उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा की जीत को राजद प्रमुख लालू प्रसाद जातीय उन्माद और धुव्रीकरण की जीत बताते हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा विकास की बातें करते हैं, लेकिन चुनाव के समय उनके सुर बदल जाते हैं और बात विकास की न होकर श्मसान-कब्रिस्तान पर केंद्रित हो जाती है। उनके मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं, जो देश की एकता के लिए खतरे का संकेत है। उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों के राष्ट्रीय राजनीति पर असर समेत तमाम मुद्दों पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से ओपिनियन पोस्ट के विशेष संवाददाता अभिषेक रंजन सिंह  ने तफसील से बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :

उत्तर प्रदेश चुनाव के समय आपका दावा था कि राज्य में भाजपा की स्थिति बिहार से खराब होगी, लेकिन भाजपा बड़े बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही।
उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे अप्रत्याशित थे, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं निकालना चाहिए कि जनता की नजरों में भाजपा और मोदी ही सर्वमान्य नेता हैं। अगर ऐसा होता तो बिहार के चुनावों में हमें कामयाबी और एनडीए को शर्मनाक हार का सामना नहीं करना पड़ता। हमें भाजपा की कमजोर नब्ज का पता है, इसलिए हमने बिहार में जेडीयू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन किया। इससे हैरान-परेशान भाजपा और आरएसएस ने चुनाव के समय गाय और आरक्षण का मुद्दा उठाया। लेकिन नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और अमित शाह की तिकड़ी की एक नहीं चली बिहार में। भाजपा और आरएसएस को जोड़ने में नहीं तोड़ने में विश्वास है। जबकि हम फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ लड़ने के प्रति कृतसंकल्प हैं। भाजपा को रोकने के लिए हमने उत्तर प्रदेश में भी बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाने का प्रस्ताव दिया था। अगर सपा, बसपा, कांग्रेस और लोकदल मिलकर चुनाव लड़ते तो भाजपा जीत का जश्न नहीं मना रही होती। भाजपा जैसी सांप्रदायिक पार्टी को रोकने के लिए महागठबंधन ही एकमात्र विकल्प है। यह सिर्फ विधानसभाओं के चुनाव के लिए नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी कारगर होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी गैर भाजपा दलों को एकजुट करने का काम हम करेंगे।

क्या आपको लगता है कि समाजवादी पार्टी में अंदरूनी कलह खासकर मुलायम परिवार का आपसी झगड़ा सपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ?
इस बात से भला कौन इनकार कर सकता है कि चुनाव में समाजवादी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन में पार्टी की आपसी खींचतान एक बड़ी वजह बनी। हालांकि इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए कि अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में विकास के काफी काम किए। लेकिन उनकी सारी उपलब्धि पार्टी और पारिवारिक कलह की भेंट चढ़ गई। चुनाव से पहले हुए इस झगड़ा-झंझट से मतदाताओं में एक भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा। अखिलेश यादव एक युवा नेता हैं और उनमें राजनीतिक समझदारी भी है। चुनाव में हार-जीत लगी रहती है। हमें उम्मीद है कि अपनी सूझ-बूझ से वह अपनी पार्टी एवं कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करेंगे। साथ ही परिवार में जो भी मतभेद हैं, उन्हें जल्दी ही सुलझा लिया जाएगा, ऐसी मुझे उम्मीद है।

नोटबंदी के फैसले पर आप लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर रहे। यूपी की चुनावी रैलियों में भी आपने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा। क्या आपको नहीं लगता कि भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर जनता ने पीएम मोदी के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी?
हम जनादेश का सम्मान करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि नोटबंदी का फैसला सही था। मैं आज भी नोटबंदी पर केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों और दावों को गलत मानता हूं। प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि नोटबंदी से कालेधन पर अंकुश लगेगा और विदेशों में जमा कालाधन स्वदेश लौटेगा। नोटबंदी लागू किए छह महीने हो गए, लेकिन केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री यह बताने को तैयार नहीं हैं कि कितना कालाधन वापस आया। प्रधानमंत्री मेक इन इंडिया और स्किल डेवलपमेंट की बात करते हैं, लेकिन यह कभी नहीं बताते कि पिछले तीन वर्षों में भारत में कितना विदेशी पूंजी निवेश हुआ है। वह सिर्फ लोगों को सब्जबाग दिखा रहे हैं। उनकी नीतियां युवा पीढ़ी को गर्त में धकेलने का काम कर रही हैं। नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम की कतार में खड़े होने से सौ से ज्यादा लोगों की मौतें हुर्इं, लेकिन इसका तनिक भी अफसोस केंद्र सरकार को नहीं है। मरने वालों में सभी गरीब थे, लेकिन उनके परिजनों को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को मिली जीत में नोटबंदी के फैसले पर जनता की मुहर जैसी कोई बात नहीं है। यह एक जाति को दूसरी जातियों से लड़ाकर, मजहबी नफरत फैलाकर और संवेदनशील मुद्दे को धुव्रीकरण की शक्ल देकर जीता गया चुनाव है।

