जिन्दगी हाशिये पर- नारियल-पानी बेचकर पलती जिन्दगी

सत्यदेव त्रिपाठी।

मुम्बई का जुहू-तट, जहां संसार की सारी निधियां-समृद्धियां पटी पड़ीं। स्वर्गिक-सुख जीते-भोगते लोग और जहां एक घंटा बिताने के लिए दूर-दराज से हजारों खर्च करके आते तमाम लोग। उसी तट के उस हिस्से में, जहां बाहर पचास कदम पर रहते हैं सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और जहां समुद्र चूमता है बिड़ला के खाली पड़े अरबों के बंगला-परिसर के अदृश्य चरण …वहीं कुछ सालों पहले गुलजार रहकर अब बन्द पड़े सेंटॉर होटल के खंडहर की छांव में रेत पर गाड़ी लगाकर नारियल का पानी बेचते लंबी, शालीन, हंसमुख और उन्मुक्त मूर्ति को सालों-साल से सुबह आते-जाते देखता रहता, पर न मैं बुला सका, न वो बोल सकी। लेकिन हाशिये की इस पड़ताल ने उसका मुंह खुलवाया, तो नुमायां हुई एक और दुनिया। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के साही मीनापुर गांव के राम किसुन साही उर्फ गुड्डू 1996 से इस तट पर हैं। रोजी-रोटी की तलाश ने उन्हें इस किनारे पर ला दिया और नारियल-पानी बेचने के काम में बतौर नौकर लग गए। शाम-सुबह सैर करने वालों को भले जुहू बीच स्वर्ग पाने की-सी हसरत का सुख देता हो, पर एक हाथगाड़ी पर सौ-पचास नारियल रखकर सोलह-अठारह घंटे रोज ग्राहकों की राह देखना और कभी भाव पूछकर चले जाने वालों की कसक सहना, तो कभी भाव-ताव की झिकझिक और तय हो जाने के बाद ‘इस-उस वाले’ की मांग के मुताबिक नारियल चुनकर देना, फिर उसे काटकर प्लास्टिक की फोंफी (स्ट्रॉ) डालकर देने एवं उसके पीने के बाद पैसे देने की राह देखना हो… और 22-22 साल, तो सारा का सारा जुहू का वह स्वर्गिक माहौल धरा का धरा रह जाता है।

