ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

कभी कभी क्रिकेट मैच में भी ऐसा मौका आता है जब दोनों टीमें लगभग बराबरी पर होती हैं। ऐसे में जरूरत होती है सटीक रणनीति की। जो टीम ज्यादा अच्छी रणनीति बनाती है मैच निकाल ले जाती है। इस बार पंजाब की राजनीति भी क्रिकेट के ऐसे ही मैच की तरह है जिसमें समीकरण जरा भी इधर उधर हुए नहीं कि बना बनाया खेल बिगड़ या संवर सकता है। पंजाब का सियासी माहौल फिलहाल कमोबेश ऐसा ही है। कमजोर होती आम आदमी पार्टी ने सूबे के सियासी समीकरण बराबरी पर खड़े कर दिए हैं। मतदाता एक बार फिर असमंजस में हैं। नए विकल्प ढूंढ रहे मतदाताओं के पास फिर वही गिने चुने विकल्प बचे हैं। भ्रमित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए सटीक रणनीति चाहिए। यही वजह है कि कांग्रेस इस बार सधी हुई पारी खेलना चाह रही है।

क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी को पार्टी से जोड़ने के साथ ही पूर्व ओलंपियन परगट सिंह को भी कांग्रेस में न सिर्फ शामिल कर लिया गया बल्कि सिद्धू को विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी भी कांग्रेस कर रही है। हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन इतना तय है कि सिद्धू विधानसभा या फिर लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ेंगे। मौजूदा हालात में सिद्धू के विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना ज्यादा है। इस चुनाव के पीछे दो बड़ी वजह काम कर रही हैं। पहली यह कि कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को कंट्रोल में रखने की कोशिश में है तो दूसरी उन मतदाताओं को साधने की कोशिश हो रही है जो कांग्रेस को पंसद तो करते हैं लेकिन कैप्टन में उन्हें कुछ नया नजर नहीं आ रहा है। सिद्धू को लेकर पंजाब में ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव लड़ा कर उन्हें सीएम भी प्रोजेक्ट किया जा सकता है। यह भ्रम कैप्टन विरोधी खेमा कुछ ज्यादा ही फैला रहा है। वे सीधे सीधे कैप्टन पर वार नहीं कर पाते थे। मगर अब सिद्धू के माध्यम से कैप्टन को घेर रहे हैं।

अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि नवजोत सिंह विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या फिर लोकसभा का। कैप्टन विरोधी खेमा चाहता है कि सिद्घू विधानसभा का चुनाव लड़ें। इसके लिए उन्होंने आलाकमान को लगभग मना भी लिया है। पंजाब मामलों की प्रभारी आशा कुमारी ने ओपिनियन पोस्ट को बताया कि चुनाव लड़ने का निर्णय सिद्धू को खुद लेना है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक सिद्धू को विधानसभा का चुनाव लड़ाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। इसकी एक नहीं कई वजह हैं। बड़ी वजह तो यह है कि कांग्रेस सिद्धू के कंधे पर बंदूक रख कर निशाना बादलों पर आसानी से साध सकती है। दूसरी वजह यह है कि यदि पंजाब में कांग्रेस सत्ता के नजदीक नहीं पहुंचती तो सिद्धू उन धड़ों को कांग्रेस के साथ जोड़ सकते हैं जो पंजाब में चौथे फ्रंट के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी सोच सिद्धू से मिलती है और उन्होंने सिद्धू के साथ मिल कर पंजाब में फ्रंट भी बनाया था। यह अलग बात है कि बाद में यह फ्रंट बिखर गया। पर बात जब सत्ता की आएगी तो ये नेता एकजुट हो सकते हैं। इसका सूत्रधार सिद्धू को बनाया जा सकता है। सिद्धू को लेकर पंजाब की सियायत में भी समीकरण बदल रहे हैं और कांग्रेस के भीतर भी।

