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सत्ता, ससुराल और सियासत यानी तीन ऐसी धुरी, जिनके घेरे में लालू के बड़े ‘लाल’ तेज प्रताप यादव का राजनीतिक करियर इन दिनों हिचकोले खा रहा है. लोकसभा चुनाव के आगाज के साथ ही यह अनुमान लगने लगा था कि अब आर-पार का समय आ गया है. खुद को कभी ‘कृष्ण’ और तेजस्वी को ‘अर्जुन’ बताने वाले तेज प्रताप की हताशा इतनी बढी़ हुई है कि अब वह इशारों ही इशारों में खुद को दुर्योधन से पांच गांव मांगने वाला ‘युधिष्ठिर’ बताने लगे हैं. वह यह भी कह रहे हैं कि पांच गांव न मिलने पर क्या हुआ था, बताने की जरूरत नहीं है.

तेज प्रताप की धमकियों से बेपरवाह राजद ने अपने हिस्से की सभी सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है और अब यह साफ हो गया कि पार्टी ने तेज प्रताप की मांगों को कोई तवज्जो नहीं दी. तेज प्रताप ने सार्वजनिक तौर पर शिवहर से बिल्डर अंगेश सिंह और जहानाबाद से चंद्र प्रकाश यादव को टिकट देने की मांग की थी. इसके अलावा उन्होंने यह इच्छा भी जाहिर की थी कि सारण से उनके ससुर चंद्रिका राय को टिकट न दिया जाए, क्योंकि वह परिवार की पुश्तैनी सीट है और वहां से राबड़ी देवी को हर हाल में चुनाव लड़ाया जाए. लेकिन, राजद आलाकमान ने तेज प्रताप यादव की मांगों को सिरे से खारिज कर यह संदेश दे दिया कि शांत रहने में ही उनकी भलाई है. जैसे ही ऐलान हुआ कि शिवहर से अंगेश सिंह को नहीं, बल्कि पत्रकार सैयद फैसल अली को लड़ाया जाएगा, तेज प्रताप खेमे में सन्नाटा पसर गया. देर रात ट्विटर पर तेज प्रताप ने अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए लिखा, दुर्योधन वह भी नहीं दे सका, आशीष समाज का ले न सका. उलटे हरि को बांधने चला, जो था असाध्य, साधने चला. जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है. दरअसल, राजद आलाकमान के फैसले के बाद तेज प्रताप के पास विकल्प काफी कम बचे हैं. या तो उन्हें पार्टी का हर फैसला मानना होगा या फिर ऐलान के मुताबिक, शिवहर एवं जहानाबाद में अपने प्रत्याशी उतारने होंगे और सारण में अपने ससुर चंद्रिका राय को भी चुनावी अखाड़े में चुनौती देनी होगी. जानकार बताते हैं कि तेज प्रताप दूसरा विकल्प ही चुनेंगे और नतमस्तक होने के बजाय संघर्ष का रास्ता अपनाएंगे.

तेज प्रताप के इस फैसले की घड़ी का विश्लेषण करने से पहले उनके जीवन के कुछ पुराने पन्ने पलटने होंगे. यह जानना बहुत जरूरी है कि सत्ता की राजनीति से दूर रहकर भक्ति भाव में डूबा रहने वाला शख्स आखिर क्यों चंद सीटों के लिए आर-पार की सियासी जंग के लिए ताल ठोंक रहा है. दरअसल, भगवान की भक्ति और अपने दोस्तों के साथ समय बिताना तेज प्रताप को बेेहद पसंद था. आज भी इसमें बहुत बदलाव नहीं हुआ है. लेकिन, सूबे की सियासत ऐसी बदली कि उन्हें चुनाव लडऩा पड़ा और नीतीश सरकार में मंत्री भी बनना पड़ा. नई जिम्मेदारियों के कारण राजनीति में सक्रिय रहना तेेज प्रताप की मजबूरी बन गई. इससे पहले जब सरकार बन रही थी, उस समय कई लोगों ने कहा कि उपमुख्यमंत्री न बनाए जाने से तेज प्रताप नाराज हैं, लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि तेज प्रताप ने उस समय मंत्री न बनने की इच्छा जाहिर की थी. उन्होंने लालू प्रसाद एवं राबड़ी देवी से कहा था, आप लोग मुझे अपनी जिंदगी में लौट जाने दीजिए. लेकिन सियासत के माहिर लालू प्रसाद को इसका पूरा एहसास था कि अगर तेज प्रताप को मंत्री न बनाया गया, तो संदेश जाएगा कि नंबर दो का ओहदा न मिलने से वह नाराज हो गए हैं और मंत्री नहीं बन रहे हैं. ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए लालू प्रसाद ने उन्हें मंत्री बनने के लिए मना लिया. उस समय तेज प्रताप के दिल में ऐसी कोई बात नहीं थी कि तेजस्वी को नंबर दो की कुर्सी पर बैठाया जा रहा है, तो उनका अपमान हो रहा है. हालांकि, राजकाज में उनका बहुत दिल कभी नहीं लगा और वह अपनी पुरानी जिंदगी में ही मस्त रहे.

