उमेश सिंह

काशी और मगहर बड़े प्रतीक हैं। सदियों से। हर किस्म के पाखंड के खिलाफ। कबीर साहेब की अनहद वाणी यहीं गूँजी थी। ये दोनों स्थान आधुनिकता के बीज तत्व की भूमि हैं। यह पोथी नहीं, आँखन देखी की अनहद बानी वाली पवित्र जमीन है। काशी-मगहर दो धर्मों की एकता का नाभि केंद्र है। यह मजहबी और जातीय जड़ता और उससे उपजी कट्टरता के शमन की भूमि है। दो घूंट कबीर हम सब में घुले हैं, कहीं न कहीं। कबीर यहां के लोगों के अभिभावक रहे हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी। ऐसा सख्त अभिभावक जिन्होंने त्रुटियों पर धीरे से हमारे कान पकड़कर उमेठ दिया। कबीर की निर्वाण स्थली मगहर से पीएम नरेन्द्र मोदी ने विरोधी दलों पर सवालों के तीरों की बौछार कर दी। वह भी कबीर वाणी के माध्यम से। संतत्व की संस्कृति के अन्य ध्वजावाहकों के जरिये। उन्होंने रामानुजाचार्य, रामानंद, तुलसीदास, सूरदास, संत रविदास, तुकाराम और मीराबाई का हवाला भी दिया। थी तो जनसभा लेकिन ऐसा लगा मानो ‘संत-संस्कृति-सभ्यता-संस्कार’ पर कोई पाठशाला लगी हो और नरेंद्र मोदी पढ़ा रहे हों। हाँ, यह जरूर है कि इन्हीं संतों के जरिये बीच-बीच में मोदी अपनी सियासत भी सलीके से साध ले रहे थे। भाजपा के खिलाफ निर्माणाधीन सियासी गठबंधन के जातीय चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कबीर की ही वाणियों का मोदी ने सहारा लिया। मोदी की सभा के बाद सपा, बसपा और कांग्रेस नेताओं की तिलमिलाहट स्पष्ट संकेत कर रही है कि भगवाई रणनीतिकारों ने मगहर में जनसभा कर अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षियों के संभावित गठबंधन पर हथौड़े जैसा सियासी प्रहार कर दिया है।
गौरतलब है कि अपने युग की विभिन्न किस्म की जड़ता, कट्टरता और पाखंड के खिलाफ कबीरदास जी साखी, सबद और रमैनी के मार्फत हथौड़े जैसा वैचारिक प्रहार किया है। काशी को मगहर से जोड़ने की कोशिश में मोदी काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं।
यूपी के संत कबीर नगर जिले में कबीर की निर्वाण स्थली मगहर (कबीर धाम) में 27 जून को पीएम मोदी ने सपा-बसपा के गठबंधन पर हमला करते हुए कहा कि ‘संत कबीर कर्मयोगी थे। वह समाज को सशक्त बनाना चाहते थे, याचक नहीं। इसके बाद संत रैदास, महात्मा फूले, महात्मा गांधी आए। सबका जोर समाज का विकास रहा। बाबा साहेब ने देश के संविधान में सबको बराबरी का अधिकार दिया, लेकिन दुर्भाग्य से इनके नाम पर राजनीति करने वाली धारा समाज को तोड़ने का प्रयास कर रही है।’ कबीर और उनके दोहों का जिक्र करते हुए पीएम कहा कि ‘कुछ दलों को राजनीतिक लाभ के लिए विकास का हरि नहीं चाहिए, उन्हें कलह और असंतोष चाहिए। ऐसे लोग जमीन से कट चुके हैं। उन्हें अंदाजा नहीं है कि संत कबीर, संत रैदास और बाबा साहेब को मानने वाले क्या सोचते हैं।’ पीएम ने कहा कि ‘अपने लोगों से मन लगाओ, विकास का हरि मिल जाएगा लेकिन उनका मन तो बंगलों में लगा है।’

