अरुण पांडेय
अमिताभ बच्चन की एक फिल्म है ‘ईमान धरम’। शायद कम लोगों ने देखी होगी पर उसका एक सीन बड़ा पॉपुलर है। इसमें वो अदालत में उस गुल्लू मियां के बारे में गवाही देने जाते हैं जिसे जानना तो छोड़िए उन्होंने उसे देखा तक नहीं। पर वकील जब उनसे पूछता है कि गुल्लू मियां का कद क्या है, तो अमिताभ फंस जाते हैं और बता नहीं पाते तो तरह तरह के बहाने बनाने लगते हैं। कुछ ऐसा ही हाल जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर के आलोचकों का भी दिख रहा है। जीएसटी वसूली एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचने के बाद इस पर सवाल उठाने वाले फंसते दिख रहे हैं। जीएसटी की दिक्कतें तेजी से कम हो रही हैं और वसूली बढ़ रही है। इसका मतलब यही है कि लोगों ने जीएसटी के साथ जीने की आदत डालनी शुरू कर दी है। साथ ही फाइलिंग के झंझट में भी कमी आई है। अप्रैल में एक लाख करोड़ रुपये का कलेक्शन, महीने में सिर्फ एक बार रिटर्न और ई-वे बिल पूरे देश में लागू करने के लिए सही दिशा में चल रहा प्रयोग बताता है कि अब जीएसटी तेजी से पटरी पर आ रहा है। एक मई से जीएसटी पर लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं और ऐसा लगने लगा है कि कारोबारियों ने अब जीएसटी को अपने परिवार में शामिल कर लिया है।

अप्रैल में रिकॉर्ड कलेक्शन
नए वित्तीय साल के पहले महीने में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक जीएसटी की वसूली से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। वित्तमंत्री अरुण जेटली इसे बेहद अहम मुकाम मानते हैं और इसमें कोई संदेह भी नहीं है। वित्त वर्ष 2017-18 में जीएसटी कलेक्शन 7.41 लाख करोड़ रुपये हुआ था, लेकिन अप्रैल में जीएसटी वसूली ने 1 लाख करोड़ रुपये का मनोवैज्ञानिक स्तर तोड़ दिया है। इससे उत्साहित होना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार का लक्ष्य है कि इस साल हर महीने कम से कम एक लाख करोड़ रुपये के हिसाब से सालभर में 12 लाख करोड़ रुपये की आय होगी। खास बात ये है कि राज्यों की जीएसटी कमाई बढ़ रही है। इससे राज्यों की फिक्र दूर होनी शुरू होगी कि जीएसटी लागू होने की वजह से उनकी कमाई कम होगी। अगर ये सही दिशा में चली तो मुमकिन है कि आगे चलकर राज्य पेट्रोल-डीजल और शराब को भी जीएसटी के दायरे में लाने के लिए तैयार हो जाएं।

सुधार जिनका फायदा दिखा
टैक्स से जुड़े जानकारों का मानना है कि इसे बहुत बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। जैसे जैसे इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ेगी उससे जीएसटी वसूली में और तेजी आने के आसार हैं। ई-वे बिल पर काम सही दिशा में चल रहा है और जब ये पूरे देश में लागू हो जाएगा तो टैक्स की चोरी में बहुत कमी आएगी। मशहूर अकाउंटेसी फर्म डिलॉयट इंडिया के मुताबिक भारत ने जीएसटी को अपना लिया है और जैसे जैसे रिश्ता मजबूत होता जाएगा टैक्स वसूली बढ़ती जाएगी। उसके मुताबिक एक बार लोगों को यकीन हो गया कि जीएसटी न भरने में ज्यादा झंझट है और जीएसटी देकर उनके बहुत से सिरदर्द दूर रहेंगे तो लोग और तेजी से इसे अपनाने लगेंगे। वित्त वर्ष 2018-19 खत्म होते होते इससे जुड़ी ज्यादातर दिक्कतें दूर हो जाएंगी। हालांकि सरकार हर कदम फूंक फूंककर रखना चाहती है। इसलिए वित्त मंत्रालय ने यह दावा नहीं किया है कि अप्रैल की तरह का रुझान मई और आने वाले महीनों में भी दिखेगा। सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इसलिए वित्त मंत्रालय ने नपे तुले शब्दों में कहा है कि वित्तीय साल के पहले महीने में आमतौर पर वसूली ज्यादा होती है इसलिए आगे के लिए ऐसी ही वसूली की गारंटी नहीं ली जा सकती।

वसूली में अभी भी दिक्कतें  सिर्फ 70 परसेंट रिटर्न फाइल हुए
टैक्स अफसरों का अभी भी मानना है कि टैक्स से जुड़ी दिक्कतें हैं। लोग अभी भी जीएसटी भरने में ढिलाई कर रहे हैं। जैसे अप्रैल में जीएसटीआर 3 बी के 60.47 लाख रिटर्न फाइल किए गए जबकि आंकड़ों के मुताबिक 87.12 लाख ऐसे रिटर्न फाइल होने चाहिए थे। मतलब करीब 70 परसेंट ही रिटर्न फाइल हुए। अगर ये 90 या 95 परसेंट के आसपास होते तो शायद टैक्स वसूली में भी खासी बढ़ोतरी आई होती।

