संपादकीय- कानून तोड़ने वाले से सहानुभूति क्यों

सलमान खान। हिंदी सिनेमा के बेताज बादशाह। कुछ लोग टाइगर भी कहते हैं। फिल्म में उनकी मौजूदगी बॉक्स आॅफिस पर कामयाबी की गारंटी है। बहुत से लोगों के लिए भाई हैं। प्रशंसकों की संख्या इतनी कि गिनना मुश्किल। पिता मशहूर डायलॉग लेखक सलीम हैं। बाकी दो भाई भी फिल्मों में काम करते हैं। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। उनके प्रशंसक और दोस्त बताते नहीं थकते कि भाई कितने रहम दिल हैं। गरीबों की मदद करते हैं। उनके व्यक्तित्व के इस पहलू पर पिछले कुछ सालों से कुछ ज्यादा ही जोर दिया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि भाई ने फिल्मों में आजतक किसी नायिका के साथ चुंबन का दृश्य नहीं किया। यह दीगर बात है कि एक समय ऐश्वर्या राय और फिर कटरीना कैफ से उनके निजी रिश्तों को लेकर लिखी गई खबरों कहानियों की संख्या उनकी फिल्मों से ज्यादा है। अपने देश में वैसे भी फिल्मी कलाकारों और क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा हासिल है। शायद इसीलिए बहुत से लोग मानते हैं कि ऐसे लोगों को कानून से ऊपर समझना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करते तो उनके साथ अन्याय कर रहे हैं। करीब बीस साल पहले सलमान खान और उनके साथी कलाकारों ने राजस्थान के जोधपुर में प्रतिबंधित काले हिरण का शिकार किया। राजस्थान में विश्नोई समुदाय काले हिरण को पूज्य मानता है। काला हिरण संरक्षित जानवर है। उसके शिकार पर कानूनी प्रतिबंध है। यह सब जानते हुए भी मुंबई से गए फिल्मी कलाकारों ने काले हिरण का शिकार किया। स्थानीय लोगों की शिकायत पर मामला दर्ज हो गया। बीस साल से मुकदमा चल रहा है। सात अप्रैल को जोधपुर की एक अदालत ने सलमान को दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई। छह अप्रैल से ही न्यूज चैनल्स और सोशल मीडिया देखकर ऐसा लग रहा था कि इस समय देश के सामने सबसे बड़ा संकट सलमान का जेल जाना है। जेल चले गए तो जल्दी से जल्दी बाहर आएं। उन्हें जमानत नहीं मिली तो देश में जाने क्या आफत आ जाएगी। खबरें चलने लगीं कि सलमान के जेल जाने से कितने करोड़ की फिल्में फंस जाएंगी। जाने कितने लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह भी कि फिल्म उद्योग का कितना घाटा हो जाएगा। सवाल यह भी उठा कि उन लाखों-करोड़ों फैन्स का क्या होगा। किसी के घर में चूल्हा नहीं जला तो किसी ने खाना नहीं खाया। पूरे देश से खबरें आने लगीं कि कौन सा प्रशंसक किस तरह अपने दुख का इजहार कर रहा है। अदालत और जेल के बाहर लोगों की भीड़ जमा होने लगी। पूरा देश संकट ग्रस्त हो गया। सब जानना चाहते थे कि सलमान का क्या होगा। इलेक्ट्रानिक मीडिया के सारे कैमरे जोधपुर की अदालत और सेंट्रल जेल के आसपास तैनात रहे। पहले चला कि सजा होगी कि नहीं। फिर चला कि कितने साल की होगी। एक चैनल ने फैसला भी सुना दिया कि दो साल की सजा होगी। फैसला आया तो पता चला कि पांच साल की सजा हुई है। सलमान को हिरासत में लेकर जोधपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। फिर क्या था पूरे देश में सहानुभूति की लहर हिलोरें मारने लगी। शोभा डे जैसी सोशलाइट ट्वीट करने लगीं कि बस भी करो। बेचारे को क्यों परेशान कर रहे हो। बीस साल हो गया अब तो छोड़ दो। पूरा फिल्म जगत ऐसे इकट्ठा हो गया जैसे सिर्फ भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय होता है। इनमें से किसी ने नहीं कहा कि अदालत ने अच्छा काम किया है, कि अभियुक्त की सामाजिक हैसियत से प्रभावित हुए बिना कानून के मुताबिक फैसला हुआ है।
