गोवा। अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर आतंकवाद का मुद्दा उठाना भारत की पहली प्राथमिकता है, लेकिन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन के बाद जैश, लश्कर को आतंकवादी घोषित करने पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। पांचों सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत गोवा घोषणापत्र में भारत की उन चिंताओं का ज़िक्र नहीं है,  जो सत्र के दौरान या प्रारंभिक सत्र के दौरान उठाई गई थीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को गोवा में शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों को बताया कि भारत के पड़ोस में आतंकवाद का ‘मदरशिप’ चल रहा है, जो विकास और आर्थिक वृद्धि के ब्रिक्स के लक्ष्यों के लिए खतरा है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद को पनाह देने वाले भी आतंकवादियों जितना ही बड़ा खतरा हैं।

घोषणापत्र में आग्रह किया गया है कि आतंकवाद के ठिकानों को खत्म किया जाए और देशों को व्यापक पहल करनी होगी, जिसमें कट्टरपंथ से निपटना, आतंकियों की भर्ती रोकना और आतंकवाद को वित्तपोषण खत्म करना शामिल है। इंटरनेट व सोशल मीडिया पर भी आतंकवाद से टक्कर लेनी होगी।

सचिव अमर सिन्हा ने कहा कि घोषणापत्र में ‘विचारों पर फोकस’ किया गया है। उन्होंने कहा कि वे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे ‘पाकिस्तान-स्थित गुटों को आतंकवादी घोषित करने को लेकर सर्वसम्मति हासिल नहीं कर सके, क्योंकि वह सिर्फ भारत और पाकिस्तान से जुड़ा मामला हो जाता (हालांकि चीन भी पूर्व में लश्कर को खतरा मानता रहा है), लेकिन घोषणापत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित किए जा चुके संगठनों से निपटने की ज़रूरत पर बल दिया गया है। अमर सिन्हा ने बताया कि अधिकारी इससे भी ‘काफी संतुष्ट’ हैं। वैसे, घोषणापत्र में आईएसआईएस, अलकायदा और जुबहात-उल-नुसरा का ज़िक्र किया गया है।

प्राथमिक सत्र के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ‘क्षेत्रीय समस्याओं के राजनैतिक समाधान’ तलाशे जाने का आह्वान किया था, जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता की ज़रूरत से जोड़कर देखा जा रहा है।

उड़ी में सेना के कैम्प पर हुए आतंकवादी हमले और सीमापार से आतंकवाद की अन्य घटनाओं को लेकर पाकिस्तान पर अंगुली उठाने के मामले में चीन के दोहरे रवैये की वजह से भारत-चीन संबंधों में भी खटास व्याप्त रही है,  लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स देशों को चेताया कि आतंकवाद को लेकर चुनिंदा रवैया नुकसान पहुंचा सकता है।