उमेश सिंह

त्रेतायुग के बाद इस बार की दीपावली ऐसी रही कि अयोध्या निहाल हो उठी। इतिहास करवट ले रहा था। काल का पहिया घूम गया। पहुंच गया दीपावली के प्रारंभ बिंदु पर। काल मानो निचुड़कर एक बिंदु पर आ गया। त्रेता और कलियुग की बीच की सहस्राब्दियों की दूरी मानो सिमट गई। त्रेतायुग में इसी अयोध्या ने अपने राम का स्वागत दीयों की रोशनी से किया था। अयोध्या दीपावली की परंपरा का आदि बिंदु है। वनवासी राम से राजाराम बनने के ऐतिहासिक दिन को समूची दुनिया में मनाया जाता है लेकिन जिसने शुरू किया, वही अयोध्या चुप सी हो गई, उदास हो गई, गुमसुम हो गई। अयोध्या की आबोहवा ने ही राम और राम से पहले भी भारत की संस्कृति को गढ़ा। इसी अयोध्या ने बहुसंख्यकों की संस्कृति को खाद-पानी दे उसे सहस्राब्दियों तक पुष्पित-पल्लवित किया। रघुवंशी राजाओं की धर्म, अध्यात्म, त्याग, विद्वता, प्रजावत्सलता की कहानियां किताबों में ही नहीं, लोगों के कंठ में हैं, स्मृतियों में दर्ज है। यह सच है कि इतिहास खुद को दोहरता है। अयोध्या में यह सच घटित हो रहा था। भले प्रतीकों में सही। ‘चलत विमान कोलाहल होई..- समान पुष्पक विमान अयोध्या के आंगन में उतरा तो आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी। ‘एकहि नारा, एकहि नाम, जयसियाराम-जयसियाराम…’ की गगनभेदी गूंज से समूचा परिवेश गुंजायमान होने लगा। अयोध्या के रोम-रोम में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का स्पंदन हो रहा था। सत्ता और संत भावुक हो राम का स्वागत कर रहे थे। गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र प्रतीकों में ही सही, सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने राम को टीका लगा राज्याभिषेक की रस्म की। सत्ता, संत और सरयू की त्रिवेणी के बीच ही लोगों का हर्षोन्माद, अतिरेकी भावना जनित छलकती अश्रुबूंदे, तालियों की गडगड़ाहट संकेतों में बहुत कुछ भविष्य के भारत के लिए बुलंदी से बयां कर रही थीं। संस्कृति के रथ से सधे सियासी तीर भी चलाए गए। सीएम ने परिवारवाद, भष्टाचार, जातिवाद और संप्रदायवाद को आसुरी शक्ति बताया। उन्होंने कहा, ‘इन आसुरी शक्तियों का पालन पोषण पूर्ववर्ती सरकारों ने किया था जिसका नाश किया जा चुका है। इन शक्तियों का नाश करके ही रामराज्य लाया जा सकता है। हम उसी रामराज्य के रास्ते पर हैं। ये शक्तियां बिजली देने में, विकास करने में भेदभाव करती थीं।’
त्रेता से कलियुग तक की यात्रा। दोनों में वैसी ही समरूपता है। त्रेतायुग में समूची राजसत्ता ने श्री राम के चौदह बरस के वनवास के पूरा होने पर पलक पांवड़े बिछाये थे। आज की राजसत्ता भी श्रीराम के लिए अयोध्या के आंगन में उतर आई। देश के बहुसंख्यकों की भावना सदियों से इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी। उसकी साध अब पूरी हुई। राम ने क्या नहीं दिया। राम की संस्कृति ही बहुसंख्यकों के दिल में धड़कती है। राम उसके मानस को उद्धेलित करते हैं। श्रीराम दीये की तरह जलते रहे। अंधियारा पीते रहे और रोशनी उगलते रहे। राम का जीवन साधना का