देश में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश की सुरक्षा, आर्थिक हितों की रक्षा जरूरी है लेकिन इसे मानवता के आधार पर भी देखा जाना चाहिए। हमारा संविधान मानवता के आधार पर बना है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सभी पक्षों को और बहस का मौका दिया। साथ ही केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक उन्हें वापस न भेजा जाए। मामले की अगली सुनवाई 21 नवंबर को होगी। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि दलीलें भावनात्मक पहलुओं पर नहीं बल्कि कानूनी बिन्दुओं पर आधारित होनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता को यह अनुमति भी दी कि वे किसी भी आकस्मिक स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में आ सकते हैं। साथ ही केंद्र सरकार से भी कहा कि अगर आपके पास कोई आकस्मिक प्लान है तो अदालत को अवश्य सूचित करें। पीठ ने कहा कि रोहिंग्या मुस्लिमों का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और सरकार को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। सरकार को मानवीय पहलू का भी ध्यान रखना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आतंकवादी है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन निर्दोष और बच्चे आदि परेशान नहीं होने चाहिए। 3 अक्टूबर को हुई पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के उस रूख का विरोध किया था कि जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या मामले की याचिका न्यायालय में विचार योग्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या संकट पर कहा था कि मानवीय पहलू और मानवता के प्रति चिंता के साथ-साथ परस्पर सम्मान होना भी जरूरी है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि अवैध रोहिंग्या शरणार्थी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। हलफनामे में रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से कनेक्शन होने की बात करते हुए उन्हें किसी भी कीमत पर भारत में रहने की इजाजत नहीं देने की बात कही गई है।
हलफनामे के मुताबिक भारत में अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या 40 हजार से अधिक हो गई है। हलफनामे में सरकार ने साफ किया है कि ऐसे रोहिंग्या शरणार्थी जिनके पास संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें भारत से जाना ही होगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगभग 40,000 रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकालने की योजना पर केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा था।
रोहिंग्या शरणार्थियों ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार के कदम को समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा है कि हम गरीब हैं और मुसलमान हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा किया जा रहा है। रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को भारत से बाहर निकाले जाने के सरकार के कदम पर समुदाय ने कोर्ट में अर्जी देकर कहा है कि उनका आतंकवाद और किसी आतंकी संगठन से कोई लेना-देना नहीं है।