दलित युवकों की पिटाई के विरोध में उना दलित अत्याचार लड़त समिति ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को पंद्रह सितंबर का अल्टीमेटम दिया है। इस अवधि में अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुर्इं तो वे गुजरात में रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे। क्या हैं उनकी मांगें और आंदोलन की रूपरेखा इसी मसले पर अभिषेक रंजन सिंह ने उना दलित अत्याचार लड़त समिति संयोजक जिग्नेश मेवानी से बातचीत की।

दलित अस्मिता रैली के बाद आपके संगठन की आगे क्या रणनीति है?
उना में दलितों के साथ हुए जुल्म के विरोध में हमने अहमदाबाद से एक पदयात्रा निकाली। राज्य के दलित समुदाय और प्रगतिशील लोगों ने हमारा साथ दिया। पंद्रह अगस्त को पदयात्रा का समापन हुआ, लेकिन हमारी लड़ाई की एक नई शुरूआत यहां से हुई है। हमने अपनी दस मांगें सरकार के समक्ष रखी हैं। इनमें प्रत्येक भूमिहीन दलित परिवार को पांच एकड़ जमीन आवंटित करने की मांग प्रमुख है। अगर सरकार 15 सितंबर तक हमारी मांगों को पूरा नहीं करती है, तो हम लोग राज्य भर में रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे।

लेकिन सरकार ने उना की घटना के बाद विशेष जांच दल गठित किया है, इस पर आपको क्या कहना है?
एसआईटी के गठन से हमें ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। राज्य सरकार जैसा चाहेगी उसी अनुरूप जांच के नतीजे सामने आएंगे। इसलिए हमने दलितों की बुनियादी समस्याओं के बारे में बात की है। हमने सरकार से मांग की है कि गुजरात के दलित अब मृत पशुओं की खाल उतारने का काम नहीं करेंगे इसलिए सरकार को दलितों को रोजगार के वैकल्पिक अवसर मुहैया कराने की दिशा में काम करना चाहिए। प्रत्येक भूमिहीन दलित परिवार को पांच एकड़ जमीन दी जाए, ताकि वे खेती-बाड़ी कर परिवार का भरण-पोषण कर सकें।

दलित अस्मिता रैली को आप गैर राजनीतिक आंदोलन बता रहे हैं, जबकि आप स्वयं राजनीतिक दल से जुड़े हैं?
यह बात सही है कि (दलित अस्मिता रैली तक) मैं आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता था। इस बाबत कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की। लेकिन आज यानी 20 अगस्त को मैं आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं, ताकि मुझ पर किसी राजनीतिक दल से संबंद्ध होने का आरोप नहीं लगे।

आप सरकार से प्रत्येक दलित परिवार के लिए पांच एकड़ जमीन मांग रहे हैं। क्या व्यावहारिक रूप से यह संभव है?
अगर सरकार अडानी, अंबानी और एस्सार जैसी कंपनियों को कौड़ी के भाव जमीन मुहैया करा सकती है, तो दलितों और आदिवासियों को क्यों नहीं। गुजरात में भूदान और सीलिंग से हासिल हुई जमीनों का आज तक सही वितरण नहीं हो सका है। अगर राज्य सरकार इन जमीनों का सही वितरण कर दे तो दलितों की भूमि संबंधी समस्या हल हो जाएगी। इतना ही नहीं, वन अधिकार कानून के तहत राज्य में 1.20 लाख एकड़ जमीन जिस पर आदिवासियों और दलितों का अधिकार है, उस पर भी सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात कहते हैं। इससे आप कितना इत्तफाक रखते हैं?
प्रधानमंत्री की बातें नारों तक ही सीमित हैं। वे देश और दुनिया में गुजरात मॉडल की बात करते हैं, लेकिन उनके गृह राज्य में दलितों के 119 गांवों के हजारों लोग आज भी पुलिस संरक्षण में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। राज्य में पचपन हजार दलित आज भी मैला ढोने को विवश हैं, क्या प्रधानमंत्री जी को यह ज्ञात नहीं है। मेरे ख्याल से प्रधानमंत्री को भाषणों से इतर देश के वंचित लोगों की समस्याओं पर व्यावहारिक रूप से ध्यान देना चाहिए।

आपकी इस मुहिम में कौन-कौन से संगठन शामिल हैं?
दलितों के साथ हो रहे जुल्म और उनके जायज सवाल पर हमने यह अभियान चलाया है। मैं वंचितों के सवाल पर कुछ करने की इच्छा रखने वाले देश के सभी लोगों से अपील करना चाहता हूं कि वे हमारे साथ जुड़ें। मैं देश के किसान संगठनों, मजदूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों और कॉलेज-यूनिवर्सिटी के छात्रों से भी कहना चाहता हूं कि वे हमारे साथ शामिल हों।