शास्त्रों में कहा गया है कि किसी व्यक्ति का जो विशेष गुण होता है वही दूसरों को भार लगने लगता हैं। यह बात इन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर लागू हो रही है। 44 वर्ष के योगी के जीवन के बीस साल से अधिक का समय एक संन्यासी का रहा है यानी सादा जीवन। वो तीन बजे उठ जाते हैं और दैनिक क्रिया, ध्यान आदि से निवृत्त होकर सुबह पांच बजे काम के लिए तैयार हो जाते हैं। आधी रात तक काम में व्यस्त रहना उनके लिए सामान्य बात है। उनकी यही आदत उनके लिए बोझ बन रही है। दबी जुबान से उनके मंत्री और अफसर इसकी शिकायत करने लगे हैं। एक मंत्री का कहना है कि धीरे-धीरे यह धारणा बन रही है कि अनुशासन के मामले में मुख्यमंत्री अड़ियल हैं और बाकी लोग निकम्मे हैं। योगी उनसे ठेल-ठेल कर काम करा रहे हैं।

आधी रात तक चलने वाली बैठक के बाद भी योगी की दिनचर्या में फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने मुख्यमंत्री आवास से एयर कंडिशनर हटा दिए हैं। वे खुद तख्त पर कम्बल बिछा कर सोते हैं। अब ऐसे आदमी से कदमताल करना मंत्रियों और अफसरों के लिए तो मुश्किल है ही। कोई मंत्री या अफसर इस बारे में खुल कर तो नहीं बोलता लेकिन विधयाक और मंत्री मिलते हैं तो चर्चा का विषय योगी ही होते हैं। मंत्रियों और अफसरों पर काम के दबाव का अहसास मुख्यमंत्री को भी है। इसका खुलासा स्वयं योगी ने भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक में किया। योगी ने कहा, ‘रात दो बजे तक विभागों के प्रेजेंटेशन की बैठक चलती थी और उसमें सभी मंत्री शामिल होते थे। मैं डरता था कि कहीं बुजुर्ग मंत्रियों के स्वास्थ्य पर इसका असर न पड़े लेकिन हर मंत्री ने उत्साह के साथ बैठकों में भाग लिया। किसी ने झपकी और जम्हाई भी नहीं ली।’ मुख्यमंत्री सचिवालय के बारे में योगी ने कहा कि पिछली सरकार में तो केवल दिन के दो बजे तक काम होता था। अब आधी रात के बाद तक सचिवालय में काम होता है।

1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद से पंचम तल यानी मुख्यमंत्री सचिवालय लगातार ताकतवर हो रहा था। योगी ने इसे बदला है। पहले की सरकारों में प्रमुख सचिव और चार-पांच सचिव होते थे। अब केवल एक सचिव है और काम पहले से ज्यादा हो रहा है। पंचम तल के सचिव प्रदेश के मुख्य सचिव से भी ज्यादा प्रभावशाली होते थे। अफसरों के अलावा मंत्री भी उनके कमरे में जाते थे। मायावती के कार्यकाल में तो उनके कैबिनेट सचिव कैबिनेट मंत्रियों की बैठक भी अपने कमरे में ही करते थे। अब योगी जनता से रोज मिलते हैं और यदि किसी काम में या दौरे में व्यस्त हैं तो कोई मंत्री इस काम को देखता है। इसके साथ ही भाजपा के प्रदेश कार्यालय में रोज एक मंत्री की ड्यूटी लगती है जो प्रदेश भर से आए लोगों की शिकायत सुनता है। भीड़ बढ़ने पर पार्टी के पदाधिकारी भी मंत्री का हाथ बंटाते हैं। पहले पंचम तल से फाइल दो से चार हफ्ते बाद वापस आती थी। अब यह अवधि घटकर दो दिन हो गई है। विधानसभा सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए व्यय से संबंधित फाइल वित्त विभाग के माध्यम से मुख्यमंत्री तक जाती थी। मुझे आश्चर्य है कि हमारा प्रस्ताव न केवल सरकार ने मान लिया बल्कि यह निर्णय दो दिन में हो गया।

