मनोज चतुर्वेदी

भारतीय निशानेबाजों की बात करें तो आजकल एक नाम हर किसी की जुबान पर चढ़ा हुआ है। यह नाम है हरियाणा के झज्जर की रहने वाली मनु भाकर का। मैक्सिको में हुए आईएसएसएफ विश्व कप में गोल्ड मेडल जीतने वाली वह देश की सबसे कम उम्र की निशानेबाज बनीं। यह उपलब्धि पाने के समय वह मात्र 16 साल की थीं। उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल और इसकी मिक्स्ड टीम स्पर्धा में प्रकाश मिथरावाल के साथ स्वर्ण पदक जीता। हमारे देश में खेलों में कहीं न कहीं पक्षपात दिखता ही है और मनु भी इसका शिकार हो चुकी हैं। पर यह भी सच है कि वह यदि पक्षपात का शिकार नहीं हुई होतीं तो शायद आज वह शूटिंग विश्व कप में दोहरा गोल्ड मेडल जीतती हुई नहीं दिखतीं।
झज्जर के यूनिवर्सल स्कूल में पढ़ाई के शुरुआती दिनों में वह तांग ता नामक खेल खेला करती थीं। यह एक तरह का मणिपुरी मार्शल आर्ट है। इसमें सामने वाले खिलाड़ी को हाथ-पैर चलाकर घेरे से बाहर करना होता है। वह इसकी दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित चैंपियनशिप में भाग लेने दिल्ली आई थी। फाइनल में उसके सामने दिल्ली की एक लड़की थी। मनु के आगे रहने पर भी आयोजकों ने दिल्ली की लड़की को जिता दिया। इस पक्षपात के बाद उसने इस खेल को छोड़ने का फैसला कर लिया। अगर अपने साथ हुए पक्षपात के कारण उन्होंने यदि इस खेल को नहीं छोड़ा होता तो वह निशानेबाजी में कैसे आतीं और देश का नाम रोशन भी कैसे करतीं।
ऐसा नहीं है कि मनु तांग ता खेल को छोड़कर सीधे निशानेबाजी में आ गर्इं। उन्होंने मात्र छह साल की उम्र में मुक्केबाजी को अपनाया पर मां को लगता था कि कहीं बेटी चोट न खा जाए, इस डर से उन्होंने इस खेल को छुड़वा दिया। इसके बाद वह स्केटिंग, कबड्डी और खो-खो जैसे खेलों को अपनाते और छोड़ते हुए कराटे में आई और इसकी राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने में सफल हुई। लेकिन उन्होंने पिता रामकिशन से कहा कि मुझे मजा नहीं आ रहा है। मनु के पिता सहित सभी घरवालों ने हमेशा मनु की पसंद को वरीयता दी। इसलिए कराटे को छोड़ने के फैसले में भी उन्हें घरवालों का साथ मिला। फैसला करने के बाद स्कूल की शूटिंग रेंज में पिता के साथ गर्इं और इस खेल को अपनाने को तैयार हो गई।
यह बात 24 अप्रैल, 2016 की है। उस समय स्कूल में अनिल नामक निशानेबाज कोचिंग दे रहे थे। मनु को एक-दो दिन एयर पिस्टल की तकनीक को समझने में लगा और वह जल्द ही इस खेल में महारत हासिल करने लगीं और अपने से साल-डेढ़ साल सीनियर निशानेबाजों से बेहतर प्रदर्शन करने लगीं। यही वह दौर था जब स्कूल के तत्कालीन कोच अनिल को उनकी प्रतिभा दिखी और उन्होंने इस प्रतिभा को मांजना शुरू कर दिया। उनके जीवन की पहली प्रतियोगिता महेंद्रगढ़ अकादमी में ओपन प्रतियोगिता थी। इसमें पदक जीतने के बाद वह निशानेबाजी की पिस्टल स्पर्धा में अपना करियर देखने लगीं। राज्य स्तर, उत्तर क्षेत्र और राष्ट्रीय चैंपियनशिपों में पदकों का अंबार लगाने के बाद विश्व कप में दोहरी सफलता पाने के साथ ही वह देश का गौरव बन चुकी हैं।
मनु भाकर के विश्व कप में दोहरा गोल्ड जीतने से पिता रामकिशन बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि वैसे तो मेरी बेटी बचपन से लेकर आज तक जितनी भी चैंपियनशिपों में उतरी है उसमें से 99.9 फीसदी में उसे पदक मिला है। यह सही है कि वह इस विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने को लेकर भले ही आश्वस्त नहीं थी पर उसे पदक जीतने का पक्का भरोसा था। वह 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में अपने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में दिए सर्वश्रेष्ठ के बराबर भी प्रदर्शन नहीं कर सकी फिर भी स्वर्ण पदक जीता। 10 मीटर एयर पिस्टल की मिक्सड स्पर्धा में भाग्य के सहारे मौका मिला। इस स्पर्धा में आमतौर पर हिना सिद्धू और जीतू राय भाग लेते रहे हैं। हिना इस बार भाग लेने गई नहीं और जीतू की रैंकिंग पिछड़ने से मनु और प्रकाश मिथरावाल को भाग लेने का मौका मिला। यह जोड़ी मौके को भुनाने में पूरी तरह सफल रही।
