11.2 लाख किलोमीटर का विस्तृत भूभाग है जिसे सिंधु नदी का क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र का 47 % भाग पाकिस्तान के पास , 39 % भाग भारत के पास , 8 % भाग चीन के पास और 6 % भाग अफगानिस्तान के पास है।  माना जाता है कि करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आस पास के क्षेत्रों में जीवन यापन करतें हैं।

1960 में नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच करार किया गया था जिसे सिंधु जल समझौता किया गया। इस संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और आयूब खान ने साइन किए थे।

संधि के मुताबिक सतलुज, ब्यास, रावी, सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के पानी का बंटवारा किया गया था। इन नदियों में सिंधु, झेलम और चेनाब के बहाव पर भारत का नियंत्रण सीमित है।

पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। इस पानी से पाकिस्तान में कई प्रोजेक्ट काम कर रहे हैं। सिंधु के पानी से ही पाकिस्तान के बहुत बड़े कृषि भू-भाग की सिंचाई होती है।

पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं। पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है। अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे।

मगर यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है। अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी देश इस संधि को चाहे वह भारत ही क्यों ना हो खत्म नहीं कर सकता।