पीएम ने कहा कि ‘कबीर धूल से उठे थे लेकिन माथे का चंदन बन गए। वो व्यक्ति से अभिव्यक्ति और इससे आगे बढ़कर शब्द से शब्दब्रह्म हो गए। वो विचार बनकर आए और व्यवहार बनकर अमर हो गए। संत कबीर दास जी ने समाज को सिर्फ दृष्टि देने का काम नहीं किया बल्कि समाज को जाग्रत भी किया।’ पीएम ने संतों के योगदान को याद करते हुए कहा कि ‘ये हमारे देश की महान धरती का तप है। उसकी पुण्यता है कि समय के साथ समाज में आने वाली आंतरिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए समय-समय पर ऋषियों, मुनियों, संतों का मार्गदर्शन मिला। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कालखंड में अगर देश की आत्मा बची रही, तो वो ऐसे संतों की वजह से ही हुआ।’ नरेंद्र मोदी ने श्रम संस्कृति का बखान करते हुए कबीर के श्रमजीवी स्वभाव, संस्कार पर कहा कि ‘कबीर खुद श्रमजीवी थे। वे श्रम का महत्व समझते थे लेकिन आजादी के इतने वर्षों तक हमारे नीति निर्माताओं ने कभी श्रम दर्शन को नहीं समझा। गरीबी हटाने के नाम पर गरीबों को वोट बैंक की सियासत में इस्तेमाल किया।’ प्रधानमंत्री ने संतों का सहारा लेकर जाति की जकड़न और उसके गणित को तोड़ने की सधी कोशिश की। उन्होंने कबीर साहेब के साथ ही रामानुजाचार्य, रामानंद, तुलसीदास, सूरदास, संत रविदास, तुकाराम और मीराबाई सहित चारों दिशाओं में समाज जागरण का काम करने वाले संतों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘इनमें कोई भी संत जाति पांति को नहीं मानता था।’ उन्होंने अपने संबोधन में महागठबंधन के गणित को तोड़ने की कोशिश करते हुए कहा कि ‘अंबेडकर और फुले जैसे कई महापुरुषों के नाम पर राजनीतिक धारा खड़ी करके समाज में असंतोष और अशांति पैदा करके लाभ लेने की कोशिश हो रही है। इन्हें गरीबों की सुविधाओं की नहीं, अपने परिवार की सत्ता की चिंता है।’

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के विकास कार्यों को गिनाते हुए कहा कि सरकार हर क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, कानून व्यवस्था सभी क्षेत्रों में संवेदनशीलता से काम हो रहा है जिसे लोग महसूस करने लगे हैं। केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ.महेश शर्मा ने कहा कि ‘यूपी सहित देश के 15 राज्य रामायण सर्किट से जुड़ेंगे। इसका खाका तैयार कर लिया गया है। सर्किट बनाने का काम भी जारी है।’ उन्होंने कहा कि ‘मगहर और गोरखपुर का पौराणिक इतिहास है। अब केंद्र सरकार हर संत व महापुरुष का स्मरणीय दिवस मनाती है जिसमें संत कबीर दास का नाम प्रमुख है।’ यूपी के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने कहा कि ‘24 करोड़ रुपये की लागत से कबीर अकादमी बन रही है। इसकी संबद्धता पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर से होगी।’ मगहर की जनसभा में मौजूद कबीर साहित्य के अध्येता अभिषेक प्रकाश ने कहा कि ‘हमने तो कबीर को जिंदा देखा है। अपने जेहन में। किताबों में। दीवारों पर। बड़े बुजुर्गों की जुबान में। दो चम्मच कबीर हम सब में घुला है। कबीर जैसा युवा अभिभावक जो अपनी वाणी से हमेशा नौजवान ही दिखता है। मगहर एक प्रतीक है। धर्म के पाखंड के खिलाफ। मगहर में आधुनिकता का बीज तत्व है।’ जनसभा में बस्ती जिले के हरैया से आए देवेंद्र सिंह मुतमइन ने कहा कि उपेक्षित मगहर को महत्व देकर पीएम कबीर अनुयायियों को यह संदेश देने में सफल रहे कि भाजपा कबीरदास से कम प्रेम नहीं करती है। उन्होंने कहा कि मेरे पिता स्व. जगदंबा सिंह हरैया से विधायक रहे। उन्हीं के समय से मेरा घर परिवार मगहर से जुड़ा है।

