बहुला चतुर्थी और ललही छठ

PBPNM 130 अगस्‍त को ‘बहुला चतुर्थी’ और 1 सितंबर को ‘ललही छठ’ है। एक का संबंध गणेश जी से है तो दूसरे का भगवान कृष्‍ण के बड़े भाई बलराम से। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी कहा जाता है। संतान की खुशहाली के लिए बहुला चतुर्थी व्रत रखा जाता है तो ललही छठ संतान की लंबी आयु का व्रत है।

भगवान कृष्ण ने इस चतुर्थी के माध्यम से गाय के महत्व के साथ-साथ मां और संतान के प्रेम का भी वर्णन किया है। बहुला चतुर्थी को माताएं व्रत रखकर अपनी संतान की रक्षा और सुखद भविष्य की कामना करती हैं। जिनकी संतान पर शनि की साढ़ेसाती,  ढैय्या चल रही हो,  उन्हें यह व्रत खासतौर पर रखना चाहिए। सेहत ठीक न होने पर संतान से यह व्रत करवाना चाहिए।

ऐसे रखें व्रत

इस व्रत में अन्न नहीं खाया जाता। शाम को भगवान गणेश,  गाय,  उसके बछड़े और शेर की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करनी चाहिए। जो भी पकवान बनाएं,  उसका भोग गौ माता को लगाएं। देश के कुछ भागों में जौ और सत्तू का भी भोग लगाया जाता है। इसी भोग लगे भोजन को व्रत करने वाली महिलाएं ग्रहण करती हैं। रात को चंद्रमा के उदय होने पर गणेश और चतुर्थी माता को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य के बाद मीठा भोजन कर सकते हैं।

                                                                                                  बलराम जी का जन्मोत्सवHalshashthi

हलषष्ठी पूर्वांचल में (उत्तर प्रदेश, बिहार) ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से दो दिन पूर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को उनके बड़े भाई शेषनाग के अवतार बलराम जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। मथुरा मंडल और भारत के समस्त बलदेव मंदिरों में ब्रज के राजा बलराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनता है।

बलराम का प्रमुख अस्त्र हल और मूसल है। हल कृषि प्रधान भारत का प्रतीक है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र की कामना को लेकर व्रत रखती हैं। महुआ की दातुन की जाती है। इस दिन गाय के दूध, दही और घी का उपयोग नहीं होता। इस दिन ग्रामीण अंचल के घरों के आंगन में तालाब बनाकर,  उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाते हैं।

इस तालाब के चारों ओर आसपास की महिलाएं विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। इस दिन महिलाएं हल द्वारा जोते-बोए हुए जमीन का अन्न ग्रहण नहीं करतीं। व्रती माताएं केवल भैंस के दूध,  दही और घी का ही इस दिन प्रयोग करती हैं। इस व्रत की पूजा के लिए भैंस के गोबर से पूजा घर में दीवार पर हर छठ माता का चित्र बनाया जाता है। गणेश और माता गौरा की पूजा की जाती है।

 

 

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