मनु और प्रकाश की जोड़ी ने 476.1 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने फाइनल में क्रिस्टियन रेट्ज और सांद्रा रेट्ज की अनुभवी जर्मन जोड़ी को हराया। क्रिस्टियन रेट्ज 2016 के रियो ओलंपिक के 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल के स्वर्ण पदक विजेता हैं। इस जर्मन जोड़ी ने 475.2 अंक बनाए। इस चैंपियनशिप में कांस्य पदक फ्रेंच जोड़ी सेलाइन गोबेरविले और फ्लोरियन ने जीता। इससे पहले मनु ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल में 0.4 अंक से मैक्सिको की शूटर अलजांद्रा जवाला को पीछे छोड़कर स्वर्ण पदक जीता और वह भारत की सबसे कम उम्र में विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली निशानेबाज बन गर्इं। इससे पहले राइफल शूटर गगन नारंग 2006 में और पिस्टल शूटर राही सरनोबत 2013 में 23 साल की उम्र में स्वर्ण जीतकर रिकॉर्ड बनाए हुए थे। पर अगर हम विश्व स्तर पर देखें तो मनु तीसरी सबसे कम उम्र की स्वर्ण पदक विजेता हैं। सिंगापुर की राइफल शूटर लिंडसे वेलेसो और अमेरिकी शॉटगनर विंसेंट हानाकॉक के नाम 15 साल की उम्र में विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड है।
मनु भाकर की यह सफलता जिस तरह हर भारतीय के लिए हैरत में डालने वाली है, उसी तरह खुद मनु को भी इस तरह के प्रदर्शन का भरोसा नहीं था। उन्होंने दोहरा गोल्ड जीतने के बाद कहा, ‘मैं जब मैक्सिको आई थी तो कांस्य पदक या ज्यादा से ज्यादा रजत पदक जीतने की उम्मीद कर रही थी। मैंने एक भी गोल्ड जीतने के बारे में नहीं सोचा था, दो जीतने का तो सवाल ही नहीं उठता था। सीनियर विश्व कप में दो स्वर्ण पदक जीतने का विश्वास ही नहीं हो रहा।’ कोई भी निशानेबाज इतनी कम अवधि में इस तरह की सफलता पा सकता है, भरोसा नहीं होता। मनु की प्रतिभा भले ही स्कूल के शुरुआती दिनों में ही सामने आ गई थी लेकिन इसे मांजने का काम पूर्व अंतरराष्ट्रीय पिस्टल शूटर और मौजूदा राष्ट्रीय जूनियर कोच जसपाल राणा ने किया है। मनु के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में रहने के दौरान जसपाल के टिप्स ने इस निशानेबाज को निखारने में अहम भूमिका निभाई है। मनु ने अपनी सफलता के लिए सभी कोचों का शुक्रिया अदा किया है।
मनु को स्कूल के दिनों में पहले अनिल फिर सुरेश और नरेश ने कोचिंग दी। भारत जैसे देश में किसी स्कूल में इस तरह की सुविधाएं होना अच्छा अनुभव है। यदि देश के 10 फीसदी स्कूलों में खेल सुविधाएं उपलब्ध हो जाएं तो देश के खेलों का नक्शा ही बदल सकता है। मनु भाकर ने पिछले साल दिसंबर में तिरुअनंतपुरम में हुई सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अनुभवी शूटर हिना सिद्धू के महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़कर अपने आगमन का अहसास करा दिया था। इस चैंपियनशिप में अंडर-18, अंडर-21 और सीनियर वर्ग में कुल 15 पदक जीतकर विशेषज्ञों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था। पर अब वह अंतरराष्ट्रीय स्टार बन गई हैं। अभी उम्र कम होने की वजह से यह ध्यान रखने की जरूरत है कि ध्यान भटके नहीं।
मनु के पिता रामकिशन ने बताया कि उसका आगे का कार्यक्रम बहुत ही व्यस्त है। उसे अब कॉमनवेल्थ गेम्स, कोरिया, अमेरिका और जर्मनी में होने वाले आईएसएसएफ विश्व कपों में भाग लेना है। वह अगले साल होने वाले यूथ ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुकी है। इसलिए उसे सबसे पहले व्यस्त कार्यक्रम के अनुरूप ढालने की जरूरत है। इसके अलावा कोई ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है कि भाग लेने के लिए विभिन्न देशों का वीजा आसानी से मिल सके। वह कहते हैं कि वह बेटी के लिए दिल्ली में दिनरात भाग सकते हैं। पर इस भाग दौड़ का सकारात्मक परिणाम निकलना चाहिए। इस सफलता के बारे में रामकिशन का कहना है कि विश्व कप में दोहरा गोल्ड जीतना, ओलंपिक पदक जीतने जैसा भले ही न हो पर यह भी बड़ी उपलब्धि है। मेरी बेटी जबर्दस्त मेहनत कर रही है। उसकी इस उपलब्धि में भाग्य का भी साथ मिल रहा है। वह आने वाले सालों में और भी ढेरों उपलब्धियां हासिल करेगी। 