जीवन था। वे मूल्यनिर्माता थे। जन-जन में राम वास करते हैं लेकिन सत्ता ने उन्हें निर्वासित कर दिया था। वनवासित कर दिया था। अपने घर-आंगन में ही वे उदास थे। अयोध्या गुमसुम थी। गुमसुम रहने वाली, मौन धारण करने वाली अयोध्या दीपावली पर खिलखिला उठी। अयोध्या जगर-मगर कर रही थी। दीयों की रोशनी से सरयू का किनारा नहाया तो पुण्य सलिला भी मानो आनंद की कल-कल ध्वनि करने लगी। उसकी लहरें आनंद का गीत गा रही थीं। अयोध्या की दीपावली ने संस्कृति की शिला पर चटकदार हस्ताक्षर कर दिया। राम की उपेक्षा का जो दर्द था, राम को लेकर सदियों से लोगों में जो ‘सांस्कृतिक- भूख प्यास’ थी, उसको अयोध्या की दीपावली ने शांत कर दिया। अस्मिता पर उपेक्षा की धूलि चढ़ा दी गई थी, वह मानो धुल गई, साफ-सुथरी हो गई। राम की संस्कृति यानी मर्यादा, त्याग और करुणा की संस्कृति। इन शब्दों से राम और उनकी अयोध्या का नाभिनाल का रिश्ता रहा है।
वैसे तो सत्ता संस्कृति के रथ पर सवार थी लेकिन उसी रथ से सधे सियासी तीर दिन भर चलते रहे और वे अपने लक्ष्य को भेद रहे थे। आह्लादित जनता की ओर से ‘जय सियाराम’ और‘ह्णजय श्रीराम’ के गगनभेदी नारे सरयू के किनारे गूंज रहे थे। प्रतीकों के सहारे सत्ता बड़े सलीके से यह संकेत देने में कामयाब रही कि हम राम को बिसारने वाले नहीं हैं। संवैधानिक मर्यादा की सीमाओं से बद्ध रहते हुए श्रीराम के प्रति अनुराग दिखाया लेकिन राममंदिर निर्माण की बात नहीं की। रामकथा पार्क में मुख्यमंत्री ने अयोध्या के लिए 133 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास करके यह संकेत दे दिया कि अयोध्या के विकास के लिए वह सतत संवेदनशील हैं। फैजाबाद के सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि दीपावली पर अयोध्या से उठी राम की यह वेगवान धारा भविष्य के भारत की नई कहानी लिखेगी। अपने देश को ही नहीं हांफते-कराहते विश्व को ‘राम की संस्कृति’ की जरूरत है। जो राम के राह पर चलेगा, राम का अनुगामी होगा, जिसके रोम-रोम में राम की धारा बहेगी, चाहे वह व्यक्ति हो या समाज या कोई देश, वहां शांति की घंटियां गूंजेंगी। हनुमानगढ़ी के पुजारी व अयोध्या के पूर्व सभासद रमेशदास ने कहा, ‘कुछ ताकतों ने राम और राम की संस्कृति को हाशिए पर धकेलने की कोशिश की। राम तो त्रेता युग से कलियुग तक प्रासंगिक बने हुए हैं लेकिन जिसने भी राम को ढकने की कोशिश की, वे समय की क्रूर धारा में समाते जा रहे हैं, मिटते जा रहे हैं।’ अयोध्या की कालिकुलालयम पीठ के संस्थापक डा. रामानंद शुक्ल ने कहा, ‘इस वर्ष की अयोध्या की दीपावली ऐतिहासिक रही। दीयों की रोशनी से जगर-मगर करती अयोध्या ने देश में सांस्कृतिक पुनरुत्थान की पटकथा लिख दी।’ भाजपा जिलाध्यक्ष अवधेश पांडेय ‘बादल’ ने कहा, ‘श्रीराम देश की सांस्कृतिक थाती हैं। उन्होंने देश की संस्कृति को गढ़ा है, उनका व्यक्तित्व प्रेरणा का केंद्र है। भव्य दीपोत्सव के आयोजन ने सांस्कृतिक जागरण की मुनादी की है।’

कानों में मंत्रों की ध्वनि तो आंखों में जन्मभूमि आंदोलन के नायक