योगी ने वर्षों से चली आ रही एक और परंपरा को तोड़ा है। पहले मुख्यमंत्री तक जाने वाली फाइलों पर उनके सचिव या प्रमुख सचिव नोट शीट पर लिख दिया करते थे कि माननीय मुख्यमंत्री के पत्रावली का अनुमोदन कर दिया है या मुख्यमंत्री ने पत्रावली का अवलोकन कर लिया है। अनुमोदन तो साफ आदेश होता था लेकिन अवलोकन का क्या अर्थ निकाला जाए। बस यहीं से अफसरों का विवेक काम करना शुरू कर देता था और सौदेबाजी होती थी। अब ऐसा नहीं होता है। अब हर फाइल पर मुख्यमंत्री स्वयं हस्ताक्षर करते हैं।

राज्य मंत्री शिकायत करते हैं कि उन पर काम का बोझ है लेकिन यह भी सच है कि पिछले चार दशकों बाद ऐसा पहली बार है कि राज्य मंत्री के पास भी काम है। पहले तो केवल लाल बत्ती होती थी। संदीप सिंह सबसे कम उम्र के मंत्री हैं। वे प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री के पोते हैं। वे शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के राज्य मंत्री हैं। दोनों विभागों के कैबिनेट मंत्री के साथ वे हर बैठक में शामिल होते हैं। कभी-कभी तो मीटिंग चार घंटे से भी अधिक चलती है। साथ ही क्षेत्र के लोगों से भी मिलना पड़ता है। अधिकांश मंत्री शपथ लेने के बाद दो बार ही अपने चुनाव क्षेत्र जा पाए हैं। 15 मई से विधानसभा का एक हफ्ते का सत्र है। फिर अगले महीने नगर पालिका चुनाव है। फिर विधानसभा का बजट सत्र भी होना है। मुख्यमंत्री की सख्त ताकीद है कि हर मंत्री विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ आएगा। यानी चैन नहीं है।

एक मंत्री का कहना है, ‘आज काम का बोझ जरूर लगता है लेकिन इसका लाभ आने वाले दिनों में दिखना शुरू होगा। मुख्यमंत्री के जनता दर्शन कार्यक्रम से सचिवालय में मंत्री और विधायक से मिलने आने वाले लोगों की संख्या कम होगी। हर मंत्री अधिक से अधिक लोगों से मिलकर जनता के हर वर्ग और राज्य के कर्मचारियों से संवाद कर रहा है। हम यह दावा नहीं करते कि हम सबकी हर समस्या का हल कर देंगे लेकिन हम संवाद तो कर रहे हैं। लोग अपनी बात सरकार तक पहुंचा तो रहे हैं। पहले की सरकारें तो लोगों से संवाद तक नहीं करती थीं।’ उनका दावा है कि इसका एक लाभ यह भी होगा कि लखनऊ का धरना स्थल अब सूना हो जाएगा और भूख हड़ताल आदि की बातें सुनने को नहीं मिलेंगी। इससे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर भी असर पडेÞगा क्योंकि बिजली, पानी या अन्य कोई स्थानीय समस्या का बोझ अंतत: पुलिस पर ही आ जाता है। यदि सरकार जनता के दैनिक जीवन की समस्या का थोड़ा भी निदान कर सकी तो लोगों के दैनिक जीवन पर इसका असर होना लाजिमी है।

मंत्री जी के उलट पूर्वांचल के एक विधायक का कहना है, ‘वे योगी हैं, हम लोग थोड़े हैं। पिछले पंद्रह साल से जो लोग हमारा झंडा बैनर ढोते रहे हैं योगी कहते हैं उनकी सिफारिश नहीं करो, ठेका-पट्टा की बात न करो। हमें तो आगे भी चुनाव लड़ना है। परिचित लोगों की सिफारिश नहीं करेंगे तो अगले चुनाव में किस मुंह से उनसे वोट मांगेंगे।’ वहीं एक मंत्री कहते हैं, ‘क्या फायदा मंत्री बनने का, एक ठो लाल बत्ती रही वोहो योगीजी ने वापस ले लिया। जो भी होना है वो योगीजी के अनुमोदन से होना है। कुल पॉवर तो योगीजी के पास है। हम लोग तो बस काम करते रहो। न खाने का समय तय है न सोने का, बस काम ही काम।’

