दुर्भाग्य से हमें कानून तोड़ने में मजा आता है…

अमीश 

ओपिनियन पोस्ट के पाठकों के साथ इस क्रम की यह तीसरी मुलाकात है। इस मार्च महीने की शुरुआत होली से हो रही है। होली होलिका दहन से जुड़ा पर्व है। भक्त प्रह्लाद की भक्ति का पर्व है। मूल रूप से यह उसी का सेलिब्रेशन है। होली के पहले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन उत्सव मनाते हैं। ये जो उत्सव हम मनाते हैं वे एक तरह से समाज को जोड़ने के लिए बनाए गए हैं। बेहतर होगा कि हम इन उत्सवों को उनकी मूल भावना के अनुरूप समाज को ज्यादा से ज्यादा जोड़ने के भाव से मनाएं। हां, अगर आप यह पूछेंगे कि मैं होली को किस रूप में मनाता हूं तो मैं सिर्फ पूजा करता हूं। मैं रंगों के साथ लोगों से होली नहीं खेलता क्योंकि मुझे वह अच्छा नहीं लगता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं रंगों की होली के विरोध में हूं। यह अच्छी बात है कि लोग रंगों से होली खेलते हैं। हालांकि मैं यह मानता हूं कि होली खेलते समय मर्यादा रहनी चाहिए। होली का यह मतलब नहीं कि आप दूसरे से छेड़छाड़ करें, कुछ गलत काम करें क्योंकि यह तो फिर इस पर्व के दुरुपयोग होगा। …और फिर होली का मुख्य मकसद ही यह है कि आप सबके साथ होली खेलें। कोई छोटा बड़ा नहीं होता इस दिन। लेकिन होता यह जा रहा है कि ये त्योहार भी अपने अपने वर्गांे व मित्रों/परिवारों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। लोग दूसरे वर्गांे के लोगों के साथ प्राय: नहीं खेलते। यह अच्छी बात नहीं है। परंपरा यही रही है कि आप दूसरे वर्गांे के साथ भी होली खेलें। अगर आप अपने ही वर्ग के साथ होली खेलते रहेंगे तो समाज को जोड़ने का जो मूल भाव इस पर्व से जुड़ा है उसकी तो पूर्ति होगी नहीं।

एक और महत्वपूर्ण पर्व इस महीने पड़ रहा है। मार्च के अंतिम सप्ताह में रामनवमी है। भगवान राम के जन्म का पर्व। भगवान राम से युवा बहुत कुछ सीख सकते हैं और मैं अपनी किताबों के द्वारा वही करने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा मानना है कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम से जो चीजें सीख सकते हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि हमें कानून भी मानना चाहिए। हमारे भारत देश में शायद यही कठिनाई है कि लोगों को कानून तोड़ने में मजा आता है। कुछ फायदा भी नहीं हो तब भी हम लोग कानून तोड़ते रहते हैं, यह अच्छी बात नहीं है। हम मर्यादा में कैसे रहें, कानून का पालन कैसे करें, वह हम शायद प्रभु राम से सीख सकते हैं। और इससे न सिर्फ हमारा बल्कि पूरे समाज का फायदा होगा। बड़ों का आदर करना चाहिए- यह भी प्रभु श्रीराम ने हमें सिखाया। लेकिन साथ ही हमारे यहां यह परंपरा भी रही है और जैसा प्रभु श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि अगर बड़े मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं तो आपका धर्म है कि आप ऐसे बड़ों का भी विरोध करें। वे आपसे बड़े हैं और मर्यादा यानी धर्म के विरुद्ध जा रहे हैं, शांति से समझाने से कोई हल नहीं निकल रहा तो तो उनसे लड़ाई करना आपका धर्म हो जाता है। धर्म सबसे ऊपर है। और धर्म का मतलब रिलीजन नहीं है। धर्म का मतलब है जो सही है मानवता के लिए।

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