गुलाम चिश्ती

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही विधानसभा चुनाव का डंका बज चुका है। शरुआती दौर की चुनावी तैयारियों को देखें तो भाजपा और नेडा के सहयोगी दल कांग्रेस से कहीं आगे हैं। कांग्रेस में फिलहाल उत्साह की कमी दिख रही है। निर्वाचन आयोग की ओर से 18 जनवरी को घोषित चुनाव कार्यक्रमों के अनुसार त्रिपुरा में 18 फरवरी को और मेघालय एवं नगालैंड में 27 फरवरी को मतदान होगा। तीनों राज्यों के चुनाव परिणाम 3 मार्च को घोषित किए जाएंगे। चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ ही इन तीनों राज्यों में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है।
उल्लेखनीय है कि त्रिपुरा विधानसभा की 10 सीटें अनुसूचित जाति और 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। राज्य में फोटो पहचान पत्र धारक 25 लाख 69 हजार 216 मतदाता हैं जो 18 फरवरी को कुल 3,214 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। त्रिपुरा विधानसभा का कार्यकाल 14 मार्च को पूरा हो रहा है। दूसरे चरण में 60-60 सीटों वाली मेघालय और नगालैंड विधानसभा के चुनाव होने हैं। मेघालय में कुल 3,082 और नगालैंड में 2,187 मतदान केंद्रों पर 27 फरवरी को मतदान होगा। मेघालय में अनुसूचित जनजाति के लिए 55 और नगालैंड में 59 सीटें आरक्षित हैं। मेघालय में कुल 18 लाख 30 हजार 104 और नगालैंड में 11 लाख 89 हजार 264 मतदाता हैं।
चुनाव आयोग ने इन राज्यों में निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए सभी जरूरी इंतजाम पूरे कर लिए हैं। तीनों राज्यों में वीवीपैट युक्त ईवीएम से मतदान कराया जाएगा। मतगणना के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका को नगण्य बनाने के लिए ईवीएम और वीवीपैट की गणना का मिलान दो चरण वाली प्रक्रिया से किया जाएगा। तीनों राज्यों में मतदाताओं की सहूलियत के लिए लगभग प्रत्येक मतदान केंद्र पर कम से कम एक मतदाता सहायता बूथ बनाया जाएगा। वहीं किसी भी उम्मीदवार को मत नहीं देने के इच्छुक मतदाताओं को नोटा विकल्प के लिए ईवीएम पर नया चिन्ह मुहैया कराया जाएगा। मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 6 मार्च और नगालैंड विधानसभा का कार्यकाल 13 मार्च को पूरा हो रहा है।
त्रिपुरा में वाम मोर्चा, मेघालय में कांग्रेस और नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है। ये चुनाव केंद्र की सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन राज्यों के चुनाव परिणाम काफी हद तक तय करेंगे कि 2019 में पूर्वी भारत के राज्यों में भाजपा की क्या स्थिति होगी। साथ ही ईसाई बहुल मेघालय और नगालैंड के परिणाम यह स्पष्ट करेंगे कि देश के बदलते माहौल में भाजपा ईसाई मतदाताओं को लुभाने में कहां तक सफल हुई है। उल्लेखनीय है कि 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में यहां भाजपा का जनाधार नहीं के बराबर था। मगर केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा त्रिपुरा और मेघालय में सरकार बनाने का दावा कर रही है तो दूसरी ओर उसका मानना है कि नगालैंड में नार्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का घटक नगा पीपुल्स पार्टी (एनपीएफ-जेलियांग) चुनाव जीतने में कामयाब हो जाएगी। ऐसे में भाजपा को इन चुनावों से काफी उम्मीदें हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भाजपा की जीत सुनिश्चित कराने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। भाजपा को लगता है कि वह त्रिपुरा में अवैध हिंदू बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता दिलाने के नाम पर दो दशक पुरानी माकपा सरकार को उखाड़ फेंकेगी और सत्ता पर काबिज हो जाएगी। पार्टी ने उस स्तर पर तैयारी भी शुरू कर दी है। पार्टी को अपने अभियान में सफलता भी मिली है। जिस राज्य में भाजपा के सदस्य 20 हजार भी नहीं थे वहां अब उनकी संख्या दो लाख से भी अधिक हो गई है। त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में किसी भी पार्टी के सदस्यों की संख्या दो लाख हो, यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। यह सर्वविदित है कि माकपा एक कैडर आधारित पार्टी है जो अपने कैडरों के बलबूते पश्चिम बंगाल में तीन दशक से अधिक समय तक लगातार सत्ता में रह चुकी है और त्रिपुरा में भी दो दशक पूरे कर चुकी है। यहां यह बताना आवश्यक है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एकल विद्यालय, वनबंधु परिषद और अन्य माध्यमों से जनजाति समुदाय और अन्य के बीच काम करती रही है। दूसरी ओर माकपा नेता और मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित इस राज्य में विकास की ऐसी इबारत लिखी है जो स्थानीय आदिवासियों और बहुसंख्यक हिंदू बंगालियों को काफी भाता है। ऐसे में भाजपा के लिए त्रिपुरा फतह असंभव भले न हो परंतु कठिन जरूर है।
इसाई बहुल मेघालय में भी भाजपा अपनी पैठ बनाने में जुटी है। यहां पार्टी कांग्रेस की आपसी कलह का फायदा उठाकर सत्ता तक पहुंचना चाहती है। दूसरी ओर स्वर्गीय पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) भी मेघालय के मतदाताओं को रिझाने में लगी हुई है। ऐसे में कांग्रेस से नाराजगी का फायदा भाजपा को मिलेगा या एनपीपी को इसके लिए हमें 3 मार्च का इंतजार करना होगा। नेडा के संयोजक डॉ. हिमंत विश्वशर्मा का कहना है कि भाजपा राज्य की जनजाति समुदाय आईएफटी के साथ समझौता करने जा रही है। हिमंत कहते हैं कि नगालैंड में कांग्रेस का जनाधार बिल्कुल नहीं है। ऐसे में हम चाहते हैं कि नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के घटक दल आपस में एक हो जाएं। बता दें कि हिमंत पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 2018 में पूरा पूर्वोत्तर कांग्रेस मुक्त हो जाएगा। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया है। उनके इस कार्य में भाजपा के महासचिव राम माधव पूरा सहयोग कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस फिलहाल अलग-अलग समितियां बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
बता दें कि इन तीन राज्यों में फिलहाल कांग्रेस की सरकार मेघालय में है परंतु पार्टी में आपसी खींचतान इतनी है कि पार्टी के आधे दर्जन से अधिक विधायक पहले ही पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और भाजपा में शामिल हो चुके हैं। राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. मुकुल संगमा भाजपा को सांप्रदायिक करार देकर ईसाई बहुल इस राज्य के मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं पर उन्हें इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह भविष्य बताएगा। मेघालय में महिला मतदाताओं की भूमिका अहम होगी जिनकी संख्या पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा है। साथ ही त्रिपुरा में चुनाव हिंसक होने की आशंका है। चुनावी घोषणा के बाद से ही राज्य में हिंसक घटनाएं घटने लगी हैं। ऐसे में कानून व्यवस्था को स्थिर रखने की जिम्मेवारी भी चुनाव आयोग की होगी।