महेंद्र पांडेय

आने वाले वर्षों में भारत समेत सभी दक्षिण एशियाई देशों में पहले से अधिक वर्षा होगी और नदियों में अधिक पानी बहेगा। यह दावा ‘जर्नल आॅफ हाइड्रोलॉजी: रीजनल स्टडीज’ नामक जर्नल के अगस्त अंक में प्रकाशित एक लेख में किया गया है। इस संदर्भ में आॅस्ट्रेलिया के कम्युनिकेशंस साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गनाइजेशन के वैज्ञानिकों ने अध्ययन भी किया है, जिनका आधार संयुक्तराष्ट्र संघ के इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज की पांचवीं असेसमेंट रिपोर्ट है। अध्ययन दल के एक सदस्य, होन्गजिंग झेंग के अनुसार इस क्षेत्र में नदियों के वर्ष 1976 से 2005 के बीच के औसत बहाव की तुलना में वर्ष 2046 से 2075 के बीच पानी के बहाव में 20 से 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाएगी। भविष्य में अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में 1.5 से 2 प्रतिशत तक अधिक बारिश होगी और शुष्क क्षेत्रों में 2 प्रतिशत से अधिक बारिश होगी।
दक्षिण एशिया में अनेक बड़ी और अंतरराष्ट्रीय नदियां हैं। इस अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में 54 बड़ी नदियां और इनकी सैकड़ों सहायक नदियां हैं। सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र सभी चीन के तिब्बत क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं। सिन्धु नदी का क्षेत्र चीन, अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान तक फैला है। ब्रह्मपुत्र और गंगा का क्षेत्र बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत और नेपाल में स्थित है।
सिन्धु, तिब्बत के पठार और अराकान के सागर तटीय क्षेत्रों में नदियों में पानी के बहाव में 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी का अनुमान है। अध्ययन के अनुसार गंगा, ब्रह्मपुत्र, दक्कन का पठार और पूर्वी और पश्चिमी घाट के क्षेत्रों की नदियों में वर्तमान की तुलना में 15 प्रतिशत से अधिक पानी बहेगा। नर्मदा, तापी और श्रीलंका की नदियों में पानी की मात्रा 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाएगी।
इस अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र का औसत तापमान बढेÞगा और इस कारण बारिश अधिक होगी। बारिश अधिक होने पर जाहिर है कि नदियों में पानी अधिक बहेगा। वर्ष 2046 से 2075 के बीच औसत तापमान में वर्तमान की तुलना में 2.9 से 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। देश के उत्तरी क्षेत्रों में सर्दियों के तापमान में वृद्धि होगी और गर्मियां अधिक प्रचंड होंगी। रात का औसत तापमान भी बढ़ेगा।
जर्नल साइंस एडवांसेज के अगस्त 2017 अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वृद्धि के असर से गर्मियों में भी हवा में अच्छी खासी नमी बनी रहेगी। यहां तक कि लू भी नमी वाली होगी। शुष्क लू से अधिक घातक नमी वाली लू होती है। इस लू की चपेट में लंबे समय तक जो लोग आएंगे, उनकी मृत्यु कुछ घंटों के भीतर ही हो सकती है। सबसे अधिक प्रभावित गंगा और सिन्धु नदियों का बेसिन क्षेत्र होगा। पूरे दक्षिण एशिया का क्षेत्र हमेशा से ही लू से प्रभावित रहा है। जब इसमें नमी भी शामिल हो जाएगी तो पसीना सूखेगा नहीं और शरीर में पानी की भरपाई कठिन हो जाएगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसी अवस्था में स्वस्थ व्यक्ति भी 6 घंटों के भीतर मर सकता है। यह नमी घातक तो है, पर हवा की यही अतिरिक्त नमी इस पूरे क्षेत्र में अधिक वर्षा का आधार भी है।
यदि भविष्य में पानी का ठीक प्रबंधन किया जाए तब शायद पानी की कमी भी दूर हो सकती है। कुछ महीने पहले ही नीति आयोग में देश में पानी की कमी पर आंकड़े पेश किए गए थे। इसके अनुसार देश में पानी की कमी भयानक स्तर तक पहुंच चुकी है। वर्ष 2030 तक पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी और वर्तमान में प्रति वर्ष लगभग 2 लाख असमय मौतें केवल साफ पानी के अभाव में होती है। यह स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अनुमान है कि अगले तीन वर्षों में देश के 21 प्रमुख शहरों में भू-जल उपलब्ध नहीं होगा।
हालात ऐसे ही रहे तब वर्ष 2050 तक देश को पानी की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत से अधिक का नुक्सान उठाना पड़ेगा। हमारा देश वर्तमान में भी पानी की कमी वाले देशों में शुमार है। पिछले दशक के दौरान देश में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 15 प्रतिशत की कमी आई है।
काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट सेंटर के वैज्ञानिक अरुण श्रेष्ठ ने उपरोक्त अध्ययन पर आश्चर्य जताया और कहा, अब तक सभी अध्ययन भविष्य में नदियों में कम पानी बहाने की बात करते थे, पर नए अध्ययन ने क्लाइमेट चेंज के मॉडलों और उपग्रहों के चित्रों से साबित कर दिया गया है कि नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी और यह इस पूरे क्षेत्र के लिए अच्छी खबर है।