इसी दौरान ऐश्वर्या राय से उनकी पुरानी दोस्ती परवान चढऩे लगी. परिवार वालों ने भी उनकी इस दोस्ती पर कभी ऐतराज नहीं जताया. लेकिन, दिक्कत तब आने लगी, जब तेज प्रताप पर ऐश्वर्या से शादी का दबाव बढऩे लगा. तेज प्रताप इस दोस्ती को अभी और आगे ले जाना चाहते थे और शादी कुछ सालों के लिए टालना चाहते थे, लेकिन मां राबड़ी और पिता लालू प्रसाद का दबाव इतना बढ़ा कि आखिरकार तेज प्रताप ने शादी के लिए ‘हां’ कर दी. बहुत धूमधाम से तेज प्रताप एवं ऐश्वर्या की शादी हुई और कहा जाने लगा कि लालू प्रसाद के परिवार में ‘लक्ष्मी’ आ गई. लेकिन, भाग्य को कुछ और ही मंजूर था. तेज प्रताप एवं ऐश्वर्या के रिश्तों में खटास आ गई और नौबत तलाक तक पहुंच गई. बताया जाता है कि तेज प्रताप अपने परिवार में ससुराल का बहुत हस्तक्षेप पसंद नहीं कर रहे थे. लालू एवं राबड़ी के ‘दुलरुआ’ तेज प्रताप चाहते थे कि पारिवारिक मामलों में सब कुछ उनके कहे मुताबिक हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद रिश्ता इतना बिगड़ा कि तेज प्रताप कभी वृंदावन, तो कभी मथुरा रहने लगे. पटना में तभी आए, जब उन्हें अपना नया सरकारी आवास मिला. आज स्थिति यह है कि ऐश्वर्या राबड़ी देवी के साथ रहती हैं और तेज प्रताप अपने सरकारी आवास पर. परिवार वालों का कहना है कि तेज प्रताप को राबड़ी आवास में आकर रहना चाहिए, लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हैं. इन्हीं वजहों से तेज प्रताप का गुस्सा इतना बढ़ा कि उन्होंने अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ ही निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया.

sasural-satta-aur-siyasat-2तेज प्रताप यादव कहते हैं, मेरे परिवार और पार्टी को कुछ चापलूसों ने घेर लिया है, जिनकी एकमात्र मंशा है कि सामाजिक न्याय की ताकतें कमजोर हों. बकौल तेज प्रताप, लालू प्रसाद एक विचारधारा का नाम है और देश-दुनिया में उनके करोड़ों चाहने वाले हैं. कुछ लोग परिवार में फूट डालने का काम करते रहते हैं. तेज प्रताप दावा करते हैं कि जल्द ही ऑपरेशन करके चापलूसों को बाहर कर देंगे. वहीं राजद से जुड़े भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि भाजपा और नीतीश कुमार से जुुड़े कुछ प्रभावशाली लोग तेज प्रताप को भडक़ाने में लगे हैं. ऐसे लोग चाहते हैं कि लालू परिवार में फू ट पड़े और वे राजनीतिक लाभ उठा सकें. सूत्रों का दावा है कि भाजपा और नीतीश से जुड़े लोग लगातार या कहिए, तो रोज तेज प्रताप से बात करके उन्हें भडक़ाते हैं. सुशील मोदी ने हाल में कहा कि तेज प्रताप लालू के असली उत्तराधिकारी हैं. मोदी के निशाने पर हमेशा तेजस्वी रहे हैं. भाजपा और जदयू से जुड़े लोग बार-बार कह रहे हैं कि बड़ा बेटा होने के नाते सत्ता पर पहला अधिकार तेज प्रताप का बनता है. भाजपा प्रवक्ता नवल यादव कहते हैं कि जनता दरबार लगाकर तेज प्रताप गरीबों की समस्याएं सुन रहे थे, तो क्या गलत कर रहे थे, लेकिन तेजस्वी के दबाव में तेज प्रताप को उनके लोकतांत्रिक अधिकार से भी वंचित कर दिया गया. उन्होंने लोकसभा की केवल दो सीटें ही मांगी थीं, कोई गुनाह तो नहीं किया. लेकिन, अपने अहंकार के चलते तेजस्वी ने अपने बड़े भाई की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा. नवल यादव कहते हैं, राजद पर तेज प्रताप का कोई हक नहीं है क्या? वह लालू प्रसाद के बड़े बेटे हैं, इसलिए राजद पर ज्यादा अधिकार उनका ही बनता है.