यहां तक तो धन्धे-पानी के लिहाज से फिर भी गनीमत, पर किसी तरह सिर्फ रोटी भर की रोजी पाने के बाद उसी खुले बीच पर बनाना-खाना-सोना किसी भी तरह मन-भावन नहीं रह जाता। लेकिन इसी कीमत पर और इसी के सहारे मीनापुर में गुड्डू का घर भी चल पा रहा, जहां पत्नी के साथ एक बेटे और तीन बेटियों का पूरा परिवार रहता है- चाहे भले यहां रहने के लिए छत न हो। बस, नहाने-निपटने के लिए सेण्टॉर की गली के प्रवेश पर ‘सुलभ शौचालय’ की मुफ्त सेवा मौजूद है। आलस्य आने या खाना बनाने का मन न होने पर (जो प्राय: हो जाता है) दक्षिण भारतीय भोजन व तुरंत खाना (फास्टफूड) के अस्थायी होटल व चलते-फिरते ठेले सुलभ हैं। लेकिन सोने के लिए छत न नसीब है, न गुड्डू के मन में ऐसा कुछ कर पाने की लालसा है, और न जीवन के इस अनिवार्य अभाव का अफसोस- बल्कि कहें कि इसकी चेतना ही नहीं आने देते गुड्डू। हां, नौकरी करते-करते अब काफी दिनों से गुड्डू ने अपनी गाड़ी लगाने की हैसियत हासिल कर ली है, तो काम करने के लिए एक आदमी भी रखते हैं। खुद बाकी सारा प्रबन्ध करते हैं। आजकल अपने गांव के आसपास के ही सुनील पांडेय उनकी गाड़ी पर काम करते हैं। केरल के नारियल सेठिया अशरफ भाई से माल मंगाने के पूरे कारोबार और उसके मुनाफे-घाटे की सारी बात सुन पाता कि गुड्डू ने मुस्कराके सुनील पांडेय की जीवन गाथा शुरू करा दी। 40-42 की उम्र और औसत कद-काठी वाले पांडेयजी अपनी किशोरावस्था में बिहार की अपहरण-शादी के शिकार हुए। सगे जीजाजी बहका कर मोटर साइकल से ले गए और हथियार की नोक पर शादी करा दी और ‘जान बची लाखों पाए’ की राहत के बाद समाज के दबाव में लड़की को रखना भी पड़ा। वैसे तो पांडेयजी काफी तेज रहे और अपने पढ़े लिखे होने को दिखाने के लिए आम नीम शिक्षितों की तरह एक-दो वाक्य अंग्रेजी बोल गए- ‘व्हाट इज योर प्रोफेशन’? पर इस जबर्दस्त घटना ने उनका जीवन बदल दिया। प्राय: ही वे घर से भागे रहते हैं… और इस दौरान क्या नहीं किया! किसी बालरोग डॉक्टर के दवाखाने में रहे। विपश्यना-शिविर में रहे। यहां तक कि किरन बेदी के सानिध्य में भी रहे तिहाड़ में! वे हाथ और ललाट देखकर भविष्य भी बताते हैं। पर इतना कुछ करने के बाद भी कुछ नहीं कर पाए। न उस पत्नी को छोड़ पाए, न ठीक से रख पा रहे। बच्चे भी हैं। पहले दस सालों तक घर कुछ नहीं देते थे, पर अब कुछ पैसा-वैसा देते हैं। आजकल सबसे हारकर गुड्डू की इनायत पर नारियल बेच रहे। कहते हैं- ‘मन चंचल रहता है, किसी काम में एकाग्र नहीं हो पाता’। उनकी बातचीत से लगा कि थोड़ी बात और की, तो अपने लायक कोई काम बताने की मांग जरूर कर देंगे। लेकिन असली बात गुड्डू ने बताई- पैसे आते ही बोतल लेकर बैठ जाते हैं, तो क्या होगा, क्या कर पाएंगे! तब से दो महीने हो गए, अभी लिखते हुए फोन किया, तो पता लगा कि गुड्डू ने भी अपने काम से हटा दिया। पी लेते, तो दिन-दिन भर कुछ करने लायक न रहते… अब जाने कहां हैं! उस वक़्त भी उनकी कथा और उससे अधिक उनकी करनी से मन खिन्न हुआ था। आज सुनकर उद्विग्न हो रहा।

लेकिन वही गुड्डू है कि अपने साथ वहां के सारे धन्धे वालों की खबर रखता है। उस दिन अपने अशरफ सेठ से भी बात कराना चाह रहा था, पर सफेद लुंगी-कमीज में कुछ दूर बैठा बैठा चाय पी रहा अशरफ नहीं आया। गुड्डू ने बताया कि पुलिस व म्युनिसिपैलिटी वालों को खूब पटाए रहता है अशरफ, जिसके बिना यहां कोई धन्धा नहीं हो सकता। लेकिन वह खुद ऐसा नहीं कर पाता। अशरफ के जरिये ही अपनी गाड़ी की सुरक्षा करा लेता है और इसीलिए वह धन्धा ज्यादा बढ़ा नहीं सकता। मैं नारियल नहीं पीता, पर उस दिन गुड्डू ने ऐसे इसरार से कहा कि मना न कर पाया, पीना ही पड़ा।

फोन पर पूछता है- अब कब आ रहे हो सरजी? और 16 मार्च के बाद किसी भी सुबह मिलने का वादा कर लिया है, जिसके पूरा होने का इंतजार भी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *