छत्तीसगढ़- दांव पर सियासत

रमेश कुमार ‘रिपु’

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने चार जुलाई को दिल्ली में बसपा सुप्रीमो मायावती से उनके निवास पर मुलाकात की तो सियासी अटकलें लगाई जाने लगीं कि जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (छजकां) और बसपा प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन एक घंटे की मुलाकात बगैर किसी सियासी नतीजे के खत्म हो गई। इसी के साथ कांग्रेस और भाजपा दोनों की सांस में सांस आई। दोनों दल जानते हैं कि अजीत जोगी की प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग में खासी पैठ है। यह वर्ग बसपा का वोट बैंक है। 2003 से अब तक हुए चुनावों में बसपा को प्रदेश में बहुत अधिक सीटें तो नहीं मिली लेकिन बसपा का वोट बैंक कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस को हराने की क्षमता रखता है। जोगी को उम्मीद थी कि बसपा से छजकां का गठबंधन हो जाएगा मगर हुआ नहीं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी उनकी बात नहीं बनी। ऐसे में अब छजकां सभी 90 विधानसभा सीटों पर में अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी।
कांगे्रस से निकलने के बाद जोगी का यह पहला चुनाव है। यह चुनाव उनकी राजनीति का भविष्य तय करेगा। जाहिर है कि उनकी प्रतिष्ठा और सियासत दांव पर है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह छजकां को प्रदेश की तीसरी सियासी ताकत बताते रहे हैं ताकि चौथी बार भी भाजपा की सरकार बनाने में जोगी सीढ़ी के रूप में काम आ सकें। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं, ‘कांग्रेस को चिंता करनी चाहिए कि वो जोगी के चलते किस तरह अपनी सीट और वोट बचाए। भाजपा इस बार पहले से ज्यादा सीट जीतेगी।’ वहीं कांग्रेस विधायक डॉ. प्रीतम राम कहते हैं, ‘जोगी की वजह से ही पिछले तीन बार से कांग्रेस की सरकार प्रदेश में नहीं बन पाई।’

समझौते की सियासत
भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए जोगी से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने बसपा नेताओं से तालमेल की चर्चा की थी लेकिन तब प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने गठबंधन की संभावनाओं से इनकार कर दिया था। मगर अब बदले हालात में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने मायावती से दिल्ली में गठबंधन को लेकर बात की तो मायावती ने अपनी शुरुआती सहमति दे दी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को लगता है कि देशभर में पिछले कुछ महीनों में हुए विभिन्न उपचुनावों में भाजपा से मुकाबले को विपक्षी गठजोड़ से जो चौंकाने वाले नतीजे आए हैं वही नतीजे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बसपा से गठबंधन होने पर आ सकते हैं। भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए मायावती सियासी समझौते से इनकार नहीं कर सकतीं। मायावती की शुरुआती सहमति के बाद हर राज्य में बसपा को कितनी सीटें कांग्रेस देगी यह प्रदेश कांग्रेस और अन्य पदाधिकारियों से चर्चा करने के बाद राहुल गांधी तय करेंगे। मायावती भी तीनों राज्यों में अपनी पार्टी की साख को बढ़ाने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाने को कुछ शर्तों पर तैयार हैं। इस संभावना को इस बात से भी बल मिलता है कि उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ बोलने वाले बसपा के राष्ट्रीय संयोजक जय प्रकाश सिंह को पार्टी से निकाल दिया। साथ ही मायावती ने तीनों राज्यों के प्रदेश प्रभारियों को निर्देश दिया है कि वे अंतिम फैसले होने तक गठबंधन से संबंधित बयान न दें।
छत्तीसगढ़ में बसपा 5 से 7 फीसदी वोट हर चुनाव में पाती आई है। कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में 0.73 फीसदी वोट से हारी थी। जाहिर है कि यदि बसपा का साथ मिल जाता है तो कांग्रेस सफलता का स्वाद चख सकती है। प्रदेश में अनुसूचित जाति के 11 फीसदी वोट हैं। अनुसूचित जाति के लोगों पर जोगी का भी प्रभाव है। इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जोगी को शह देते आए हैं। लेकिन बसपा से कांग्रेस का तालमेल होने पर रमन सिंह का दांव उलटा पड़ सकता है। बिलासपुर संभाग में बसपा की पैठ है। कांग्रेस और बसपा में गठबंधन होता है तो कांग्रेस बसपा को 10 सीटें दे सकती है।

