हाजी अली दरगाह के अंदरूनी हिस्से तक महिलाओं को जाने की इजाज़त मिल गई है। बॉम्बे हाइकोर्ट ने 2012 से महिलाओं के जाने पर लगी पाबंदी को असंवैधानिक बताते हुए हटा लिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से दरगाह जाने वाली महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है।

तृप्ति देसाई और भूमाता ब्रिगेड की कार्यकर्ता ने गुलाल के साथ हाई कोर्ट के फैसले का जश्न मनाया। यचिकाकर्ता के वकील राजू मोरे ने कहा कि कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाजी अली में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दे दी है। मुस्लिम महिला आंदोलन का जो कहना था उसको मानते हुए कोर्ट ने पाबंदी को हटा दिया है।

2011 तक महिलाओं के प्रवेश पर यहां कोई पांबदी नहीं थी। लेकिन 2012 में दरगाह मैनेजमेंट मे यह कहते हुए महिलाओं की एंट्री पर रोक लगा दी थी कि शरिया कानून के मुताबिक, महिलाओं का कब्रों पर जाना गैर-इस्लामी है। ट्रस्ट इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहता है, इसलिए आज का फैसला छह हफ्ते तक निलंबित रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं किए जाने पर यह इस अवधि के बाद लागू हो जाएगा।

हाजी अली की दरगाह मुंबई के वरली तट के पास टापू पर स्थित एक मस्जिद है, जिसमें दरगाह भी है। इसका निर्माण सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में 1431 में बनाया गया था। यह दरगाह मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार, हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे थे।

यह दरगाह मुख्य सड़क से लगभग 400 मीटर की दूरी पर एक छोटे से टापू पर बनी है, जो समुद्र से घिरी हुई है और लगभग 4500 वर्ग फीट में फैली हुई है. यहां तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है। दरगाह तक केवल निम्न ज्वार के समय ही पहुंचा जा सकता है, क्योंकि पुल की ऊंचाई काफी कम है।