साफ सुथरी है। जो व्यक्ति पशु को दुहता है, क्या वह स्वस्थ है। उसके कोई बीमारी तो नहीं है, इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। हम यह समझ लेते हैं कि दूध को उबाल लिया, दूध शुद्ध हो गया।जबकि ऐसा नहीं होता। रामसिंह के कहने का मतलब यह है कि दूध की कीमत बढ़ेगी। खरीददार को इस बात के लिए तैयार होना होगा कि यदि उन्हें गुणवत्ता वाला दूध चाहिए तो इसकी कीमत कुछ ज्यादा देनी होगी। क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो पशु पालक कैसे बढ़े हुए खर्च उठाएगा। फिर तो या तो गुणवत्ता से समझौता होगा या फिर खर्च पूरा करने के लिए दूध में मिलावट।