चारों खाने चित हुआ विपक्ष

हरियाणा

जाट आरक्षण आंदोलन, किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन और ऐसे कई मुद्दों पर हंगामे के बीच हरियाणा की सभी दस सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की. हरियाणा में किसी दूसरी पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया. पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्रवाई का असर यहां देखने को मिला और भारतीय जनता पार्टी ने 58 प्रतिशत वोट हासिल किए. हरियाणा में जाटों की राजनीति करने वाली भारतीय राष्ट्रीय लोकदल का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. उसका एक बड़ा कारण पारिवारिक कलह को भी माना जा सकता है. चुनावसे कुछ महीने पहले ही पार्टी में विभाजन हो गया, जिसका खामियाजा दोनों धड़ों को भुगतना पड़ा.

हरियाणा की राजनीति में दखल देने की कोशिश करने वाली आम आदमी पार्टी को भी निराशा हाथ लगी. उसने इनेलो से टूटकर बनी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन दोनों ही पार्टियों को मुंह की खानी पड़ी. हालांकि, राज्य में पडऩे वाले वोटों पर नजर डालें, तो ऐसा लगता है कि अगर सारी पार्टियां एक हो जातीं, तो भी यहां भाजपा का मुकाबला नहीं कर पातीं, क्योंकि भाजपा ने यहां 58 प्रतिशत वोट हासिल किए. कांग्रेस को यहां 28.4 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन वह एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई. सामान्य तौर पर यहां की राजनीति जाट और गैर जाटों के बीच बंटी हुई है और सारी पार्टियां जाटों को अपनी ओर करने की रणनीति पर काम करती हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने एक नई रणनीति बनाई थी. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने यहां एक गैर जाट को मुख्यमंत्री बनाया. भाजपा की यह रणनीति काम आई, लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि यहां के जाट भाजपा और खट्टर से बहुत खुश हैं.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में जाट आरक्षण आंदोलन हुआ. इसके अलावा राम रहीम की गिरफ्तारी के खिलाफ भी हिंसक प्रदर्शन हुए. माना जा रहा था कि खट्टर के कारण राज्य में भाजपा को नुकसान हो सकता है, लेकिन लोगों ने खट्टर की सारी गलतियों को माफ करते हुए मोदी के पक्ष में जमकर मतदान किया. हरियाणा के लोगों ने हर उम्मीदवार को मोदी मानकर वोट किया, जिसका परिणाम सामने है.

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