किसे दिलाई गई थी नोटबंदी गुप्‍त रखने की शपथ

नई दिल्ली। नोटबंदी की गोपनीयता भंग होने के आरोपों बीच एक ऐसी रिपोर्ट आई है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के काम के लिए ऐसे भरोसेमंद अफसरशाह को चुना था जिसे आर्थिक महकमे से बाहर ज्यादा लोग जानते भी नहीं हैं। यही नहीं, उसे नोटबंदी की गोपनीयता भंग न करने की शपथ तक दिला दी गई थी।

हंसमुख अधिया और उनके पांच साथी जो इस योजना का हिस्सा थे, उनसे इस मामले को गोपनीय रखने का वादा लिया गया था। इस मामले को गहराई से जानने वाले कुछ सूत्रों ने जानकारी दी है कि इस छह सदस्यीय टीम के साथ एक युवा रिचर्स टीम भी शामिल थी जो इस फैसले की घोषणा से पहले पीएम मोदी के निवास स्थान के दो कमरों में दिन रात काम कर रही थी। यह गोपनीयता जाहिर है इसलिए रखी गई थी ताकि कालेधन के मालिकों को सोना, प्रॉपर्टी या कुछ और संपत्ति खरीदने का मौका न मिल सके।

इससे पहले भी कुछ खबरें ऐसी आ रही थीं जिसमें कहा जा रहा था कि पीएम मोदी ने विमुद्रीकरण के इस फैसले को अंजाम में लाने के लिए काफी खतरे मोल लिए। वह जानते थे कि उनका नाम और लोकप्रियता दोनों ही दांव पर लगी है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यह फैसला लिया। 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा से कुछ देर पहले हुई कैबिनेट बैठक में उन्होंने कहा था, ‘मैंने हर तरह की रिचर्स कर ली है और अगर कुछ गलत होता है तो उसका जिम्मेदार मैं हूं।’ यह जानकारी उन तीन मंत्रियों ने दी है जो उस बैठक में शामिल थे।

इस पूरे अभियान का संचालन पीएम मोदी के निवास स्थान से एक बैकरूम टीम कर रही थी जिसकी अगुवाई वित्त मंत्रालय के उच्च अधिकारी हंसमुख अधिया कर रहे थे। 58 साल के अधिया, 2003-06 में नरेंद्र मोदी के गुजरात मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान प्रधान सचिव थे और उन्होंने ही योग से मोदी का परिचय करवाया था। अधिया के जिन सहकर्मियों के साथ एक एजेंसी ने बातचीत की, वह इस सरकारी अफसर की ईमानदारी के गुणगान कर रहे थे।

सितंबर 2015 में अधिया को राजस्व सचिव बना दिया गया और वह सीधे वित्तमंत्री अरुण जेटली को रिपोर्ट करने लगे। इसका मतलब यह भी हुआ कि अब अधिया सीधे पीएम मोदी से संपर्क कर सकते थे और जब भी किसी मुद्दे की विस्तार में चर्चा करनी होती थी तो ये दोनों गुजराती में बातचीत भी करते थे।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में विमुद्रीकरण एक क्रांतिकारी फैसला था जिसने राज्य के उस वादे को भी कठघरे में खड़ा कर दिया जिसमें वह हर नोट पर ‘धारक को अदा’ करने का वचन देता है। लेकिन पीएम मोदी ने एक झटके में 20 हज़ार करोड़ डॉलर रकम को रद्दी करार कर दिया यानी एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की 86 प्रतिशत नकदी अब बेकार हो गई।

हालांकि मोदी के इस फैसले पर अलग अलग प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। आरबीआई के पूर्व मुख्य अर्थाशास्त्री नरेंद्र जाधव कहते हैं-इस तरह के हंगामे के लिए कभी कोई तैयार नहीं रहता-लेकिन यह रचनात्मक हंगामा है। जाधव फिलहाल राज्यसभा में भाजपा सांसद हैं।

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