अफसरों की भी स्थिति मंत्रियों-विधायकों से अलग नहीं है। जीवन में पहली बार हर जिले का जिलाधिकारी अपने कार्यालय के शौचालय की सफाई की चिंता कर रहा है और यह भी देख रहा है कि सभी कर्मचारी समय से आॅफिस आ रहे हैं या नहीं। लखनऊ पुलिस जोन के पुलिस निरीक्षक सतीश गणेश अपने अधीन आने वाले दस जिलों के पुलिस अधीक्षकों से आम आदमी बन कर फोन कर शिकायत करते हैं। फोन का जवाब न मिलने पर या शिकायत पर कार्रवाई न करने पर उनकी क्लास भी लेते हैं। लिहाजा हर जिले के पुलिस अफसर और जिला अधिकारी सतर्क हो गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कह कर जिले के अफसरों की मुश्किल और बढ़ा दी है कि वे खुद अफसरों के लैंडलाइन पर फोन करेंगे ताकि यह मालूम हो कि वे अपने आवास के कैंप आॅफिस की बजाय कार्यालय में बैठ कर जनता से मिलते हैं या नहीं।

जनता दरबार का स्याह पहलू
एक तरफ तो खुद मुख्यमंत्री, उनके सभी मंत्री और भाजपा के लोग जनता की समस्याओं को निपटाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। सीएम योगी जनता दरबार में समस्याएं सुन रहे हैं, अपने मंत्रियों की भी उन्होंने अलग से जनता की समस्याएं सुनने के लिए ड्यूटी लगा दी है। लेकिन चौंकाने वाली जानकारी ये है कि मुख्यमंत्री के जनता दर्शन का अफसर कोई रिकॉर्ड ही नहीं रख कर रहे हैं। यह जानकारी एक आरटीआई के जवाब में मुख्यमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा को दी है। लखनऊ निवासी संजय शर्मा ने पिछले महीने 8 अप्रैल को मुख्यमंत्री कार्यालय में आरटीआई दायर कर मुख्यमंत्री के जनता दरबार से संबंधित 14 बिंदुओं पर सूचना मांगी थी।

मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुभाग अधिकारी और जन सूचना अधिकारी सुनील कुमार मंडल ने जो सूचना दी है उसके अनुसार मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दरबारों की संख्या, जनता दर्शन में आए फरियादियों की संख्या, फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों की संख्या और फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों में से निस्तारित हो चुके प्रार्थना पत्रों की संख्या की कोई सूचना नहीं है। जवाब में यह भी बताया गया है कि जनता दर्शन में फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों के आधार पर किसी लोकसेवक को दंडित किए जाने की भी कोई सूचना मुख्यमंत्री कार्यालय में नहीं है। जनता दरबार में शामिल होने के लिए तय की गई प्रक्रिया के सवाल पर बताया गया है कि जनता दर्शन में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में शामिल हुआ जा सकता है जिसके लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं है।

मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दर्शन कार्यक्रम से संबंधित कोई भी सूचना न होने से चकित संजय शर्मा कहते हैं, ‘जनता दर्शन में आए मामलों की सुनवाई की व्यवस्था के अभाव में यह कार्यक्रम महज खबर बन कर रह जाएगा। जनता की फरियादें भी सूबे की नौकरशाही की लाल फीताशाही के मकड़जाल में उलझकर अपना दम तोड़ देंगी।’ संजय के मुताबिक, वे योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर जनता दर्शन में आए मामलों की सुनवाई की प्रभावी व्यवस्था करने और मामलों की जांच में दोषी पाए गए लोकसेवकों को दंडित किए जाने की प्रणाली विकसित करने की मांग भी कर रहे हैं।

