अजय विद्युत

कुमार विश्वास पर भाजपा एजेंट होने का आरोप लगाने पर आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित विधायक अमानुल्ला खान की पार्टी में बहाली से ही साफ हो गया था कि विश्वास अब अरविंद केजरीवाल के कितने विश्वसनीय रह गए हैं। नवंबर के पहले सप्ताह में पार्टी राष्ट्रीय परिषद में कुमार विश्वास के शामिल होने पर ही सस्पेंस था। लेकिन वह आए और राजस्थान प्रभारी के रूप में भाषण भी दिया। उससे लगा कि संबंधों में कुछ मरम्मत हो गई है। लेकिन एक मीडिया कंपनी के कार्यक्रम में यह कविता पढ़कर कुमार विश्वास ने जता दिया कि उन्हें दबाव में भाषण देना पड़ा-

वे बोले दरबार सजाओ, वे बोले जयकार लगाओ/ वे बोले हम जितना बोलें, तुम केवल उतना दोहराओ।

ओपिनियन पोस्ट के साथ बातचीत में ‘हिंदुस्तानदैनिक के प्रधान संपादक शशि शेखर ने इस प्रकरण पर कहा, ‘अगर कुमार को यहां पार्टी इस समय अलग करती है तो उन्हें अपना अगला कदम चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त होगी। तब इन पर कोई आरोप नहीं लगा सकेगा कि ये अमुक पार्टी से मिले हुए थे।’

अरविंद केजरीवाल का नाम लिए बिना कुमार विश्वास ने कविता में जताया कि बात कितनी दूर निकल चुकी है-

पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तोलो/ ये संबंधों की तुरपाई है षडयंत्रों से मत तोलो/ मेरे लहजे की छेनी से गढ़े कुछ देवता जो तब/ मेरे लफ्जों पे मरते थे वे अब कहते हैं मत बोलो।

शशि शेखर से ओपिनियन पोस्ट की बातचीत के प्रमुख अंश :

अपने दिल का गुबार निकालने के लिए कुमार विश्वास ने यही मंच क्यों चुना?

उन्होंने इसे इसलिए चुना क्योंकि यह एक मीडिया कंपनी का फंक्शन था। उसका लाइव टेलीकास्ट होता है तो उसका उनको हाथोंहाथ लाभ मिलना था। इन चीजों को खूब समझते हैं कुमार विश्वास।

कुमार विश्वास क्या जताना चाहते हैं। क्योंकि मन इतना ही ऊब गया था तो वह खुद ी पार्टी से अलग हो सकते थे।

कोई भी आदमी खुद पार्टी से अलग तब होता है जब वह एक व्यापक आधार बना चुका हो। अगर ये यहां पार्टी से इस समय अलग होते हैं तो उन्हें अपना अगला कदम चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त होगी। तब इन पर कोई आरोप नहीं लगा सकेगा कि ये अमुक पार्टी से मिले हुए थे या इनकी विचारधारा किसी अन्य दल से मिलती थी। तब ये पार्टी से निकाले गए होंगे और तब ये स्वतंत्र हो जाएंगे।

तो ये चाहते हैं कि पार्टी खुद उन्हें अलग करे और वह शहीद कहलाएं।

मैं ‘शहीद’ शब्द नहीं बोलूंगा वह इसलिए कि उसका यहां कोई मतलब ही नहीं है। यह जरूरी नहीं है कि वह अलग हो ही जाएं पार्टी से। यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है।  इसलिए कि ऐसी बातें यह पहले भी कहते रहे हैं और उसके बाद एक समझौता हो जाता था इन लोगों के बीच में। तो हो सकता है कि वह इशारों ही इशारों में जो बोल रहे हैं उसका बाहर कोई कुछ भी मतलब लगाए। वह पार्टी के फाउंडर मेम्बर हैं। तब तक हमें उस पर कोई कयास नहीं लगाना चाहिए कि वह यहां रहेंगे या कहां रहेंगे जब तक कि कोई बात सामने नहीं आ जाती।

आम आदमी पार्टी के रुख से ऐसा नहीं लगता कि उसके लिए कुमार विश्वास की उपयोगिता लगग समाप्त हो चुकी है?

जिस पार्टी में वह हैं यह फैसला तो उनको लेना है कि वे उनकी कितनी उपयोगिता समझते हैं। लेकिन अगर उनको ‘ये सब’ बोलना पड़ रहा है तो एक बात तो कहीं न कहीं बिल्कुल स्पष्ट है कि असंतोष इनके मन में है।

एक बार तो कुमार विश्वास के असंतुष्ट होने पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया उनको मनाने उनके घर तक चले आए थे। अब ऐसा नहीं लगता?

आम आदमी पार्टी का अपना एक सिस्टम है। अरविंद केजरीवाल उसमें नंबर वन लीडर हैं और उनके साथी और सहयोगी हैं मनीष सिसौदिया। बाकी लोग सहायक भूमिका में हैं। उन दोनों की जोड़ी को अपने पर पूरा विश्वास है कि वे अपने शो को रन कर लेंगे। मुझे नहीं लगता कि अब ये स्थिति बची है कि कोई किसी को मनाने जाए किसी के घर पर।

आग है अभी मुझमें जिंदा…

फिर चलें उस कार्यक्रम में जहां ‘सुनो, आग है अभी मुझमें जिंदा’ कहकर कविता पढ़ते कुमार विश्वास बता रहे थे कि ‘वे बोले’ में वे सभी लोग शामिल हैं जो हिंदुस्तान की राजधानियों में बैठे हैं… यानी सीधा इशारा दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल पर-

वे बोले जो मार्ग चुना था, ठीक नहीं था बदल रहे हैं/ मुक्तिबाह्य संकल्प गुना था, ठीक नहीं था बदल रहे हैं/ हम से जो जयघोष सुना था, ठीक नहीं था बदल रहे हैं/ हम सब ने जो ख्वाब बुना था, ठीक नहीं था बदल रहे हैं/ इतने बदलावों में मौलिक क्या कहते, हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते।

हमने कहा अभी मत बदलो दुनिया की आशाएं हम हैं/ वे बोले अब तो सत्ता की वरदायी भाषाएं हम हैं/ हमने कहा व्यर्थ मत बोलो गूंगों की भाषाएं हम हैं/ वे बोले बस शोर मचाओ इसी शोर से आये हम हैं/ इतने मतभेदों में मन की क्या कहते, हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते।

सबको इंतजार है कुमार विश्वास के अगले कदम का।