बाबरी मस्जिद विवाद का हल कोर्ट से बाहर करने और राम मंदिर बनाने के मसले पर मध्यस्थता करने की आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर की कोशिशों को झटका लगता हुआ नजर आने लगा है। यही नहीं आर्ट अॉफ लिविंग के संस्थापक के इस मसले पर सक्रिय होने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। गुरुवार को श्री श्री इस मसले के पक्षकारों से बातचीत करने अयोध्या पहुंचे। हालांकि उन्हें सरकार ने या कोर्ट ने मध्यस्थ नियुक्त नहीं किया है। उन्होंने खुद ही मध्यस्थता करने की पहल की थी जिसके बाद से ही सवाल उठने शुरू हो गए थे मगर अब यह घमासान में तब्दील होता जा रहा है।

गुरुवार को अयोध्या पहुंचने के बाद श्रीश्री ने राम जन्मभूमि के पक्षकार नृत्य गोपालदास से मुलाकात की। मुलाकात के बाद बाहर उन्होंने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि माहौल सकारात्मक है और लोग इस विवाद से बाहर आना चाहते हैं। मुझे पता है यह आसान नहीं है। पहले मुझे सबसे बात करने दें, अभी किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल उनके पास इस विवाद के समाधान का कोई फॉर्मूला या प्रस्ताव नहीं है। वे अभी दोनों पक्षों से बातचीत कर रहे हैं। दोनों पक्षों का रवैया बहुत सकारात्मक है।

बातचीत से हल होना होता तो कब का हो चुका होता ः योगी

मुझे नहीं लगता है कि बातचीत से हल निकलेगा लेकिन अगर होता है तो बहुत अच्छा है। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे में कहीं पार्टी नहीं है। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब मैं अयोध्या गया था तब मैंने ये बात कही थी कि अगर दोनों पक्ष किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं और सुलह के साथ आते हैं तो सरकार इस पर विचार कर सकती है। हमें धैर्यपूर्वक कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि श्री श्री रविशंकर से राम मंदिर के मसले पर विस्तार से बातचीत नहीं हुई। उनसे उनकी मुलाकात शिष्टाचार भेंट थी। उन5 दिसम्बर से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना होनी है।
जेल गए हम, लाठियां हमने खाई, रविशंकर कहां से आ गए ः वेदांती

इससे पहले बुधवार को भाजपा के पूर्व सांसद तथा राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉ.रामविलास दास वेदांती ने श्रीश्री की मध्यस्थता पर नाराजगी जताते हुए था कि हमें उनका फार्मूला मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हम जेल गए, लाठियां खाई और अचानक से श्रीश्री रविशंकर आ गए। रविशंकर तब कहां थे जब हम संघर्ष कर रहे थे। वे फैसला करने वाले कौन होते हैं। अयोध्या में राम मंदिर बनेगा तो ठीक है, वरना किसी भी कीमत पर मस्जिद नहीं बनने दिया जाएगा। राम मंदिर के लिए चाहे जितना बालिदान देना पड़े, हम पीछे नहीं हटेंगे।

वेदांती ने श्रीश्री पर यह आरोप भी लगाया कि उन्होंने बहुत संपत्ति बनाई, अब जांच से बचने के लिए राम मंदिर मुद्दे में कूद पड़े हैं। उन्हें अपना एनजीओ चलाना चाहिए और विदेशी फंड को जमा करना चाहिए। उन्हें इस मामले में नहीं पडऩा चाहिए। वह चाहते हैं कि मंदिर और मस्जिद एक साथ बने लेकिन उनका फॉर्मूला हमें मंजूर नहीं।

विहिप भी विरोध में

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी श्रीश्री रविशंकर का विरोध शुरू कर दिया है। विहिप का कहना है कि अगर रविशंकर के पास मुसलमानों की विवादित स्थल से बेदखली के अलावा कोई और प्रस्ताव हो तो पेश करे। अगर वह इस लायक होगा तो कमेटी की बैठक बुलाई जाएगी। विहिप ने रविशंकर की बैठक का बहिष्कार कर दिया है। विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा है कि वह श्रीश्री की समझौता वार्ता में शामिल नहीं होंगे। श्रीश्री रविशंकर चाहते हैं कि अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनों बन जाएं, लेकिन मंदिर आंदोलन से जुड़े हिंदू साधु-संत इसके लिए तैयार नहीं हैं। विहिप ने बयान जारी कर साफ कहा कि बातचीत की जरूरत नहीं है। पुरातत्व सबूत हिंदुओं के पक्ष में हैं और कोर्ट सबूतों से चलती है।

विहिप पर घोटाले का आरोप

इस विवाद के बीच निर्मोही अखाड़े ने विहिप पर राम मंदिर के नाम पर घोटाला करने का संगीन आरोप लगाया है। अखाड़े के सदस्य सीताराम ने आरोप लगाया कि विहिप ने राम मंदिर के नाम पर 1,400 करोड़ रुपये का घोटाला किया है। उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा कि विहिप के लोग 1,400 करोड़ रुपया खा गए। विहिप ने मंदिर निर्माण के लिए घर-घर घूम कर एक-एक ईंट मांगी, पैसा जमा किया और फिर इस पैसे को खा गए। उन्होंने कहा कि जितने फर्जी न्यास बने हैं वे मुसलमानों को मजबूत करना चाहते हैं। रामलला यानी निर्मोही अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा यानी रामलला। विहिप ने उनके इस आरोप को निराधार बताया है। विहिप के पदाधिकारी विनोद बंसल ने कहा कि राम मंदिर के लिए विहिप ने कभी किसी से एक पैसा नहीं लिया। हर साल इसका ऑडिट होता है। हमारे पास एक-एक पैसे का हिसाब है। मालूम हो कि निर्मोही अखाड़ा इस मामले में एक पक्षकार है।

मुस्लिम संगठनों को भी शक

उधर मुस्लिम संगठनों ने भी श्रीश्री के सुलह प्रयासों की कामयाबी पर संदेह जताया है। इन संगठनों ने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के बयानों को भी खारिज करते हुए अनावश्यक बताया। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रेहमानी ने कहा कि 12 साल पहले भी श्रीश्री ने सुलह के प्रयास किए थे। नतीजे में कहा गया था कि विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दिया जाए। इस बार श्रीश्री क्या फॉर्मूला लाएं हैं, उन्हें पहले यह बताना चाहिए।

राज्यपाल बोले, सुप्रीम कोर्ट का फैसला बंधनकारी होगा

वहीं उप्र के राज्यपाल राम नाईक ने उम्मीद जताई कि श्रीश्री द्वारा किए जा रहे प्रयास सार्थक होंगे और अयोध्या विवाद का शांतिपूर्वक हल हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बंधनकारी होगा। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को अयोध्या विवाद बातचीत से हल करने का सुझाव दिया था। कोर्ट 5 दिसंबर से मामले की रोजाना सुनवाई करेगी। इससे पहले 30 अक्टूबर, 2008 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित करते हुए दो हिस्सों को राम मंदिर के पैरोकारों और एक हिस्सा बाबरी मस्जिद के पैरोकारों को सौंपने का आदेश किया था।