जाति की रणनीति
कांग्रेस ने इस बार एससी-एसटी और ओबीसी वोटरों को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाई है। प्रदेश में ओबीसी 46 फीसदी, आदिवासी 32 फीसदी, अनुसूचित जाति के 11 फीसदी और 7.10 फीसदी सवर्ण वोटर हैं। इन वोटरों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। अनुसूचित जाति से शिव डहरिया और अनुसूचित जनजाति से रामदयाल उइके को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। जबकि प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ओबीसी समुदाय से हैं। वहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव सवर्ण हैं तो आदिवासी नेता कवासी लखमा को सदन में पार्टी का उपनेता बनाया गया है। इस जातिगत समीकरण से कांग्रेस ने भाजपा का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ का एक तरीके से तोड़ निकाला है। प्रदेश की आरक्षित 29 आदिवासी सीटों में 18 पर कांग्रेस का और 11 पर भाजपा का कब्जा है। जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटों में से नौ सीट भाजपा के पास है और एक कांग्रेस के पास। संभाग के लिहाज से बस्तर की 12 सीटों में आठ कांग्रेस के और चार भाजपा के खाते में हैं। सरगुजा की 14 सीटों में दोनों के पास सात-सात सीटें हैं। बस्तर में भाजपा को पिछले चुनाव में तगड़ा झटका लगा था। इसलिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक पिछले एक साल से बस्तर पर नजर टिकाए हुए हैं। उनका दावा है कि रमन सरकार ने बस्तर में उम्मीद से अधिक काम किया है इसलिए इस बार भाजपा को यहां सभी सीटें मिलने की संभावना है। भाजपा इस बार 65 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। पार्टी ने 30 फीसदी नए चेहरों को मौका देने का फैसला किया है। पार्टी की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा चाहती है कि उसे अधिक से अधिक सीट मिलें तो महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष पूजा विधानी ने 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की मांग की है।

सभी सीटों पर जोगी फैक्टर
अजीत जोगी की पार्टी को हल जोतता किसान का सिंबल मिला है। पार्टी प्रदेश में अधिकार यात्रा निकालने जा रही है। यह यात्रा 45 दिनों तक चलेगी। पूर्व मुख्यमंत्री होने की वजह से उनका पूरे प्रदेश में व्यक्तिगत सियासी वजूद है। हर विधानसभा क्षेत्र में उनके कम से कम 5-10 हजार वोट हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जोगी की पार्टी 4-6 सीटें जीत सकती है। बलौदाबाजर के ओंकार सतनामी कहते हैं, ‘गुरु घासीदास के बाद छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज में जोगी से अधिक कोई लोकप्रिय नहीं है। वे पूज्यनीय हैं। उनकी पार्टी को 10-13 सीटें मिलेंगी। प्रदेश में जितनी भी अन्य पार्टियां हैं वे जोगी से अधिक लोकप्रिय नहीं हैं। इस वजह से उनसे अधिक उन्हें वोट नहीं मिलेगा। पहला चुनाव है इसलिए जोगी की पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहेगी लेकिन जोगी फैक्टर से भाजपा और कांग्रेस दोनों का अहित है।’ धरमजीत सिंह, सियाराम कौशिक और अमित जोगी अब कांग्रेस में नहीं हैं। अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी को कांग्रेस इस बार कोटा सीट से टिकट शायद ही दे। जोगी कई बार कह चुके हैं कि रेणु जोगी को मेरी पार्टी में आना ही पड़ेगा। रेणु जोगी को उपनेता पद से हटा दिया गया है। उन्हें मानसून सत्र से पहले कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भी नहीं बुलाया गया। विधानसभा में रेणु जोगी का सवाल अमित जोगी द्वारा पूछे जाने पर सदन में खासा हंगामा हुआ।

भाजपा की मंशा
जोगी कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए तेजधार वाला चाकू हैं। वे राजनीतिक आदिवासी हैं लेकिन आदिवासियों का एक गुट उन्हें आदिवासी नेता नहीं मानता। भाजपा को भरोसा है कि कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक में जोगी की सेंध से कांंग्रेस को नुकसान होगा। कांग्रेस अपने वोट को बचाने के लिए जोगी से भिड़ेगी और भाजपा बीच से निकल जाएगी। हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता सुनील शुक्ला कहते हैं, ‘जोगी कोई फैक्टर नहीं हैं। यह केवल भाजपा की अफवाह है। उसे लगता है कि ऐसा करने से कांग्रेस को नुकसान होगा जबकि जोगी के जाने से कांग्रेस को ही लाभ होगा। अभी तक जोगी ही भाजपा को लाभ पहुंचाते रहे हैं। प्रदेश में अगर जोगी फैक्टर प्रभावी होता तो उनका बसपा से गठबंधन हो जाता। इस चुनाव से स्पष्ट हो जाएगा कि जोगी कितने पानी में हैं।’ प्रदेश में चौथी बार भी सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह हर दांव आजमा रहे हैं। हालांकि वे मान रहे हैं कि विधायकों और मंत्रियों के काम काज से जनता में नाराजगी है। इसे कम करने के लिए 25-30 विधायकों का टिकट काट कर नए चेहरों को प्राथमिकता देने पर विचार चल रहा है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हंै, ‘जिला और ब्लॉक स्तर पर भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है। आम आदमी का भाजपा से मोह भंग हो चुका है। अगली सरकार हमारी बनेगी।’ इसके जवाब में भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हंै, ‘कांग्रेस झूठ की राजनीति कर रही है। उसे विकास दिखता नहीं या कहें कि वो देखना नहीं चाहती। भाजपा सिर्फ विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। चूंकि भाजपा में कांग्रेस की तरह बिखराव नहीं है इसलिए उसे खतरा नहीं है।’ 

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