संध्या द्विवेदी।

मीडिया में अनारकली ऑफ आरा की प्रशंसा से उत्साहित दो लोग जब फिल्म देखने पहुंचे तो उनके चेहरे पर उत्साह की जगह हैरानी थी। 26 मार्च को आनंद विहार के पैसिफिक पीवीआर के रात साढ़े दस बजे को शो को केवल दो दर्शक ही मिले।

खाली सिनेमा हॉल की कहानी दो दर्शकों की जुबानीः

खाने पीने का सामान समेटे हम स्क्रीन-4 के गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे। तभी पीवीआर का एक कर्मचारी हमारे पास आया और पूछा, जी आप लोगों को ही देखनी है ‘अनारकली ऑफ आरा।’ हमने कहा जी हां, कितना वक्त अभी और लगेगा गेट खुलने में। न हमारा टिकट देखा गया न कोई पूछताछ हुई। कर्मचारी ने कहा आप चलिये हम दरवाजा खोल देते हैं। दरवाजा खुला तो अंदर केवल सन्नाटा था।

स्क्रीन ऑफ थी। कर्मचारी ने पूछा? फिल्म चालू करें। हमने हां या न में जवाब देने की जगह सवाल किया? केवल हम दोनों ही हैं! उसने कहा हां। हम फट से बाहर आ गये। टिकट खिड़की पर पहुंचकर हमने फिर पूछा, क्या ‘अनार कली ऑफ आरा’ के दर्शक केवल हम दोनों ही हैं। उन्होंने कहा, हां, अभी तक तो आप दोनों ही है। इसके अलावा तो कोई बुकिंग नहीं।

हमने कहा पर ऑनलाइन तो 15-20 बुकिंग दिख रही थी। उसने कहा, ऑनलाइन के बारे में हमें नहीं पता। पर खिड़की से केवल आप लोगों ने ही टिकट लिया है। हमने गुजारिश की कि हमारा टिकट बदल दें। बद्रीनाथ की दुल्हनियां वाले हॉल में बैठने दें। लेकिन खिड़की टिकट स्टाफ ने साफ मना कर दिया।

खैर, ये बात तो रही ऑनलाइन बुकिंग और खिड़की बुकिंग के बीच के फर्जीवाड़े की। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि मीडिया में जिस तरह से इस फिल्म की प्रशंसा हो रही थी, स्टार दिये जा रहा थे, फेसबुक में प्रशंसा की जा रही थी। इससे लग रहा था कि यह फिल्म सुपर हिट न सही मगर हिट तो होगी ही! मगर रिलीज के 3-4 दिन बाद ही यह हाल…।

पत्रकारों की फिल्मों को दर्शकों का ठेंगा!

क्या दर्शकों की मांग समझ नहीं पा रहे पत्रकार? लगता तो कुछ ऐसा ही है, क्योंकि पिछले दो सालों में किसी पत्रकार द्वारा बनाई यह तीसरी फिल्म है। तीनों ही फिल्में सिनेमाघरों में दर्शकों की बांट जोहती रहीं। विनोद कापड़ी की फिल्म ‘मिस टनकपुर हाजिर हों’ का हाल भी कमोबेश यही था। इसके डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर वरिष्ट पत्रकार विनोद कापड़ी थे। यह जून 2015 में आई थी। दूसरी फिल्म आई ‘हो गया दिमाग का दही।’ इसके प्रोड्यूसर संतोष भारतीय थे। और अब ‘अनारकली ऑफ आर के डायरेक्टर’ भी वरिष्ठ पत्रकार अविनाश दास थे।