सरयू पुल के एक ओर राज्यपाल और सीएम सरयू की आरती कर रहे थे तो दूसरी ओर सरयू सेवा समिति ठीक उसी क्षण मां सरयू का पूजन-अर्चन और आरती कर रही थी। सीढ़िय़ां खचाखच भरी थीं। कानों में मंत्रों की ध्वनि गूंज रही थी लेकिन आंखों के सामने रामजन्मभूमि आंदोलन के नायकों के चित्र लगे थे। विशिष्ट बात यह रही कि समिति की ओर आयोजित आरती में रामजन्मभूमि आंदोलन की यादों को ताजा करने की भरपूर कोशिशें की गई थीं। घाट पर कीर्तिशेष अशोक सिंहल, महंत रामचंद परमहंस, महंत अवैद्यनाथ के बड़े-बड़े चित्र लगे हुए थे। उनके चित्रों के साथ ही राम, अयोध्या और सरयू से जुड़ी तस्वीरें थीं। महंत नृत्य गोपाल दास का भी चित्र था जो उनकी राम मंदिर के प्रति निष्ठा और समर्पण को व्यक्त कर रहा था। पुल पर लगी स्क्रीन पर जो चल रहा था, वह बहुसंख्यकों की संस्कृति और और उसकी अस्मिता को उन परंपराओं से जोड़ रहा था जो श्रीराम से संबंधित हैं। ‘आज हमें गर्व है कि हम हिंदू हैं’ यह वाक्य बारंबार स्क्रीन पर आ रहा था और इसके आते ही तालियों की तड़तड़ाहट से सरयू का किनारा गुंजायमान हो जा रहा था। आरती के दौरान डेढ़ दर्जन सजी-धजी नौकाओं ने सरयू की मध्यधारा में कतारबद्ध हो पटाखों को छोड़ना शुरू किया तो अद्भुत सौंदर्य भासमान हो उठा। दीयों से जगर-मगर करती अयोध्या का सरयू का तट और फिर धारा के मध्य में उसकी सतह से आसमां की ओर उठा सतरंगी प्रकाश मौजूद लोगों को आनंद के नए लोक की सैर करा रहा था। यहां पर ‘हिंदुत्व की त्वरा’ चटक रंग में भासमान हो रही थी। सतर्कता इतनी बरती गई कि सत्ता तो पुल के बाएं तरफ थी जहां गवर्नर और सीएम आरती कर रहे थे। यहां तक कि सरयू सेवा समिति के संरक्षक सांसद लल्लू सिंह भी पिछले चार दिनों से इसी तट पर तैयारियों को लेकर रात गुजारते रहे लेकिन आरती के मौके पर यहां नहीं आए। पुल के बाई ओर जहां सीएम और गवर्नर आरती कर रहे थे, उसी आरती में सांसद लल्लू सिंह शामिल रहे।

हेरिटेज वॉक ने संस्कृति के गौरव का किया गान
तकरीबन तीन किलोमीटर की यह यात्रा आध्यात्मिक ज्ञान व गौरव के प्रतीकों को वंदन-नमन करने के लिए थी। यात्रा में जो भी मंदिर और घाट थे, वे सदियों का स्वर्णिम आध्यात्मिक इतिहास धारण किए हुए हैं। यहां पर विकट साधनों ने धूनी रमाई और उनकी साधना का प्रताप दूर तक फैला। इन मंदिरों व घाटों की ऐतिहासिकता का बखान बखूबी किया जाता रहा। हेरिटेज यात्रा में शामिल लोगों ने मंदिरों में पहुंच इष्ट का दर्शन किया तथा छत पर चढ़ पुण्य सलिला सरयू को निहारा। रास्ते में जगह-जगह हेरिटेज वॉक में शामिल लोगों पर पुष्प वर्षा की गई। सरयू नदी के किनारे कंचन भवन से शुरू यात्रा ऋणमोचन घाट, सियाराम किला, झुनकीघाट, पापमोचन घाट, सदगुरू सदन, लक्ष्मण किला, सहस्त्रधारा घाट, शेषावतार मंदिर, उदासीन आश्रम, स्वर्गद्वार मंदिर, चंद्रहरि मंदिर, सरयू माता मंदिर होते हुए नागेश्वरनाथ मंदिर पहुंची, जहां हेरिटेज वॉक का समापन हो गया। वॉक में शामिल प्रमुख सचिव (पर्यटन) अवनीश अवस्थी ने कहा कि धरोहरों को संरक्षण देने के उद्देश्य से यात्रा हुई जिससे पयर्टन का विकास हो। 