यह अपने देश की सबसे बड़ी विडम्बना है। लोग माथा देखकर तिलक लगाते हैं। किसी को याद नहीं आया या याद करने की जरूरत नहीं समझी कि सितम्बर 2002 में सलमान खान ने अपनी लैंड क्रूजर फुटपाथ पर सो रहे पांच लोगों पर चढ़ा दी थी जिसमें से एक व्यक्ति की मौत हो गई। उस मामले में वे कैसे छूटे यह सबको पता है। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वीएन खरे ने कहा कि आपके पास बहुत सारे पैसे हों तभी न्यायालय जाइए। आम आदमी के लिए न्याय व्यवस्था के बारे में इससे बड़ी टिप्पणी क्या हो सकती है। सलमान खान कोई क्रांतिकारी नहीं हैं। वे देश या लोगों के अधिकारों की लड़ाई के लिए जेल नहीं गए। उन्होंने देश का कानून तोड़ने का काम किया है। इसी अपराध की उन्हें पांच साल की सजा मिली। बीस साल मुकदमा चलने के बाद पांच साल की जेल की सजा हुई और अड़तालीस घंटे में जमानत मिल गई। किसी आम भारतीय के लिए यह फिल्म की कहानी की तरह है। भारतीय जेलों की हालत यह है कि उनमें उनकी क्षमता से बहुत ज्यादा कैदी हैं। इनमें से दो तिहाई विचाराधीन कैदी हैं। उनमें भी अधिसंख्य छोटे मोटे अपराधों के आरोप में जेल में बंद हैं। पर उन्हें जमानत नहीं मिलती। इनमें ऐसे लोगों की संख्या अच्छी खासी है जिनके अपराध साबित होने पर उन्हें जितनी सजा मिलती उससे ज्यादा समय से वे जेल में हैं। क्योंकि वे सेलीब्रिटी नहीं हैं और न ही उनके पास महंगे वकील करने की क्षमता है। न्याय मिलेगा या नहीं यह इस बात पर निर्भर हो गया है कि आपकी आर्थिक क्षमता क्या है। महंगे वकील ही नहीं गवाहों को खरीदने और जांच को प्रभावित करने की क्षमता हो तो आप कत्ल करके भी बच सकते हैं। यह भारतीय न्याय व्यवस्था की हकीकत है। गरीब आदमी के लिए न्यायालय तक पहुंचना और फिर न्याय पाना रोज ब रोज कठिन होता जा रहा है। खासतौर से उच्च और उच्चतम न्यायालय में।
बात केवल न्यायालय या जांच एजेंसियों तक ही सीमित नहीं है। देश की दो तिहाई आबादी युवा है। पर इस युवा का हाल देखकर और ज्यादा दुख होता है। वह हर तरह के गलत काम के लिए उपलब्ध है। फिर बात आंदोलनों में हिस्सा लेने की हो या हिंसा करने की। आंदोलन किसी का भी, किसी मुद्दे पर हो, सबके लिए युवाओं का एक वर्ग उपलब्ध रहता है। इसका कारण यह नहीं है कि इनके पास रोजगार नहीं है। दरअसल ये ऐसे लोग हैं जो किसी भी रोजगार के काबिल ही नहीं हैं। इनके लिए यही सब अवसर रोजगार या फिर अपने होने की सार्थकता साबित करने के हैं। जोधपुर जेल के बाहर सलमान के बाहर आने और मुम्बई में उनके घर के बाहर एक झलक पाने के लिए घंटों धूप और गर्मी में खड़े रहने वालों को क्या कहेंगे। उन्हें क्या समझ आ रहा था कि सलमान क्या करके आए हैं। उन्हें क्यों नहीं दिखता कि फिल्मी पर्दे वाले सलमान और वास्तविक जीवन वाले सलमान में फर्क है। कानून तोड़ने और अपराध साबित हो जाने के बाद भी यह सहानुभूति क्यों। ऐसा क्यों है कि ऐसे लोगों को अदालत से सजा मिलना उनके साथ अन्याय करने जैसा माना जाता है। ये यही लोग हैं, जो घर में काम करने वाले गरीब के एक रोटी चुराने पर उसे पीट पीट कर मार डालते हैं। ऐसे लोगों के मन में सलमान जैसे कानून तोड़ने वालों के लिए श्रद्धा का भाव क्यों आता है। इन घटनाओं को देखकर लगता है कि भारतीय समाज में कहीं कुछ गंभीर रूप से गड़बड़ है। जिस समाज के लोग कानून से न डरते हों और कानून तोड़ने वाले से सिर्फ इसलिए सहानुभूति रखते हों कि वह एक सेलीब्रिटी है वहां न्याय-अन्याय की बहस कितनी सार्थक है।

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