पंजाब
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इज्जत बचा ली. यहां भाजपा गठबंधन कोई खास कमाल नहीं कर पाया. पूरे देश में चल रही मोदी लहर का असर पंजाब में नहीं दिखा और उसका सबसे बड़ा श्रेय मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को जाना चाहिए. कैप्टन ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी कमान अपने हाथ में रखी थी और कांग्रेस के रणनीतिकारों को पंजाब से दूर रहने की सलाह दी थी. लोकसभा चुनाव में भी कैप्टन ने पंजाब की कमान अपने पास रखी और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं को ज्यादा भाव नहीं दिया, जिसके कारण वह नाराज भी थे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी पंजाब में ज्यादा हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि उन्हें कैप्टन के नेतृत्व पर भरोसा है. यही कारण है कि मोदी लहर के बावजूद पंजाब की 13 में से केवल चार सीटें एनडीए को मिल सकीं यानी भाजपा और अकाली दल के खाते में दो-दो सीटें गईं. कांग्रेस ने यहां 8 सीटों पर जीत हासिल की. इस लोकसभा चुनाव में पंजाब ने एक अन्य पार्टी की लाज बचाई. दिल्ली में बुरी तरह हारने वाली आम आदमी पार्टी को एक सीट यहीं से मिल पाई. आम आदमी पार्टी को पिछली बार यहां चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन एक साल के भीतर ही दो सांसदों ने केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी. इस बार अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चा के दौरान दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा और गोवा में भी साथ चुनाव लडऩे की शर्त रखी थी, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नकार दिया, क्योंकि उन्हें अपने राज्य में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का भरोसा था. दिल्ली के बाद अरविंद केजरीवाल ने सबसे ज्यादा प्रचार पंजाब के लिए किया था, लेकिन यहां आम आदमी पार्टी को केवल एक सीट मिल सकी. संगरूर में भगवंत मान ने कांग्रेस को हराकर आम आदमी पार्टी की इज्जत बचा ली. पंजाब में कांग्रेस को जहां 40.1 प्रतिशत वोट मिले, वहीं अकाली दल को 27.4 प्रतिशत. भाजपा को 9.6 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 7.7 प्रतिशत वोट मिले.