क्यों नाराज हैं शिवपाल ?

वीरेंद्र नाथ भट्ट।

चौदह अगस्त को मैनपुरी में समाजवादी पार्टी के एक पूर्व विधायक मानिकचंद के निजी स्कूल का उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री शिवपाल यादव ने उद्घाटन किया। वहां उनके भाषण से समाजवादी पार्टी की राजनीति में भूचाल आ गया। इससे पार्टी के प्रथम परिवार के अन्दर चल रहा सत्ता संघर्ष भी सतह पर आ गया। शिवपाल यादव ने कहा कि पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही है। अधिकारी उनके निर्देशों का पालन नहीं करते और पार्टी के नेता जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं जिससे पार्टी की छवि धूमिल हो रही है। पार्टी में कानाफूसी होने लगी की कौन कब्जा कर रहा है और कौन अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहा।

सभी हैरत में थे कि जमीनों पर कब्जा करना कबसे सपा में अपराध बन गया। कब्जे का तात्कालिक मामला तो मैनपुरी जिले की घिरोर तहसील का है जहां तहसील के निकट हाल में ही विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए अरविन्द यादव ने जमीन के बड़े भूखंड पर कब्जा किया है। शिवपाल यादव जो राजस्व मंत्री भी हैं, के निर्देश के बाद भी जिला अधिकारी ने कार्रवाई नहीं की। अरविन्द यादव मामूली नेता नहीं हैं। वह पार्टी के राज्यसभा में नेता राम गोपाल यादव के साले हैं। और शिवपाल यादव और राम गोपाल यादव के रिश्ते तो जग जाहिर हैं।

लेकिन यह तो शिवपाल यादव के विस्फोटक भाषण का मात्र एक तात्कालिक कारण था। असली मामला है कि शिवपाल यादव सत्ता संघर्ष में अपने भतीजे अखिलेश यादव से लगातार पिछड़ रहे हैं। शिवपाल यादव जनता परिवार की एकता के सबसे बड़े हिमायती थे और वह अजित सिंह से दोस्ती के साथ अमर सिंह की भी पार्टी में वापसी के पक्षधर थे। 2014 के अंत में दिल्ली में जनता परिवार के सभी धड़ों को एक झंडे के नीचे लाने के लिए परदे के पीछे सबसे ज्यादा भागदौड़ शिवपाल यादव ने ही की थी। 2014 के अंत में तो शिवपाल यादव ने अमर सिंह को लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कर समाजवादी पार्टी के पक्ष में बयान देने के लिए राजी भी कर लिया था। लेकिन इसे टाल दिया गया।
दरअसल शिवपाल का दर्द दिनों-दिन यादव परिवार के बीच गहराती जा रही विरासत कब्जाने की होड़ और सत्ता में अधिकतम हिस्सेदारी का है। कहीं न कहीं शिवपाल यादव इस होड़ में खुद को पिछड़ता पा रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव विरासत की लड़ाई में शिवपाल से काफी आगे निकल गए हैं।

शिवपाल यादव के एक करीबी नेता कहते हैं कि ‘शिवपाल जी अपने लिए परेशान नहीं हैं। उन्होंने तो नेताजी के साथ मिलकर पार्टी को खड़ा किया है। उनकी चिंता 2017 का चुनाव है। वे चाहते थे कि समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार करने के लिए जनता परिवार के लोग मैदान में उतरें। वरना नरेंद्र मोदी, चालीस केंद्रीय मंत्रियों और बीजेपी के दस मुख्यमंत्रियों का चुनाव प्रचार में मुकाबला कैसे होगा?’ सपा ने नेता ने कहा कि ‘अखिलेश यादव के भरोसे चुनाव नहीं लड़ा जा सकता और मुलायम सिंह यादव में प्रचार करने का वो दमखम अब नहीं रहा, इसलिए ही शिवपाल यादव जनता परिवार की एकता के लिए जी जान से लगे थे। इसी वजह से उन्होंने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया था ताकि पूर्वांचल के छह जिलों में वोटों का बंटवारा रोका जा सके।’

अब शिवपाल यादव के साथ साथ अमर सिंह ने भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। शिवपाल यादव ने तो नाम नहीं लिया लेकिन अमर सिंह मुख्यमंत्री का नाम लेकर अपनी व्यथा गाथा का बयान कर रहे हैं। अमर सिंह ने साफ कहा कि सपा में जिस तरह के हालात शिवपाल के लिए पैदा हुए हैं, वैसे ही हालात उनके साथ भी हैं। यह हालत वही लोग पैदा कर रहे हैं जो मुझे न तो पार्टी में और न ही राज्यसभा सांसद बनते देखना चाहते थे। अमर सिंह ने दावा किया कि मुखिया मुलायम सिंह की भी पार्टी में नहीं चल रही है। मुलायमवादी होना गुनाह हो गया है। खुद मुलायम सिंह सार्वजनिक बयान दे चुके हैं कि पार्टी में जो कोई उनसे मिल रहा है, मुख्यमंत्री उससे नाराज हो जाते हैं। उसे परेशान किया जा रहा है। अमर सिंह ने यहां तक कह दिया कि ज्यादा मामला बढ़ा तो वे सीधे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को अपना इस्तीफा सौंपेंगे।

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अमर सिंह यह स्पष्ट करना नहीं भूलते की वह पार्टी के किस धड़े के साथ हैं। अमर सिंह कहते हैं, ‘मैं कभी समाजवादी नहीं रहा, मैंने खुद को हमेशा मुलायमवादी कहा। अब तो शिवपाल की औकात इतनी भी नहीं है कि इटावा में एसएसपी बदलवा सकें।’

सारे विवाद के बावजूद पार्टी के लगभग सभी मंत्री चुनाव पूर्व गठबंधन के पक्ष में हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने साफ कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर साफ बता दिया है कि विकास के मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता क्योंकि विकास तो दिल्ली में शीला दीक्षित ने और चंद्र बाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश में भी कराया था और दोनों का वहां की जनता ने क्या हश्र किया सबको मालूम है।

सहारनपुर से राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता अयूब अंसारी ने कहा कि कौमी एकता दल व अन्य छोटे दलों से हाथ मिलाकर मुस्लिम वोटों के बंटवारे से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। नौ मुस्लिम दलों ने मिलकर इत्तेहाद फ्रंट बना लिया है और मजलिस मुसलमीन के ओवैसी भी उत्तर प्रदेश में जमीन तलाश रहे हैं। कौमी एकता दल के साथ गठबंधन करके इस सबसे होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है। समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी खबर यह है कि अखिलेश यादव से अपमानित होने के बाद भी मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल सपा से गठबंधन के लिए तैयार है। मुख्तार अंसारी ने लखनऊ में कहा कि सपा से हाथ मिलाकर वोटों का बंटवारा रोका जा सकता है और कौमी एकता दल सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की बात का सम्मान करेगी।

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रेवती रमण सिंह कहते हैं कि सारे विवाद चुनाव के पहले हल हो जाएंगे और कौमी एकता दल से गठबंधन भी होगा। बिना गठबंधन के विरोधी दलों का मुकाबला करना मुश्किल होगा। पार्टी में चल रहे सत्ता संघर्ष के बारे में रेवती रमण सिंह ने कहा, ‘कोई विवाद नहीं है, पार्टी में विरासत का विषय तय हो चुका है और अखिलेश यादव ही मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी होंगे।

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