केंद्र सरकार नया पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने पर विचार कर रही है, इसे आप किस रूप में देखते हैं?
भाजपा और आरएसएस शुरू से ही आरक्षण विरोधी रहे हैं। इन्हें जब भी मौका मिलता है आरक्षण के खिलाफ बात करते हैं। नया पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की सोच उनकी इसी मानसिकता का परिचायक है। बाबा साहब आंबेडकर के संविधान पर आरएसएस और भाजपा को भरोसा नहीं है। इसलिए समय-समय पर संघ और बीजेपी की तरफ से आरक्षण विरोधी बातें कही जाती हैं। आरक्षण वंचितों का संवैधानिक अधिकार है और कोई ताकत इसे नहीं छीन सकती। खासकर हम समाजवादी लोग तो भाजपा के इस मंसूबे को हरगिज सफल नहीं होने देंगे। देश में कई जरूरी मुद्दे हैं जिन पर केंद्र सरकार का कोई ध्यान नहीं है, लेकिन आरक्षण पर अनाप-शनाप बयान देकर लोगों को भ्रमित करने लिए उसके पास फुर्सत है। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन साल हो गए, लेकिन इस अवधि में उन्होंने देश की जनता के लिए क्या किया? अपने तीन वर्षों का हिसाब-किताब दें जनता के सामने। अगर वह यह समझकर खुश हैं कि देश की जनता सब कुछ भूल जाती है, इसलिए वह लोगों को भटका रहे हैं तो बड़ी गलती कर रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे आखिर क्या वजह देखते हैं आप, जबकि चुनाव से पहले उनके नाम की कोई चर्चा नहीं थी?
भाजपा और आरएसएस राष्ट्रवाद के नाम पर देश में नफरत फैलाना चाहते हैं। इनकी मंशा है भाजपा को हिंदू राष्ट्र बनाने की। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला आरएसएस-भाजपा के उसी एजेंडे का हिस्सा है। उनका यह सपना कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि यह देश उन्ही का नहीं है। यह देश उन बहुसंख्यक लोगों का है, जो दशकों पुराने आपसी भाईचारे की विरासत को संभाले हुए हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कौन बनेगा- इसे जानबूझकर गोपनीय रखा गया, जबकि भाजपा और आरएसएस ने पहले ही मन बना लिया था। मीडिया में जानबूझकर मुख्यमंत्री पद के कई दावेदारों के नाम उछाले गए। प्रधानमंत्री मोदी तीन वर्षों से देश की जनता को झांसा दे रहे हैं। शब्दों के जाल में लोगों को उलझाकर गुमराह कर रहे हैं। दो साल के बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं। मोदी जानते हैं कि उस वक्त जनता को बताने के लिए उनके पास कुछ खास नहीं होगा, तब योगी आदित्यनाथ और हिंदुत्व ही उनका सहारा बनेंगे। ऐसा उनका मानना है। लेकिन जनता अब उनकी गफलत में नहीं आने वाली। उनसे पांच साल का हिसाब मांगा जाएगा कि देश में कहां और कितना विकास हुआ।