मगहर की गुफा में कबीरमय हुए मोदी
कबीर की गुफा में मोदी ने उनके आध्यात्मिक ताप को महसूस किया। कुछ देर के लिए आंखें मूंदकर ध्यान मग्न होने की कोशिश की। कबीर की गुफा के जीर्णोद्धार का भरोसा दिलाया। कबीर से जुड़े साहित्य और पांडुलिपियों को कबीर अकादमी में सुरक्षित रखने की बात कही। पीएम ने कबीर की समाधि और मजार का दर्शन किया और उसके बाद कबीर की गुफा में उतरे थे।
मोदी के साथ गुजरे वक्त और उनकी बातचीत का जिक्र करते हुए महंत विचार दास ने बताया कि उन्होंने कबीर के जीवन के बारे में अपनी जिज्ञासा शांत की। कबीर साहब ने मगहर में कितने दिन बिताया? किस कुएं से पानी पीते थे? उनकी झोपड़ी कहां थी? कबीर के अवशेष यहां पर क्या-क्या हैं?
गौरतलब है कि कबीरदास जी से जुड़े सामान खड़ाऊं, कमंडल, स्वामी रामानंद दास द्वारा दी गई चंदन की माला आदि मगहर में संग्रहालय न होने की वजह से इन्हें वाराणसी के कबीर चौरा मठ में सुरक्षित रखा गया है।
कबीर दास एक व्यक्ति, सुधारक व संत ही नहीं, समूची संस्कृति हैं। कबीरदास चादर बनते-बनते आधुनिक समाज का ताना-बाना बुन गए। कबीर को विस्मृत करने का अर्थ है सांप्रदायिक सद्भाव के सदियों पुराने इतिहास को भुलाना। अक्कड़-फक्कड़ कबीरी परंपरा से मुंह मोड़ना, अपने स्वर्णिम अतीत से पीछे हटना। कबीर की अनहद बानी है साखी, सबद और रमैनी। कबीर को अवैध संतान भी कहा जाता है। इसीलिए उन्होंने समाज धर्म और संस्कृति की अवैधताओं पर चोट की। भारतीय समाज अनगढ़ पाषाण की तरह था, जिसे हथौड़े से प्रहार कर कबीर ने एक नई शक्ल देने की कोशिश की। लुकाठी हाथ में लेकर अपने घर को फूंकने की तत्परता है कबीर में। व्यग्रता है कबीर में। इसीलिए बुनकर कबीर संत कबीर बन जाता है। यही व्यग्रता चमड़े का काम करने वाले रविदास में थी। वह भी अपने संतत्व कर्म से संत रविदास बन जाता है। कबीर ने अपने युग में सुधरो या टूटो की मुनादी कर दी थी। ढाई आखर प्रेम को पढ़ने को जरूरी बताया और मोटी मोटी पोथियों को नकार दिया। कार्ल मार्क्स के सदियों पहले कबीर का साम्यवाद तो देखिए- ‘सार्इं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाय।’

बहाना कबीरदास, निशाना 2019
मोदी ने कबीर की निर्वाणस्थली मगहर को ऐसे ही नहीं चुना। जात-पात, धर्म-सम्प्रदाय के भेदभाव और कुरीतियों से ऊपर उठकर समरसता को स्वर देने वाले कबीर के विचार वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। भाजपा की नजर पिछड़ा, दलित, वंचित और शोषित कहे जाने वाले वर्ग पर है।
