खुद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया जाना पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को खासा नागवार गुजर रहा है. वह राज्य की राजनीति में अपना दखल किसी भी कीमत पर छोडऩे को तैयार नहीं हैं. उन्हें लगता है कि दिल्ली बुलाकर उनके साथ कोई साजिश रची जा रही है.
सुंधरा राजे ने यह कहकर भाजपा नेतृत्व की मुश्किलें फिर बढ़ा दी हैं कि पार्टी उपाध्यक्ष पद का दायित्व तो मैं निष्ठापूर्वक निर्वाह करूंगी, लेकिन राजस्थान नहीं छोड़ूंगी. उन्होंने बहुचर्चित मायड़ भाषी कहावत में अपनी मंशा पिरोते हुए दो टूक कहा, मेरी डोली राजस्थान में आई थी और अर्थी भी यहां से ही जाएगी. वसुंधरा राजे को पार्टी संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि राजस्थान की राजनीति में उनका दखल कम हो जाएगा, लेकिन 20 जनवरी को झालरापाटन में दिए गए उनके बयान ने ‘उडि़ जहाज का पंछी, उडि़ जहाज पर आवे’ वाली उक्ति चरितार्थ करते हुए सवालों का गुबार छोड़ दिया है. गौरतलब है कि बीती तीन जनवरी को दिल्ली में भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में तय किया गया था कि राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष का पद वसुंधरा राजे को नहीं दिया जाएगा. इस फैसले में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का मुद्दा भी शामिल था. बोर्ड की बैठक में तय हुआ था कि पार्टी के किसी भी नेता को लंबे समय तक एक ही पद पर न रहने दिया जाए, ताकि राज्यों में नया नेतृत्व पैदा हो सके. साथ ही पार्टी के बीच संदेश भी जाए कि भाजपा में हर नेता का महत्व है. बदलाव के बड़े मौके पर यथास्थितिवाद पर लौट आना भाजपा नेतृत्व के लिए राजे के आगे घुटने टेकना जैसा हो सकता था. नतीजतन, लाख प्रतिरोध के बावजूद वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने दिया गया. फंसी हुई राजे ने अपने खास ‘लायलिस्ट’ राजेंद्र सिंह राठौड़ का नाम आगे किया, लेकिन तब तक संघ एक नई राजनीति गढ़ चुका था. वसुंधरा राजे की असहमतियों के बावजूद एक दूरदर्शी फैसले के तहत गुलाब चंद कटारिया को यह पद सौंप दिया गया. जिस वक्त नेता प्रतिपक्ष पद पर कटारिया की ताजपोशी हो रही थी, वसुंधरा के चेहरे पर खीझ के भाव साफ नजर आ रहे थे.
राज्य में समग्र बदलाव का खाका खींचने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने राजे को विकल्प भी दिया कि आम चुनाव जीतने के बाद उनके बेटे दुष्यंत को किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया जाए, ताकि राज्य की सियासत में युवा सक्रिय भूमिका निभा सकें. लेकिन, राजे ने केंद्रीय नेतृत्व के दावे पर खेलने से साफ इंकार कर दिया. राजे लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए इसलिए भी तैयार नहीं हैं कि इससे उनके बेटे दुष्यंत की उम्मीदवारी खतरे में पड़ जाएगी, जो वर्तमान में झालावाड़ से सांसद हैं. राजे के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि वह इस व्यवस्था के पीछे छिपा संदेश पढ़ चुकी थी. उन्होंने इस बात को भी समझ लिया था कि उन्हें सियासत की किस धुरी पर स्थापित किया जाएगा? सूत्र कहते हैं कि राजे ने इस मुद्दे पर भी नाराजगी भरी चुप्पी साध रखी है कि उन्हें पार्टी संगठन में उपाध्यक्ष का ओहदा तो बख्श दिया गया, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए बनाई गई 17 समितियों में से उन्हें एक में भी जगह नहीं दी गई. जबकि इन समितियों में केंद्रीय मंत्रियों, संगठन के पदाधिकारियों और हिंदीभाषी राज्यों के नेताओं को प्रमुखता से जगह दी गई है. राजे के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि उन्हें यह कहकर उपाध्यक्ष बनाया गया था कि उन जैसी जनाधार वाली और सक्रिय नेता के दिल्ली जाने से पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिल सकती है. उनकी तेज-तर्रार नेता की छवि और अनुभव का फायदा पार्टी को आम चुनाव में राजस्थान समेत अन्य राज्यों में मिल सकता है, तो फिर समितियों से दूरी क्यों?