समस्या यह है कि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण केवल नदियों में पानी का बहाव ही नहीं बढ़ेगा पर दक्षिण एशिया के क्षेत्र में औसत सागर तल भी तेजी से बढ़ेगा। औसत समुद्र तल वर्ष 1993 से अब तक विश्व में 2.6 से 2.9 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ता जा रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2100 तक समुद्र तल 300 से 1200 मिलीमीटर तक बढ़ जाएगा। वर्ष 1993 तक समुद्र तल में वृद्धि की दर की तुलना में वर्तमान में लगभग दोगुनी वृद्धि हो रही है।
क्लाइमेट आॅफ द पास्ट नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में समुद्र तल वृद्धि की दर पूरे विश्व में वृद्धि की तुलना में दोगुनी है। नेचर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार विश्व के सागर तटीय शहरों में बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष औसतन 6 अरब डॉलर का नुक्सान होता है, जो 2050 तक बढ़कर 52 अरब डॉलर हो जाएगा। एशिया के लिए यह खतरा अधिक है क्योंकि एक करोड़ से अधिक आबादी वाले विश्व के 37 सागरतटीय महानगरों में से 21 एशिया के देशों में स्थित हैं।
2016 के ग्लोबल एनवायरमेंटल असेसमेंट के अनुसार सागर तल में वृद्धि के कारण वर्ष 2050 तक लगभग 4 करोड़ भारतीय प्रभावित होंगे। यह संख्या किसी भी देश में सबसे अधिक होगी। सितंबर 2016 के जर्नल आॅफ जीओफिजिकल रिसर्च के अनुसार वर्ष 2003 से हिंद महासागर में सागर तल के वृद्धि की दर विश्व औसत से दोगुनी रही है, जो एशिया के देशों के लिए बड़ा खतरा है। हमारे देश में नदियों का जाल बिछा है। यहां 13 बड़ी, 45 मध्यम और 55 छोटी नदियां हैं। यह संख्या कम लग सकती है, पर नदियों के साथ सैकड़ों सहायक नदियां सम्मिलित हैं। अनेक सहायक नदियां तो मूल नदी से भी बड़ी होती हैं, जैसे गंगा की अनेक सहायक नदियों में मूल गंगा से अधिक पानी बह जाता है। नदियों का वर्गीकरण उसके जल-ग्रहण क्षेत्र के आधार पर किया जाता है। जल-ग्रहण क्षेत्र वह क्षेत्र होता है, जहां-जहां से नदी में पानी जा सकता है। बड़ी नदियां वे हैं जिनका जल-ग्रहण क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर या इससे अधिक होता है। मध्यम नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र 20,000 से 2,000 वर्ग किलोमीटर के बीच और छोटी नदियों का क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से भी कम होता है।
एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष विश्व की नदियों में 37,000 घन किलोमीटर पानी बहता है और इसका 4.445 प्रतिशत यानी 1,645 घन किलोमीटर पानी भारतीय नदियों में बहता है। भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से सभी नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र 30.5 वर्ग किलोमीटर है। दोनों क्षेत्रों में अंतर का कारण रेगिस्तानी क्षेत्र और सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्र हैं।
बड़ी नदियों में से तीन नदियां गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु हिमालय से निकलती हैं। शेष दस नदियां पठारी और प्रायद्वीपीय हैं। हिमालय से निकालने वाली नदियां हिमखंडों से शुरू होती हैं। समुद्र तल से 2,440 मीटर या इससे भी ऊपर की चोटियां हिमखंडों से ढकी होती हैं। बर्फ की 76 मीटर से अधिक मोटी परत हिमखंड कहलाती है। बड़ी नदियों में हिमालय से तीन, मध्य प्रदेश से तीन, महाराष्ट्र और कर्नाटक से दो-दो, अरावली पर्वतमाला से एक और विन्ध्य पर्वतमाला से दो निकलती हैं।
बड़ी नदियों में जल-ग्रहण क्षेत्र के अनुसार गंगा सबसे बड़ी नदी है और सबसे छोटी साबरमती है। प्रायद्वीपीय नदियों में सबसे बड़ी नदी गोदावरी है। नदियों में प्रतिवर्ष बहनेवाले पानी की मात्रा के अनुसार ब्रह्मपुत्र पहले स्थान पर है और गंगा दूसरे स्थान पर। प्रायद्वीपीय नदियों में गोदावरी पहले स्थान पर है। अरुण श्रेष्ठ के अनुसार जब नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी तब इसका उचित प्रबंधन आवश्यक होगा। उचित प्रबंधन से सामाजिक-आर्थिक विकास होगा और गरीबी कम होगी क्योंकि अधिकतर आबादी कृषि से जुड़ी है। पर, यदि पानी के प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया गया, तब बाढ़ का स्वरूप और विकराल हो जाएगा। जमीन का कटाव बढ़ेगा, जलभराव की समस्या होगी और अंत में सूखे की आशंका बढ़ेगी। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि भविष्य में बाढ़ की चेतावनी जारी करने के अच्छे तंत्र की जरूरत होगी और बाढ़ से प्रभावित न होने वाली फसलों को बढ़ावा देना होगा। विकास भी ऐसा करना होगा जहां जलभराव न हो और बाढ़ से जान-माल का नुकसान न हो।
भविष्य में पानी के संदर्भ में समन्वित तरीके से ध्यान देना आवश्यक होगा। एक तरफ नदियों में बढ़ता पानी तो दूसरी तरफ बढ़ते सागर-तल के खतरे से निपटने की पूरी तैयारी करनी होगी और यदि वैज्ञानिक तरीके से ऐसा करने में हम सफल हो गए तभी वह असली विकास होगा, वर्ना सबकुछ हरेक साल बाढ़ के साथ बहता रहेगा। 