कबीर के बहाने मोदी इसी वर्ग को और ठीक से साधे रहना चाहते हैं। प्रधानमंत्री मगहर आकर कबीर को नमन कर विश्व में फैले उनके प्रशंसकों व अनुयायियों के दिल में जगह बनाने की सधी कोशिश की। मोदी का मगहर में जनसभा होने के पीछे सियासी निहितार्थ छिपा हुआ है। दरअसल, उनके मन में कहीं न कहीं बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनाव हैं। 2019 में होने वाला लोकसभा चुनाव भी है। माना जाता है कि इन क्षेत्रों में कबीरदास को मानने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। मगहर के जरिये भाजपा ने दो से ढाई करोड़ कबीरपंथियों को साधने की कोशिश की है। माना जाता है कि देश दुनिया में सात करोड़ से ज्यादा कबीर पंथ के अनुयाई हैं। मगहर का संबंध गुरु गोरखनाथ और गुरु नानक देव से भी माना जाता है। यहाँ गोरखनाथ के भी भक्त आते हैं। ऐसी जगह प्रधानमंत्री की रैली हुई जिसका भविष्य में भाजपा को फायदा होने की भरपूर संभावना है। दरअसल कबीरपंथियों की अच्छी खासी तादाद है। इनमें ज्यादातर पिछड़े और दलित वर्ग के लोग हैं। मुस्लिमों के भी एक तबके में कबीर की स्वीकार्यता और मान्यता है। संभवत: इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते कबीर दास के नाम पर संत कबीर नगर जिले का सृजन किया था। लेकिन मगहर के विकास पर उनका ध्यान नहीं गया। भाजपा की रणनीति गैर भाजपा सरकारों की मगहर की अनदेखी को धार देने की है। खासतौर से दलितों और पिछड़ों को यह संदेश देने की कोशिश है कि कबीर के अनुयायियों के वोट लेने वाले गैर-भाजपाई दलों ने कबीर की निर्माण स्थली की सुधि न ले कर यह साबित कर दिया कि उन्हें सिर्फ वोट लेना आता है, काम करना नहीं। भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में आंचलिक भाषाओं और लोक विधाओं के विकास के लिए कबीर के नाम पर अकादमी की स्थापना का वादा किया था। भाजपा की रणनीति मोदी के हाथों इस वादे को पूरा कर लोगों को यह बताने की भी कोशिश है कि वही एक ऐसी पार्टी है, जो कहती है उस पर अमल भी करती है। प्रधानमंत्री मोदी का पूर्वांचल का दौरा एक तरह से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को सियासी संदेश देने के साथ दलितों और पिछड़ों को भाजपा के पक्ष में लामबंद करने की सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश का हिस्सा भी है। मोदी लगभग ढाई घंटे मगहर में रहे और 24 करोड़ रुपये से बनने वाली संत कबीर अकादमी का शिलान्यास किया।
मगहर में मोदी के आने से भाजपा के सियासी विरोधियों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। मोदी की मगहर में जनसभा के बाद सपा, बसपा और कांग्रेस ने तिलमिलाहट भरा बयान दिया। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि ‘मोदी ने पूर्वांचल के विकास के लिए बड़े बड़े वादे किए। अच्छे दिन लाने के हसीन सपने दिखाए थे। लेकिन वादों का क्या हुआ? 24 करोड़ रुपये की संत कबीर अकादमी और लगभग इतनी रकम तो सरकार ने इसके प्रचार प्रसार व कार्यक्रम के आयोजन में खर्च कर दी है, जो एक जनविरोधी कार्य का नमूना है। लोकसभा चुनाव के नजदीक मोदी सरकार को संत कबीर की याद आना वोट बैंक के स्वार्थ की राजनीति नहीं तो और क्या है?’ वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मगहर में कबीर के लिए नहीं बल्कि वोट बटोरने के लिए गए थे। भाजपा और संघ नेतृत्व अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश के महापुरुषों का इस्तेमाल करने में भी संकोच नहीं कर रहा है।’