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजे के बदलते तेवर देख तो पा रहा है, लेकिन उनके पैंतरों को पकड़ नहीं पा रहा है. वैसे भी राजे केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों को अनसुना करती रही हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान भी टिकट बंटवारे में उन्हीं की चली. अब जिस दम-खम के साथ राजे कांग्रेस पर हमलावर होते हुए बरसती हैं कि लोकसभा चुनाव में सारा हिसाब-किताब चुकता कर लेंगे. तो यकीन होने लगता है कि आम चुनाव में भी टिकट बंटवारे में वह सबसे बड़ा उलटफेर कर सकती है. राजे इस बात से भी खफा हैं कि लोकसभा चुनाव में जुटी पार्टी के सभी मोर्चों की संयुक्त कार्यशाला में लगे बैनर-पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, दीन दयाल उपाध्याय और सुंदर सिंह भंडारी के ही फोटो क्यों थे. कार्यशाला जब जयपुर में आयोजित हुई, तो राज्य की कद्दावर नेता होने के नाते उन्हें भी पोस्टरों में जगह मिलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जबकि वसुंधरा राजे को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राजस्थान के पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में रखा गया है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे पार्टी का जाना-पहचाना चेहरा हैं. इस चुनावी माहौल में अगर उनकी हैसियत कम करने वाला कोई कदम उठाया गया, तो जनता में गलत संदेश जाएगा.
भाजपा नेतृत्व के पास वसुंधरा राजे की सामंती शैली की सियासत के खट्टे तजुर्बों का इतना अंबार है, जो उनके प्रति भरोसे की जड़ें जमने ही नहीं देता. हालिया कोटा यात्रा के दौरान ताजा-ताजा कांग्रेस से भाजपा में आए कोटा राज परिवार के इज्यराज सिंह से राजे की मुलाकातों ने एक नई बहस छेड़ दी है कि कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी के लिए उनका रुझान पूरी तरह इज्यराज सिंह की तरफ है. जबकि सांसद ओम बिरला जीत का सिक्के बंद चेहरा हैं. उन्हें मोदी और शाह, दोनों की पसंद माना जाता है. ऐसे में इज्यराज सिंह से राजे की जुगलबंदी सांसद की उम्मीदवारी के मसले पर भाजपा नेतृत्व के लिए कितनी उलझनें खड़ी कर सकती है, कहने की जरूरत नहीं. ऐसे कम से कम दस चेहरे हैं, जिन्हें लेकर राजे टिकट के मामले में दुराग्रह की दहलीज पर बैठक सकती हैं. उधर आम चुनाव के लिए राजस्थान की अलवर, भरतपुर, नागौर, बाड़मेर और बांसवाड़ा आदि पांच सीटों पर तीसरे मोर्चे का पेंच फंसा हुआ है, जो अब निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल की रहनुमाई में अस्तित्व में आ चुका है. विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की बेरुखी के चलते यह मोर्चा जिस तरह दम-खम दिखा रहा है, दोनों ही दलों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वसुंधरा राजे में ही इसे भाजपा में लाने की कुव्वत है. राजे की राह में रोड़े अटका कर तो भाजपा इन पांच कद्दावर सीटों को गंवा सकती है. उधर जोधपुर के खांटी नेता चंद्रराज सिंघवी की कांग्रेस महासचिव अहमद पटेल के साथ लंबी मंत्रणाओं ने भी भाजपा नेतृत्व में बेचैनी पैदा कर दी है. सिंघवी ने विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर कांग्रेस की मदद की थी, जहां लगता था कि कांग्रेस हार सकती है. समझा जाता है कि सिंघवी राजस्थान के संबंध में लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की जानकारियां और प्रतिक्रियाएं उपलब्ध कराने में कांग्रेस की मदद करेंगेे तथा पटेल के सहयोगी के रूप में कार्य करेंगे. लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ असहज रहे रिश्तों को लेकर मदद का यह मांझा उलझा हुआ है. सिंघवी कभी वसुंधरा राजे के संकट मोचक हुआ करते थे, लेकिन संघ की नाराजगी ने उन्हें किनारे कर दिया था. भाजपा नेतृत्व नहीं चाहता कि सिंघवी कांग्रेस के खेमे में जाएं, लेकिन इस पहेली का तोड़ तो वसुंधरा के पास है. और, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह किसी भी मसले पर वसुंधरा को हावी होने का कोई मौका देने से रहे.