उत्तरी कश्मीर के सोपोर में एक आदमी को आग में झोंक दिया गया। इसी तरह श्रीनगर के मशहूर डल झील के किनारे एक युवक को कोड़े से पीटा गया और उसे झील में डुबाकर मारने की कोशिश की गई। कुपवाड़ा में भी भीड़ ने सेना के एक जवान को इतना मारा कि वह जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। उस जवान को बचाने गई पुलिस पर भी जमकर पथराव हुआ। इसी तरह दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में भीड़ ने एक 70 वर्षीय बुजुर्ग की पीट-पीटकर हत्या कर दी। हाल के दिनों में हुई इन घटनाओं के अलावा शांति बहाली की तरफ बढ़ रहे कश्मीर में अलगाववादियों के ऐलान से आए दिन फिर से बंद शुरू हो गए हैं। घाटी के सभी स्कूल-कॉलेज बार-बार बंद किए जाने की वजह से कश्मीर यूनिवर्सिटी में होने वाली परीक्षाएं दो बार स्थगित हो चुकी हैं। कश्मीर में नमाज के बाद पुलिस व सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने की घटनाएं भी फिर से शुरू हो चुकी हैं। महिलाओं के कई संगठन पुलिस व सुरक्षा बलों के विरोध में तख्ती लिए श्रीनगर की सड़कों पर दिख रहे हैं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्राएं हाथ में पत्‍थर लेकर उनके साथ खड़ी हो रही हैं।

कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में हाल के दिनों में तेजी से घटी ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि घाटी को नए सिरे से दहलाने की साजिश रची जा रही है। ये साजिश एक नए आतंक के नाम पर रची जा रही है। आतंक का ये माहौल चोटी कटने की घटनाओं के बाद फैलने वाली अफवाहों से पैदा हो रहा है। अफवाह की इस आग में अलगाववादी नेता घी डालने का काम कर रहे हैं। सैय्यद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारुख और यासिन मलिक जैसे नेता चोटी कटने की घटनाओं को राजनीतिक रूप दे रहे हैं। वे कश्‍मीरी अवाम को ये कहकर भड़का रहे हैं कि कश्‍मीरियों की आजादी की मांग से ध्‍यान हटाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसियां चोटी काटने की घटनाओं को अंजाम दिलवा रही हैं। घाटी में पिछले दो महीनों के दौरान चोटी कटने की 135 से ज्यादा घटनाओं के बाद नई-नई अफवाहें उड़ती हैं और इन्हीं अफवाहों को भुनाने के लिए अलगाववादी लोगों को भड़काने में जुट जाते हैं। ऊपर जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है वे सभी चोटी कटने की घटनाओं के बाद फैली अफवाहों के बाद हुई हैं।

घटनाओं के पीछे साजिश
कश्मीर में आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) की यूनिट से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं, ‘घाटी में सेना आॅपरेशन आॅल आउट चला रही है। इसके तहत आतंकियों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा जा रहा है। टेरर फंडिंग मामले में भी एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की जांच में कई बड़े अलगाववादी नेताओं की गर्दन फंस चुकी है। ऐसे में शुरू हुई चोटी कटने की घटनाओं ने अलगाववादियों को संजीवनी देने का काम किया है। अफवाहों को हवा देकर यासिन मलिक और गिलानी जैसे नेता एक बार फिर से लोगों के साथ जुड़कर घाटी में नफरत और हिंसा फैलाना चाहते हैं।’

पिछले ढाई दशक से दहशतगर्दी की आग में जल रहे धरती के स्वर्ग में दो साल पहले आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद हिंसा बढ़ी तो सेना व पुलिस ने आॅपरेशन आॅल आउट चला कर घाटी में आतंक फैलाने वालों का जमींदोज करना शुरू कर दिया। इससे आतंकवादियों के साथ उनके आकाओं की कमर भी टूटने लगी और जल्‍द ही इसका असर भी घाटी में दिखने लगा। दहश‍तगर्दी की घटनाओं में कमी आने लगी लेकिन पिछले दो महीने से कश्मीर में एक अलग तरह के आतंक का खौफ दिखने लगा है। पिछले दो महीने में लगभग चार बार कश्मीर बंद होने के पीछे जो कारण हैं वे चौंकाने वाले हैं। इस खौफ का शिकार महिलाएं हो रही हैं।

