विवाद कावेरी नदी के पानी को लेकर है जिसका उद्गम स्थल कर्नाटक के कोडागु जिले में है। लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल है। कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही राज्यों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों के उनके बीच लड़ाई जारी है।

पानी के बंटरवारे का विवाद मुख्य रूप तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच है लेकिन चूंकि कावेरी बेसिन में केरल और पुद्दुचेरी के कुछ छोटे-छोटे से इलाके शामिल हैं तो इस विवाद में वो भी कूद गए हैं।

1892 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था। लेकिन जल्द ही समझौता विवादों में घिर गया। इसके बाद 1924 में भी विवाद के निपटारे की कोशिश की गई लेकिन बुनियादी मतभेद बने रहे।

जून 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी ट्राइब्यूनल बनाया, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद 2007 में फैसला दिया कि प्रति वर्ष 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए जबकि 270 अरब क्यूबिक फीट पानी कर्नाटक के हिस्से आए। कावेरी बेसिन में 740 अरब क्यूबिक फीट पानी मानते हुए ट्राइब्यूनल ने ये फैसला दिया। केरल को 30 अरब क्यूबिक फीट और पुद्दुचेरी को 7 अरब क्यूबिक फीट पानी देने का फैसला दिया गया।

जल बंटवारे को लेकर साल 2007 में कावेरी वॉटर डिसप्यूट ट्रायब्यूनल (सीडब्लूडीटी) के फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी।

5 सितंबर 2016 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद प्रदेशों के बीच खटपट तब बढ़ गई जब अदालत ने कर्नाटक को निर्देश दिया कि वह लगातार 10 दिन तक तमिलनाडु को 15 हजार क्यूसेक पानी सप्लाई करें। मामले के सियासी परिणामों को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने कावेरी ट्रायब्यूनल के आदेश में रद्दोबदल के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए तमिलनाडु को 20 सितंबर तक हर दिन 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश पारित किया। लेकिन कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने से मना कर दिया। इसके लिए उसने अपनी जरूरतों और पानी की किल्लत का हवाला दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्तूबर 2016 को अपने अगले आदेश तक कर्नाटक सरकार से तमिलनाडु के लिए हर दिन 2 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया।

9 जनवरी 2017 को तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और कहा कि कर्नाटक सरकार ने उसे पानी नहीं दिया इसलिए उसे 2480 करोड़ रुपए का हर्जाना मिलना चाहिए।

20 सितंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रखा।

16 फरवरी, 2018 को कोर्ट ने फैसला सुनाया कि नदी पर किसी का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने राज्यों को लिए पानी का फिर से बंटवारा कर दिया है और कहा कि अब इस फैसले को लागू करना केंद्र का काम है।