कांग्रेस को हो सकता है फायदा
इस रणनीति से कांग्रेस को सीधा लाभ होता नजर आ रहा है। पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हरबंस बैंस के मुताबिक, ‘कैप्टन को मतदाता देख चुके हैं। वे पारंपरिक राजनीति करते हैं। इसी तरह की बयानबाजी करते हैं। इसलिए वे नए मतदाताओं को पार्टी से जोड़ नहीं पा रहे हैं। पंजाब के मतदाताओं को ऐसा नया चेहरा चाहिए जो अकाली दल पर जोरदार तरीके से हमला कर सके। यह काम सिद्धू बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। इसके साथ ही सिद्धू युवा मतदाता की पहली पसंद हैं। पंजाब का युवा उन्हें पसंद करता है। जाहिर है इससे कांग्रेस का ग्राफ बढ़ सकता है। अब देखना यह है कि कांग्रेस उनका इस्तेमाल कैसे करती है।’ उनका यह भी कहना है, ‘अभी तक नोटबंदी पर भी कैप्टन ज्यादा आक्रामक तरीके से आवाज नहीं उठा पाए हैं। प्रचार को लेकर भी वे बहुत तेजी से काम नहीं करते। ऐसे में सिद्धू को एक स्टार चेहरे की तरह प्रमोट करने से कांग्रेस को सीधा लाभ मिलता नजर आ रहा है। इसके साथ ही मतदाता में यह भी संदेश जा सकता है कि सीएम पद पर कैप्टन के अलावा दूसरा विकल्प भी कांग्रेस के पास है। कमोबेश यह प्रयोग सीधे सीधे हरियाणा की तरह का है जब भजन लाल कांग्रेस के सर्वेसर्वा हुआ करते थे। कांग्रेस ने हरियाणा का चुनाव भजन लाल के नेतृत्व में लड़ा था लेकिन सीएम बना दिया था भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को। यही प्रयोग पंजाब में भी कांग्रेस कर सकती है।’

समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर गुरचरण सिंह तूर भी इस बात से सहमत हैं। उनका कहना है, ‘कैप्टन कई मौकों पर अच्छे रणनीतिकार साबित नहीं हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार उनकी अस्पष्ट रणनीति की वजह से हुई थी। तब कई सीट कांग्रेस बहुत कम अंतर से हारी थी। इसकी वजह भी यह थी कि कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसे कैप्टन का विकल्प बनाया जा सके। अब कांग्रेस में यह कमी पूरी होती नजर आ रही है।’

सिद्धू को आलाकमान की हरी झंडी
सिद्धू को कांग्रेस में शामिल कराने में कैप्टन की भूमिका बेहद कम है। पार्टी आलाकमान ने इसके लिए पहल की। कभी टीम इंडिया में नवजोत सिंह सिद्धू के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरुद्दीन सिद्धू से लगतातार बातचीत करते रहे। अजहर व सिद्धू के रिश्ते 1996 में क्रिकेट के मैदान पर खटास भरे हो गए थे। पिछले साल ही दोनों के रिश्ते सुधरे हैं। अजहर ने सिद्धू और कांग्रेस के बीच पुल का काम किया। उन्हें सम्मानजनक पद देने का आश्वासन दिया गया है। यही वजह है कि सिद्धू को लेकर कांग्रेस बहुत सधी रणनीति के तहत काम कर रही है। कांग्रेस उन्हें बड़े मोहरे के रूप में इस्तेमाल करना चाह रही है ताकि गेम में बड़ा बदलाव लाया जा सके। पंजाब में खेमेबाजी भी किसी से छुपी हुई नहीं है। कैप्टन भी कुछ लोगों को ही साथ लेकर चलते हैं। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि सिद्धू पार्टी के उन लोगों को आगे बढ़ाएं जो कैप्टन के साथ चल नहीं पा रहे हैं।

कैप्टन खेमे में खलबली
वरिष्ठ पत्रकार आईपी सिंह कहते हैं, ‘इस वक्त कैप्टन खेमे में सिद्धू को लेकर जबरदस्त खलबली मची हुई है। दूसरी पंक्ति के नेताओं की यह सोच थी कि इस बार का विधानसभा चुनाव कैप्टन का आखिरी चुनाव हो सकता है। उनकी उम्र बढ़ रही है। ऐसे में वे अपने लिए पार्टी के अंदर अच्छी संभावनाएं तलाश रहे थे। सीएम प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल के लिए तो सिद्धू का कांग्रेस में आना किसी झटके से कम नहीं है। यह अभी दिखना भी शुरू हो गया है। मनप्रीत अब पहले जितना सक्रिय नहीं हैं।’ आईपी सिंह का हालांकि यह भी कहना है, ‘कांग्रेस में कैप्टन का कद कम करने की कोशिश भी कहीं न कहीं पार्टी पर भारी पड़ सकती है। यह सही है कि कई मौकों पर कैप्टन निरंकुश साबित होते हैं, फिर भी पंजाब के मतदाताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है। इस वक्त कैप्टन खेमा खासा मायूस है। चुनाव से ठीक पहले इस तरह के हालात कम से कम कांग्रेस के लिए बहुत अच्छे नहीं माने जा सकते हैं। सिद्धू कैप्टन से अच्छे वक्ता हैं। जुमलों और लच्छेदार बातों में मतदाता को उलझा सकते हैं। बादलों पर हमला भी तेजी से कर सकते हैं। पर सिद्धू कब क्या रवैया अपना लें, यह किसी को भी पता नहीं होता। यह कांग्रेस के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है।’ 