महिलाओं की चोटी रहस्‍यमय ढंग से कटने की घटना चार महीने पहले राजस्थान से शुरू हुई थी जो हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश से होकर अब कश्मीर पहुंच चुकी है। कश्मीर में भी उसी तरह महिलाओं की चोटी कट रही है जिस तरह बाकी राज्यों में कटी थी। किसी महिला को रात के अंधेरे में अंजान साए का दिखना, घर के अंदर सोती महिला की चोटी कट जाना या सड़क पर सुनसान जगह पर किसी महिला का किसी विचित्र जानवर की आकृति देखकर बेहोश हो जाना और फिर होश में आने पर चोटी का कटा पाया जाना। मगर यहां दिलचस्प यह है कि जम्मू इलाके में ये घटनाएं नहीं हो रहीं। सिर्फ कश्मीर घाटी में ऐसा हो रहा है।

दो माह पूर्व तीन सितंबर को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में एक 16 साल की लड़की की चोटी कटने की पहली घटना हुई तो किसी को भी ये अनुमान नहीं था कि इस तरह की घटनाओं का सिलसिला पूरे कश्मीर में देखने को मिलेगा। अलगाववादी नेताओं का कहना है कि दक्षिण से लेकर उत्तरी कश्मीर तथा ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में इस तरह की साढ़े तीन सौ से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक डॉ. एसपी वैद की मानें तो अब तक पुलिस के पास सिर्फ 135 वारदात की रिपोर्ट दर्ज हुई हैं। वैद के मुताबिक, चोटी काटने की बढ़ती घटनाओं को रोकने और इन घटनाओं के पीछे के लोगों का पता लगाने के लिए कश्मीर के प्रत्येक जिले में विशेष जांच दल गठित किए गए हैं जिसकी अगुवाई डीएसपी स्तर के अधिकारी कर रहे हैं। इनमें महिला मनोचिकित्सकों की टीम भी शामिल है। इस मामले में पुख्ता सुराग देने वाले को 6 लाख रुपये का बड़ा इनाम भी देने का ऐलान कर दिया गया है। वैद का आरोप है कि घाटी में तनाव बढ़ाने की साजिश के तहत चोटी काटने की घटनाओं के विरोध में जन उन्माद खड़ा किया जा रहा है। कुछ लोग महज अशांति फैलाने के लिए सुरक्षा बलों पर चोटी काटे जाने का आरोप लगा रहे हैं।

राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों में जिस तरह चोटी कटवा का कोई चेहरा सामने नहीं आया था उसी तरह कश्मीर में भी किसी का चेहरा सामने नहीं आया है। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तक चोटी कटने की घटनाओं से परेशान हैं। हाई कोर्ट ने भी चोटी कटवा को पकड़ने के लिए नाके लगाने और खास इंतजाम के आदेश दिए हैं। पुलिस पीड़ित महिलाओं के बालों के नमूने लेकर फोरेंसिक जांच कराने के बावजूद अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। इस कारण नए आतंक का चेहरा हर दिन और भयानक हो रहा है।

क्या कहते हैं अलगाववादी
कश्मीर में जिस तेजी से चोटी कटने की घटनाएं बढ़ी हैं उसके बाद एक बार फिर अवाम के बीच पुलिस व सुरक्षा बलों के खिलाफ विरोध का माहौल तैयार हुआ है। अलगाववादी नेता इस विरोध को हवा देने में जुटे हैं। मीरवाइज उमर फारुख कहते हैं, ‘निश्चित तौर पर इन घटनाओं के पीछे केंद्रीय एजेंसियों का हाथ है जिसका मकसद हमारेकेंद्र विरोधी एजेंडे और आजादी की मांग से ध्यान भटकाना है।’ कुछ अलगाववादी नेता इस मामले में सुरक्षा बलों के अलावा गैर कश्मीरी मजदूरों पर आरोप मढ़ने में लगे हैं। ये अलग बात है कि इसमें अभी तक कोई सच्चाई सामने नहीं आई है। दक्षिण कश्मीर में कई जगह मुजाहिदीन-ए-कश्मीर संगठन के नाम से लगाए गए पोस्टरों में गैर कश्मीरी मजदूरों को घाटी छोड़ देने की धमकी दी गई है। पोस्टर में यह भी कहा गया है कि यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। मालूम हो कि इन प्रवासी मजदूरों में बड़ी संख्या बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों की है।