yogi-jannayak

रामराज्य या जंगलराज
कानून व्यस्था के मसले पर विपक्ष को योगी सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि योगी सरकार आने के बाद सुशासन आएगा। मगर इस धारणा को स्वयं भाजपा के लोगों की हरकतों से धक्का लगा है। योगी सरकार बनने के बाद से पुलिस पर ही 25 से ज्यादा हमले हो चुके हैं जिसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए हैं। एक सांसद ने तो अपने कार्यकर्ताओं के साथ एसएसपी आवास पर धावा बोल दिया था। जबकि एक विधायक ने महिला आईपीएस अधिकारी के साथ इस तरह का बर्ताव किया जैसे वह कोई अपराधी हो। विधायक के इस बर्ताव से महिला पुलिसकर्मी सरे बाजार रोने लगी। पुलिस महानिरीक्षक (कानून और व्यवस्था) हरि शर्मा ने पुष्टि की है कि बुलंदशहर, लखनऊ, अंबेडकरनगर, संभल, आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, एटा, सहारनपुर, फतेहगढ़, फतेहपुर, प्रतापगढ़, हमीरपुर, मऊ, जालौन और जौनपुर से पुलिस दलों पर हमले की खबरें हैं।

कई मामलों में भाजपा नेताओं ने अपने हाथ में कानून लिया है। आजमगढ़ के पूर्व सांसद रमाकांत यादव ने एक अधिकारी को धमकाते हुए कहा कि यादव हो इसलिए छोड़ दिया, अगर पंडित या ठाकुर होते तो पटक कर मारते। कुछ दिनों पहले मेरठ में एक भाजपा नेता अंकित त्यागी ने पुलिस निरीक्षक को मारा क्योंकि उसने नेता के बेटे की गाड़ी को काला शीशा और नीली बत्ती लगी होने पर रोका था। त्यागी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है लेकिन अब तक किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है। सत्तारूढ़ दल के नेता ही कानून व्यवस्था के मसले पर सरकार के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं।

चित्रकूट में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के रिश्तेदारों को गोलियों से भून डाला गया और जालौन में हुए गैंगरेप ने प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। सहारनपुर में एक बार फिर से अराजकता का माहौल बना हुआ है। महीने भर के अंदर दूसरी बार सहारनपुर में बवाल हुआ है। महाराणा प्रताप जयंती के मौके पर निकाली गई शोभा यात्रा को लेकर यहां दो पक्ष आपस में भिड़ गए। इस भिड़ंत में दबंगों ने दलितों के साथ मारपीट की और करीब दो दर्जन घरों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद मामला इतना बढ़ गया कि फायरिंग भी शुरू हो गई। पुलिस मौके पर पहुंची और मामले को शांत कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस के सामने ही हंगामा होता रहा। इस बीच दूसरे समुदाय के लोगों ने दलितों के घर में लगा दी। इससे दलितों में आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने पथराव और लाठी-डंडों से हमला बोल दिया। इस हमले में एक युवक की मौत हो गई जबकि 10-12 लोग घायल हो गए।

सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक विभूति नारायण राय कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की समस्या को काबू करना आसान नहीं है क्योंकि 1989 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने की बाद से कानून-व्यवस्था और गवर्नेंस किसी भी सरकार की प्राथमिकता में रहा ही नहीं। कानून-व्यवस्था के लिए मुख्य जरूरत है पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग और साजो सामान की। सहारनपुर में सपा सरकार के समय भी दंगा हुआ था और इस सरकार के समय भी हुआ। मंडल मुख्यालय होने के बाद भी सहारनपुर पुलिस के पास न तो आंसू गैस के गोले हैं और न ही वाटर कैनन यानी पानी की बौछार करने वाली गाड़ी। ब्यूरो आॅफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के मानक के अनुसार आंसू गैस हर थाना स्तर पर होनी चाहिए और एक पुलिस कर्मी को आंसू गैस का गोला छोड़ने वाला गन चलाने की ट्रेनिंग होनी चाहिए। उत्तर पुलिस रेगुलेशन में स्पष्ट प्रावधान है कि इस बात का रिकॉर्ड रखा जाए कि एक पुलिस के जवान ने साल में कितने राउंड फायर किए। कितने दिन में और कितने रात में किए। हमारे जमाने में रात की फायरिंग में फेल होने पर जवान की छुट्टी रोक दी जाती थी। अब ऐसा बहुत सालों से बंद है।’
योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती की ओर से ईवीएम को लेकर उठाए गए सवालों पर पलटवार किया और ईवीएम की नई परिभाषा बताई। योगी ने कहा, ईवीएम का मतलब है एवरी वोट फॉर मोदी।