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कई अहम फैसले किए। अवैध बूचड़खानों को बंद करने व ‘एंटी रोमियो दल’ को लेकर काफी चर्चा है। उनके इस फैसले को किस नजरिये से देखते हैं?
गौरक्षा के नाम पर देश में गौरक्षकों का आतंक बढ़ता जा रहा है। राजस्थान के अलवर की घटना आपके सामने है। गाय ले जा रहे एक आदमी को गौरक्षकों ने पीट-पीट कर मार डाला। इस तरह की घटनाएं किस तरफ इशारा कर रही हैं। ऐसी घटनाएं उन राज्यों में अधिक हो रही हैं, जहां भाजपा की सरकारें हैं। पिछले साल गुजरात के ऊना में मरी गाय की खाल उतारने के नाम पर दलित युवकों को बेरहमी से पीटा गया। झारखंड में भी कुछ ऐसा ही हुआ और अब अलवर की घटना सामने आने के बाद यह साबित हो जाता है कि भाजपा के निशाने पर एक खास वर्ग और मजहब के लोग हैं। उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों को बंद करने का फैसला एक समुदाय विशेष को टारगेट करना है। रोजगार का वैकल्पिक अवसर उपलब्ध कराए बिना आनन-फानन में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं होता है। कोई भी निर्णय बिना किसी पूर्व तैयारी या अध्ययन के सही नहीं होता है। जहां तक एंटी रोमियो दल की बात है तो इसके नाम पर युवक और युवतियों को वेवजह परेशान करने की खबरें भी आ रही हैं। समाज में कुछ गलत लोग होते हैं, लेकिन चंद लोगों के नाम पर सबको परेशान करना सही नहीं है। छेड़खानी रोकने के लिए प्रयास होने चाहिए, लेकिन उससे लोगों में बेवजह का खौफ पैदा हो यह उचित नहीं है।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अगर राम जन्मभूमि का विवाद दोनों पक्षकार आपसी बातचीत से सुलझाएं तो बेहतर होगा? आपका क्या मत है?
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक आस्था का विषय है। मैं भी उनकी बात से सहमत हूं। अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति से इसका हल निकाल सकते हैं तो लोगों में एक अच्छा संदेश जाएगा। इससे दोनों समुदायों में आपसी भाईचारा भी बढ़ेगा। इसलिए हम आशा करते हैं कि बातचीत से कोई रास्ता निकले। वरना सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वह सभी को मान्य होगा। अयोध्या विवाद को भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए भुनाया। अब सुब्रमण्यम स्वामी की ही बात करें। उनका कहना है कि मुसलमानों को राम जन्मभूमि पर से अपना दावा छोड़ देना चाहिए और सरयू के पास मस्जिद बना लेनी चाहिए। सुब्रमण्यम स्वामी कौन होते हैं इस मामले पर बोलने वाले। वह तो इस मुकदमे में पक्षकार भी नहीं हैं। स्वामी जैसे लोगों की वजह से ही इस मामले में बातचीत की राह नहीं बन पाई है।

मुख्यमंत्री योगी ने अपने हालिया इंटरव्यू में हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना जैसी बातें कहीं। उनके इस बयान के क्या मतलब हो सकते हैं?
योगी आदित्यनाथ और क्या बोलेंगे। इसके सिवा उनकी और क्या पहचान है? मैंने उन्हें संसद में देखा और सुना है। दरअसल भाजपा और आरएसएस को खून का चस्का लग गया है। उनके नेताओं के द्वारा हमेशा ऐसी बात कही जाती है, जिससे समाज में भय और नफरत का वातावरण बने। इन्होंने आज तक भगवान राम के नाम का इस्तेमाल किया है और कल ये अपने राजनीतिक फायदे के लिए कृष्ण को भुनाएंगे। आस्था के परम प्रतीक राम और कृष्ण का इन्होंने राजनीतिकरण कर दिया है। राम और कृष्ण सबके हैं, लेकिन भाजपा और आरएसएस उन्हें अपनी बपौती समझते हैं। नब्बे के दशक में केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। उस समय लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथयात्रा निकाली। मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने बिहार में उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया। देशहित के लिए मैंने कभी सत्ता हित की परवाह नहीं की। मुझे पता था कि आडवाणी की गिरफ्तारी से बिहार में मेरी सरकार को खतरा हो सकता है, लेकिन मुझे सरकार से अधिक देश की चिंता थी। मैंने सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया है और उसे ताउम्र निभाऊंगा।

प्रधानमंत्री मोदी तीन तलाक की परंपरा को खत्म करने की बातें अपनी चुनावी रैलियों में करते रहे हैं। तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम औरतों का झुकाव भाजपा की तरफ देखा गया। क्या यूपी की जीत के बाद केंद्र सरकार इस मुद्दे पर और मुखर होगी?
तीन तलाक का मुद्दा मुसलमानों का आंतरिक मामला है। उनका अपना पर्सनल लॉ बोर्ड है। उसमें भाजपा को दखल देने का कोई हक नहीं है। जब यह मुद्दा अदालत में लंबित है तो इस पर किसी को कुछ नहीं बोलना चाहिए। कोर्ट का जो फैसला होगा उसे अंतत: मानना होगा। लेकिन भाजपा जानबूझ कर उन विवादित मुद्दों को तूल देती है, जिससे दो समुदायों में शक पैदा हो। प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश चुनाव के समय तीन तलाक के मुद्दे को भुनाने का प्रयास किया। भाजपा के नेता हमेशा मुसलमानों के खिलाफ गलतबयानी करते हैं। कभी तलाक के मुद्दे पर, कभी राम मंदिर के मुद्दे पर तो कभी जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे पर।