सुरक्षा बलों के अधिकारी कहते हैं कि इन पोस्टरों को कुछ शरारती तत्वों ने लगाया है जबकि खुफिया रिपोर्ट में इन पोस्टरों के पीछे हिजबुल मुजाहिदीन समर्थक ओवर ग्राउंड कार्यकर्ताओं का हाथ माना जा रहा है। कश्‍मीर में तैनात खुफिया ब्यूरो से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि घाटी में इन दिनों बड़े पैमाने पर चल रहे सड़क निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के जरिये विकास कार्य चल रहे हैं जिनमें प्रवासी मजदूरों की अहम भूमिका है। चोटी कटने की घटनाओं के विरोध में चिपकाए गए इन पोस्टरों का मकसद प्रवासी मजदूरों को आतंकित कर उन्हें पलायन के लिए मजबूर करना है। कश्मी‍र पुलिस के आईजी मुनीर अहमद खान भी कहते हैं, ‘ये पोस्टर किसी आतंकी संगठन ने नहीं बल्कि अलगाववादियों की शह पर शरारती तत्वों द्वारा ही लगाए गए हैं। उनका मकसद घाटी में जारी विकास कार्यों को प्रभावित करने के अलावा बगानों तथा फलों की लदाई आदि के काम में लगे प्रवासी मजदूरों में खौफ पैदा करना है। पुलिस शरारती लोगों को घाटी का अमन चैन खराब करने की किसी साजिश को कामयाब नहीं होने देगी। ऐसे पोस्टरों व चोटी कटने की घटनाओं की अफवाहों को लोग तवज्जो न दें।’

पर्यटन पर भी असर
बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद कश्मीर घाटी में जो हालात पैदा हुए थे उससे यहां का पर्यटन उद्योग तहस-नहस हो गया था। पिछले कुछ महीनों में यहां छाई शांति से इस उद्योग से जुड़े लोगों को भरोसा होने लगा था कि इस बार सर्दियों में फिर से पर्यटक आने लगेंगे और उनका कारोबार पटरी पर आने लगेगा। मगर चोटी कटने की घटनाओं में लगातार हो रही वृद्धि का असर पर्यटन कारोबार पर अभी से दिखाई देने लगा है। कश्मीर में सीजन का पहला हिमपात शुरू हो चुका है मगर अगले दो महीने तक चलने वाला शीतकालीन पर्यटन आतंक के नए खौफ की भेंट चढ़ता दिख रहा है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का मानना है कि जब तक चोटी कटने की घटनाएं होती रहेंगी और इसके विरोध में बंद जारी रहेंगे तब तक यहां आने वाले पर्यटकों में भय बना रहेगा। श्रीनगर के हाउसबोट आॅनर एसोसिएशन, जेएंडके टूरिजम अलायंस, ट्रैवलर्स एजेंट्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया समेत पर्यटन से जुड़ी दर्जन भर संस्थाओं के प्रतिनिधि चोटी कटने की घटनाओं को लेकर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मिलकर घटनाओं पर अंकुश लगाने की गुहार लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री खुद इन घटनाओं को लेकर बेहद चिंतित हैं।
एसोसिएटेड चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के चेयरमैन, पीएचडी चैबंर आॅफ कश्मीर के को-चेयरमैन और नामचीन होटल शहंशाह पैलेस के निदेशक जहूर त्रंबू कहते हैं, ‘दीपावली के बाद घाटी में पर्यटकों की आमद शुरू होती है। मगर जिस प्रकार चोटी काटने की आए दिन घटनाएं घट रही हैं और इसके विरोध में घाटी के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह प्रदर्शन हो रहे हैं उससे नहीं लगता कि इस शीतकाल में पर्यटक कश्मीर घाटी का रुख करेगा। कई विदेशी पर्यटकों को पिछले दिनों चोटी काटने के आरोप में लोगों ने निशाना बनाने की कोशिश की। इससे पर्यटकों में दहशत है।’