8 नवंबर, 2016 को घोषित नोटबंदी को कालेधन के खिलाफ एक जंग के तौर पर पेश किया गया था। जंग में नुकसान कभी भी एकतरफा नहीं होता। अगर नोटबंदी से कालेधन वाले परेशान हुए तो अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार के धीमी होने के संकेत भी मिलने लगे हैं। रिजर्व बैंक द्वारा 7 दिसंबर, 2016 को की गई मौद्रिक समीक्षा से जुड़ी घोषणाओं के बाद कई तथ्य सामने आ गए हैं। ये तथ्य हैं, आशंकाएं नहीं हैं। इन तथ्यों से जो कुछ भी नकारात्मक ध्वनित होता है उससे निपटने की ठोस और तेज तैयारियां शुरू होनी चाहिए। पर सकारात्मक परिणामों से उन आशंकाओं के निराकरण के जवाब खुद ब खुद नहीं मिल जाते जो रिजर्व बैंक ने पेश किए हैं।

नोटबंदी से गति धीमी
मौद्रिक समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक ने अपने बयान में कहा कि 2016-17 में विकास दर में कमी की आशंका है। यही वजह है कि विकास दर अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7.1 फीसदी कर दिया गया है। रिजर्व बैंक ने साफ तौर पर बताया है कि नोटबंदी के चलते उन उद्योग-धंधों को नुकसान पहुंचेगा जो नकद पर आधारित हैं। रिटेल दुकानें, होटल और रेस्त्रां, परिवहन और खास तौर पर असंगठित क्षेत्र का कारोबार नोटबंदी से प्रभावित हुआ है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले तक भारत में आठ से दस प्रतिशत की दर से विकास की संभावनाएं जताई जा रही थीं। पर अब सात प्रतिशत के आसपास का आंकड़ा पेश कर रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया है कि नोटबंदी से विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इसे देखने के लिए रिजर्व बैंक का अर्थशास्त्री होना जरूरी नहीं है। बाजार में नकदी की कमी के परिणाम साफ तौर पर दिखाई पड़ रहे हैं। इससे अर्थव्यवस्था मंदी में भले ही न जाए पर उसे धीमी गति के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नोटबंदी से बड़ी कंपनियां ज्यादा प्रभावित नहीं हुई हैं क्योंकि उनके पास तकनीक है। भुगतान हासिल करने के तमाम माध्यम हैं। उच्च मध्य वर्ग और मध्य वर्ग के पास भी भुगतान देने और हासिल करने के तमाम माध्यम हैं। पर छोटे कारोबारियों की बिक्री इससे प्रभावित हुई है और अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा अब भी नकद पर ही चल रहा है। इसका असर विकास दर पर दिखाई पड़ेगा।

नकद कारोबार पर गहरी चो
रिजर्व बैंक ने जो आशंका जताई है कि नकद आधारित कारोबार पर ज्यादा चोट पड़ेगी वह अब तक सच प्रतीत हो रही है।

रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन
इस धंधे में नकद की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है क्योंकि इसमें कालाधन खूब खपाया जाता है। यह जानने के लिए अर्थशास्त्री होने की जरूरत नहीं है कि अधिकांश प्रॉपर्टी जिस मूल्य पर खरीदी-बेची जाती है उसका रजिस्ट्रेशन उस मूल्य से कम ही दिखाया जाता है। स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए कागज पर प्रॉपर्टी कम की दिखाई जाती है जबकि वास्तव में उसका मूल्य ज्यादा लिया-दिया जाता है। कागज पर दिखाए गए मूल्य से ज्यादा की रकम का लेन-देन नकद में होता है। नकद गायब है। इसलिए मकानों की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। बाजार के सर्वेक्षण से पता चला है कि औसतन प्रॉपर्टी की कीमतों में करीब 25 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है और प्रॉपर्टी की बिक्री में करीब 50 फीसदी की कमी आई है। प्रॉपर्टी की कमजोर मांग के चलते नया कंस्ट्रक्शन भी कम ही होगा। कंस्ट्रक्शन एक ऐसा क्षेत्र है जहां मजदूरों को आसानी से रोजगार मिल जाता है। जाहिर है इस क्षेत्र की सुस्ती के चलते रोजगार कम होगा।

खाने-पीने का कारोबार
पिछले एक महीने में लोगों का खाने-पीने को लेकर भी बर्ताव बदल गया है। पिज्जा-बर्गर-आइसक्रीम भी लोग कम खा रहे हैं। एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में अमूल के चैयरमैन आरएस सोढ़ी ने बताया कि आइसक्रीम की खपत में 10 से 20 फीसदी की कमी आ गई है। जरूरी चीजें तो खरीदी जा रही हैं पर पिज्जा कंपनियों से लेकर आइसक्रीम कंपनियां तक आशंकित हैं कि 2016-17 के वित्तीय परिणामों को नोटबंदी नकारात्मक तौर पर प्रभावित कर सकती है। नोटबंदी के चलते बड़े रिटेल समूहों को तो फायदा हुआ है क्योंकि वहां नकदी विहीन भुगतान मंजूर करने की व्यवस्था है। बिग बाजार जैसे बड़े रिटेल स्टोरों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है पर छोटे कारोबारियों का कारोबार प्रभावित हुआ है। उनके पास नकद रहित भुगतान की वसूली के इंतजाम नहीं हैं।