आरोप-प्रत्यारोप एवं दावों से अलग बात करें, तो राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लालू परिवार और राजद में फूट सूबे में कई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म देती है. लोकसभा चुनाव में तो ‘मोदी-मोदी’ की गूंज है, लेकिन जैसे ही यह शोर थमेगा, विधानसभा चुनाव की चिंता नेताओं को सताने लगेगी. यादवों एवं मुसलमानों की एकजुटता और उसमें कुशवाहा, मांझी एवं सहनी का तडक़ा महागठबंधन को 123 के जादुई आंकड़े से आगे ले जाने की ताकत रखता है. अगर ‘माय’ समीकरण नहीं बिगड़ा, तो एनडीए को विधानसभा चुनाव में दिन में तारे गिनने पड़ जाएंगे. इसलिए कोशिश जारी है कि पहले लालू परिवार में ही दरार पैदा हो जाए. पारिवारिक उपेक्षा से आहत तेज प्रताप न चाहते हुए भी राजनीति में डूबने लगे हैं. उन्हें लगता है कि कुछ चापलूसों ने तेजस्वी को गुमराह कर चंद्रिका राय को सारण से टिकट दिला दिया. जब उनका ऐश्वर्या के साथ तलाक का मामला अदालत में चल रहा है, तो कम से कम ऐसे समय में ससुराल पक्ष से परहेज करना चाहिए. वहीं तेजस्वी खेमे का कहना है कि दोनों परिवारों में एकजुटता बनी रहे, इसलिए अच्छा संदेश देने के लिए तेज प्रताप के ससुर चंद्रिका राय को सारण के अखाड़े में उतारा गया है.

अब बात जो भी हो, लेकिन सच्चाई यह है कि चंद्रिका राय को टिकट देने से तेज प्रताप यादव खासे नाराज हैं. इसके अलावा उनके समर्थकों को टिकट न मिल पाना हालात को और बिगाडऩे में सहायक हुआ है. विरोधी चाहते हैं कि तेज प्रताप अपनी बातों पर अड़े रहें, बागी उम्मीदवारों की मदद करें और खुद बतौर निर्दलीय उम्मीदवार सारण में उतरें. विरोधी चाहते हैं कि राजद के मुकाबले एक समानांतर राजद तेज प्रताप के नेतृत्व में खड़ा हो जाए, ताकि ‘माय’ समीकरण बिगडऩे की संभावना प्रबल हो सके. तेज प्रताप ने पहले ही लालू-राबड़ी मोर्चा बना रखा है. राजद के ऐसे नेता, जिन्हें लोकसभा का टिकट नहीं मिला, वे तेजस्वी से खासे नाराज हैं. राजनीति यह है कि ऐसे नेताओं को तेज प्रताप के नेतृत्व में गोलबंद कर दिया जाए. राजद से निराश होकर विधानसभा का टिकट चाहने वाले बहुत सारे नेता तेज प्रताप के झंडे के नीचे आ सकते हैं. सीधा गणित है कि तेज प्रताप जितने मजबूत होंगे, तेजस्वी उतने ही कमजोर होते जाएंगे और ऐसी ही तस्वीर की कल्पना विरोधी कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि तेज प्रताप की हरकतों से आजिज होकर लालू परिवार ने भी उनसे किनारा कर लेने का मन बना लिया है. उनके समर्थकों को टिकट न देेकर इसकी झलक दिखा दी गई है. अगर तेज प्रताप अब भी न माने, तो लोकसभा चुनाव के बाद उनके खिलाफ कुछ कड़े फैसले भी लिए जा सकते हैं. तेजस्वी को भी एहसास है कि उनके बड़े भाई को भडक़ाने में बहुत सारे लोग लगे हैं, जो पर्दे के पीछे रहकर दोनों भाइयों में दरार पैदा कर रहे हैं. इस संदर्भ में तेजस्वी यादव के हालिया ट्वीट पर गौर कीजिए. तेजस्वी ने कहा, सुनो भाजपाई…, शेर का बेटा हूं, बिहार की महान माटी का लाल हूं. तुम्हारी गीदड़ भभकी से नहीं डरता. मां का दूध पिया है, तो सीधे लड़ो, कायरों की तरह क्यों दुबक कर लड़ रहे हो.

जाहिर है, इन सब बातों को हर कोई समझ रहा है, लेकिन राजनीतिक और पारिवारिक हालात ऐसे बन गए हैं कि पूरा मामला सुलझने के बजाय रोज उलझता जा रहा है. तेज प्रताप के दिल में अपने छोटे भाई के लिए अपार प्यार है. तेजस्वी भी चाहते हैं कि पूरा परिवार एक रहे, लेकिन रास्ता निकल नहीं रहा है. दूसरी तरफ विरोधी चाहते हैं कि राजद में जल्द से जल्द बिखराव हो, ताकि विधानसभा चुनाव का रास्ता आसानी से तय हो सके. कहते हैं, कुछ चीजों का फैसला, जिसे इंसान नहीं कर पाता, वक्त कर देता है. तेज प्रताप प्रकरण के पटाक्षेप के लिए भी वक्त का इंतजार करना सही होगा. कहानी शुरू है, तो उसका अंत भी होगा. लेकिन, इस पारिवारिक और सियासी कहानी का अंत किसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचाता है और किसे झटका लगता है, यह अब जल्द ही दिखने लगेगा.