कॉम्पोजीशन डीलर की लापरवाही
टैक्स अधिकारी अगले कुछ दिनों में इस बात को भी खंगालेंगे कि कॉम्पोजीशन डीजल यानी जिसमें हर 3 महीने में सिर्फ एक बार रिटर्न फाइल करना है वो रिटर्न फाइल करने से क्यों बच रहे हैं। ऐसे करीब 19.31 लाख कॉम्पोजीशन डीजल में सिर्फ 11.47 ने ही रिटर्न फाइल किया है जो सिर्फ 60 परसेंट है। इन 60 परसेंट ने कुल 579 करोड़ रुपये का टैक्स दिया।

जीएसटी के मोर्चे पर अब तक राहत
तमाम दिक्कतों के बावजूद पिछले वित्त वर्ष में जीएसटी वसूली को खराब नहीं कहा जा सकता। केंद्र सरकार को लगता है कि अगर बड़े पैमाने पर लीकेज बंद हो गए तो वसूली की रफ्तार में बहुत बड़ा उछाल आएगा।

जीडीपी में रफ्तार की उम्मीद
दूसरी सबसे बड़ी राहत जीडीपी के मोर्चे से मिलने की उम्मीद है जहां रिकवरी के साफ संकेत दिख रहे हैं। तमाम अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के मुताबिक 2018-19 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.2 से 7.4 परसेंट के आसपास रहने की उम्मीद है। पिछले साल ये ग्रोथ 6.6 परसेंट ही रही थी। यानी जीडीपी में करीब एक परसेंट ज्यादा ग्रोथ सरकार के खजाने को भरने में कारगर साबित होगी।

रिटर्न फाइलिंग होगी आसान
दुकानदारों और कारोबारियों को सबसे बड़ी राहत देते हुए जीएसटी काउंसिल ने हर महीने सिर्फ एक बार रिटर्न फाइल करने को मंजूरी दी है। साथ ही प्रक्रिया आसान बनाई गई है। लेकिन टैक्स चोरी रोकी जा सके, इसके लिए अगले 6 महीने के अंदर नया सॉफ्टवेयर आ जाएगा। इसके बाद खरीदार और विक्रेता के बिलों का मिलान कंप्यूटर से ही होगा। इससे अगर किसी कड़ी में कोई भी टैक्स जमा नहीं करता या फर्जी खरीद बताता है तो उसे पकड़ना आसान होगा। फर्जी खरीद पर भी इससे काफी हद तक लगाम लग जाएगी क्योंकि इनपुट क्रेडिट तभी मिलेगा जब बिलों का मिलान हो जाएगा।

ई-वे बिल
ई-वे बिल लागू होने से अब यह पूरे सिस्टम में आ जाएगा कि किसने माल खरीदा, कहां से खरीदा, कहां भेजा गया। इस तरह पूरे सिस्टम को दायरे में लाने से बीच में होने वाली टैक्स चोरी काफी हद तक रुक जाएगी। जीएसटी नेटवर्क के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जीएसटी रिटर्न फाइल में तमाम बातों का जिक्र करना होगा। उनका मानना है कि हमें पता लग जाएगा कि सामान भेजने वाला कौन है, उसे ले जाने वाला ट्रांसपोर्टर कौन है और खरीदार कौन है। इन सभी बातों का जिक्र रिटर्न में फाइल करना होगा।

अड़चनें भी कम नहीं
तमाम अच्छी बातों के बावजूद सरकार के सामने अड़चनें भी पर्याप्त हैं। जैसे आमतौर पर पहली तिमाही मैन्युफैक्चरिंग के लिहाज से थोड़ी कमजोर मानी जाती है। इसके बाद मॉनसून की वजह से देश के बड़े इलाके में कामकाज और कारोबार सुस्त रहता है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज हाउस नोमूरा के मुताबिक अभी से खुश होना थोड़ा जल्दबाजी होगी। लेकिन जिस तरह से धीरे धीरे जीएसटी के लिए लोगों की जानकारी बढ़ रही है वो वसूली बढ़ने की दिशा की तरफ ही संकेत देती है।

बढ़ानी होगी सख्ती
सरकार ने जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से कारोबारियों को लगातार किसी भी तरह की जांच से छूट दे रखी थी। लेकिन अब सरकार सख्ती करने के मूड में दिख रही है, क्योंकि जीएसटी अधिकारियों को जांच में पता चला है कि बड़े पैमाने पर कारोबारी टैक्स की चोरी कर रहे हैं। जानकारी मिली है कि जीएसटी अधिकारियों ने ऐसे लोगों को नोटिस भेजना शुरू कर दिया है जिसकी इनवॉयस का मिलान नहीं हो रहा है। मोटे अनुमान के मुताबिक अधिकारियों को लगता है कि करीब 35 परसेंट तक कम टैक्स दिया जा रहा है। इसे टैक्स के हिसाब से देखा जाए तो साल 2017-18 में 35 हजार करोड़ रुपये बैठता है। 