दिक्कत ये है
अब तक नकदी में कारोबार करते रहे ज्यादातर छोटे दुकानदारों के पास कार्ड स्वैप करने के लिए प्वाइंट आॅफ सेल (पीओएस) मशीन नहीं है। अब जबकि अचानक न्यूनतम नकदी वाली अर्थव्यवस्था बनाने का फैसला किया गया है तो इसकी मांग बढ़ गई है और यह आसानी से उपलब्ध नहीं है। तमाम छोटे दुकानदार यह रोना रोते हुए दिख रहे हैं कि वे बैंकों से कह रहे हैं कि पीओएस मशीन लगा दो मगर बैंक टका सा जवाब दे रहे हैं कि मशीन उपलब्ध नहीं है। पीओएस मशीनें बैंकों को खास तौर पर सरकारी बैंकों को तो पहले से उपलब्ध कराई ही जा सकती थी। न्यूनतम नकदी वाली अर्थव्यवस्था के लिए पीओएस मशीनों से जुड़ा बुनियादी ढांचा बहुत अविकसित स्थिति में है, यह बात किसी से दबी-छिपी नहीं थी। फिलहाल देश में कुल चौदह लाख पीओएस मशीनें हैं यानी करीब दस लाख लोगों पर 693 मशीनें। चीन में प्रति दस साल लोगों पर चार हजार पीओएस मशीनें हैं। ब्राजील में यह आंकड़ा प्रति दस लाख पर 33 हजार है। पीओएस मशीनों की तैयारी पहले से हो सकती थी। तमाम सरकारी बैंकों को ये मशीनें पहले से तैयार रखने के निर्देश सरकार दे सकती थी। इन तमाम आधी-अधूरी तैयारियों का खामियाजा जनता ने भुगता और अब अर्थव्यवस्था भुगतेगी।

टूर ट्रेवल, होटल, आॅटोमोबाइल
नकदी की कमी के दौर में खर्च को रोक कर चलने की प्रवृत्ति लोगों में विकसित हो रही है। इस साल बेहतरीन मानसून के चलते तमाम कंपनियों को बेहतर बिक्री की उम्मीद थी। पर नोटबंदी के बाद स्थिति वैसी नहीं दिख रही है। देश की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल कंपनी औसतन हर महीने छह लाख मोटरसाइकिल बेचती है। नवंबर में यह बिक्री 4.80 लाख मोटरसाइकिलों की रही है। यानी कंपनी की बिक्री में करीब बीस फीसदी की कमी दर्ज की गई है। नोटबंदी के बाद ऐसी तमाम रिपोर्टें आर्इं हैं कि कई शादियां सिर्फ पांच सौ रुपये में संपन्न हुर्इं। वरना तमाम गांवों में शादी में औसतन एक मोटरसाइकिल दूल्हे को जरूर दी जाती रही है। नकदी की कमी ने तमाम कंपनियों को बिक्रीविहीन कर दिया है।

कुछ फायदा मिले तो बात बने
बड़े कारोबारियों और बड़ी कंपनियों को यह सहूलियत रहती है कि वे अंतरराष्ट्रीय बाजार से भी सस्ती दर पर धन का जुगाड़ करें। पर छोटे कारोबारी को तो देश में ही धन जुटाना होता है। उसके लिए ऐसे माहौल में रकम जुटाना आसान नहीं होता है। अब सरकार को छोटे कारोबारियों के लिए कुछ सहूलियतें उन संसाधनों से देनी चाहिए जो सरकार कालेधन के सामने आने से प्राप्त करेगी। कालाधन घोषणा योजना (जिसमें 50 फीसदी टैक्स, पेनाल्टी देकर रकम को सफेद किया जा सकता है) से सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। इसमें से 50 फीसदी तो सीधा टैक्स ही होगा यानी करीब 75 हजार करोड़ रुपये के संसाधन इस मद से आएंगे। ध्यान रखने की बात यह है कि जो लोग ऐसी आय की घोषणा करेंगे वे आने वाले सालों में भी टैक्स के दायरे और इनकम टैक्स विभाग की निगरानी में रहेंगे। यानी उन्हें भविष्य के करदाता के तौर पर चिन्हित किया जा सकता है। ऐसे सारे संसाधनों से सरकार अगर बहुत छोटे कारोबारी को ब्याज मुक्त कर्ज दे पाए तो इसे नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम के तौर पर चिन्हित किया जाएगा।

आॅनलाइन लेनदेन को बढ़ावा
सरकार लाख कहे कि आॅनलाइन लेनदेन बढ़ना चाहिए पर जब तक इसके लिए आधारभूत ढांचा नहीं होगा, यह संभव नहीं होगा। इंटरनेट की उपलब्धता और उसकी गति भी एक समस्या है। बिना इंटरनेट के आॅनलाइन लेनदेन कैसे हो, यह लोगों को समझाना जरूरी है। इसके लिए व्यापक जन-शिक्षण अभियान चलाया जाना जरूरी है। लोगों को अगर सरल तरीके से समझाया जा सके कि आॅनलाइन लेनदेन से दो पैसे बचते हैं तो उन्हें इस ओर मोड़ना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। 8 दिसंबर, 2016 को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तमाम आॅनलाइन लेनदेन को सस्ता बनाने की घोषणा की है यानी इसके लिए एक ठोस वजह प्रदान की है। सस्ते लेनदेन के लिए आधारभूत ढांचा, जन-शिक्षण और एक ठोस वजह हो तो इसे लोकप्रिय होने से कोई नहीं रोक सकता। 