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ओपिनियन पोस्ट का यह अंक जब आप पढ़ रहे होंगे, तब लोकतंत्र का महोत्सव समाप्त हो चुका होगा. जीत का सर्टिफिकेट लेकर 543 सांसद दिल्ली की ओर रवाना हो चुके होंगे. सरकार बनाने की कवायद चल रही होगी. लेकिन इन सबके बीच, आपने शायद ही ध्यान दिया होगा, खासकर मतदान से पहले कि आप जिसे चुनने जा रहे हैं, वह कौन है? सिर्फ एक राजनीतिक दल का उम्मीदवार या आपके सुख-दु:ख का प्रतिनिधि, आपकी समस्याओं का समाधान खोजने और जनता के हितों की चिंता करने वाला नेता या फिर कुछ और? तो, अब आप जान लीजिए कि आपने जिसे चुना, असल में वह कौन है? यह कवर स्टोरी पढऩे के बाद आप अपने निर्णय (नेता चुनने) पर खुश भी हो सकते हैं, पछता भी सकते हैं या फिर शायद अगली बार के लिए सचेत भी हो सकते हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने लोकसभा चुनाव के हजारों उम्मीदवारों के शपथ पत्रों के अध्ययन से कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाए हैं. यहां हम आपके लिए चरणवार (छह चरणों तक) आंकड़ों का एक विश्लेषण पेश कर रहे हैं.

पहला चरण

बाहुबल

पहले चरण में 18 राज्यों एवं 2 केंद्र शासित प्रदेशों की 91 सीटों के लिए 1,279 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा था, जिनके शपथपत्र का विश्लेषण किया गया है. पहले चरण के लिए मैदान में उतरे उम्मीदवारों में से 213 यानी 17 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की बात स्वीकारी है. वहीं 146 यानी 12 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की बात कही है. 10 उम्मीदवारों पर हत्या के मामले दर्ज हैं और 4 पर अपहरण के मुकदमे दर्ज हैं. यहां तक कि 16 उम्मीदवारों पर बलात्कार के भी मामले दर्ज हैं. कांग्रेस के 27 प्रतिशत और भाजपा के 19 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक आरोप हैं. पहले चरण में दोनों राष्ट्रीय दलों यानी भाजपा और कांग्रेस ने 83-83 उम्मीदवार मैदान में उतारे. इसके अलावा, पहले चरण में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) ने 8 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 3 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. एनसीपी के 6 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से दो के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. तृणमूल कांग्रेस के पांच उम्मीदवारों में से किसी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं हैं. बसपा ने पहले चरण में 32 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 19 प्रतिशत के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आठ उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से केवल 1 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है.

धनबल

भारत में चुनाव किस कदर धनबल के चंगुल में फंसता जा रहा है, यह पहले चरण के लिए पर्चा भरने वाले उम्मीदवारों की वित्तीय स्थिति को देखकर पता चल जाता है. मसलन, पहले चरण के करीब 1,200 उम्मीदवारों में से 401 उम्मीदवार करोड़पति हैं. कांग्रेस के 83, भाजपा के 78, बसपा के 47, टीडीपी के 100, वाईएसआर-कांग्रेस के 88 एवं टीआरएस के 100 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. चेवेल्ला संसदीय सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी की चल संपत्ति 856 करोड़ और अचल संपत्ति 38 करोड़ से ज्यादा है. जबकि इसी सीट से एन प्रेम कुमार (प्रेम जनता दल) की संपत्ति केवल 500 रुपये है. पहले चरण के कुल 1,266 उम्मीदवारों में से 225 राष्ट्रीय दलों से, 124 राज्य स्तरीय दलों से, 364 गैर मान्यता प्राप्त दलों से और 553 निर्दलीय हैं. उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति 6.63 करोड़ रुपये है. वाईएसआर-कांग्रेस के उम्मीदवार प्रसाद वीरा पोतलुरी 347 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर हैं और इसी पार्टी के रघुराम कृष्ण राजू 325 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति के साथ सबसे धनी उम्मीदवारों की सूची में तीसरे नंबर पर हैं. टीडीपी के जयदेव गाला (305 करोड़) और मलूक नागर (250 करोड़) का नंबर क्रमश: चौथा एवं पांचवां है.

दूसरी तरफ, सबसे निर्धन उम्मीदवार की सूची में दूसरे नंबर पर ओडिशा की कोरापुट सीट से सीपीआई (एमएल) रेड स्टार के उम्मीदवार राजेंद्र केंदुरका हैं, जिनकी चल संपत्ति सिर्फ 565 रुपये है, अचल संपत्ति बिल्कुल नहीं है. पहले चरण में 5 करोड़ रुपये से ज्यादा संपत्ति वाले 177, 2 करोड़ से 5 करोड़ रुपये की संपत्ति वाले 99 और 50 लाख से 2 करोड़ रुपये की संपत्ति वाले 254 उम्मीदवार हैं. उत्तराखंड की टिहरी गढ़वाल सीट से भाजपा की उम्मीदवार माला राज्यलक्ष्मी शाह पर 135 करोड़ और बिजनौर से बसपा के उम्मीदवार मलूक नागर पर 101 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. जबकि मलूक नागर 249 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ उत्तर प्रदेश में पहले चरण के तहत सबसे अमीर उम्मीदवार भी हैं. अब यह कर्ज लेकर अमीर बने हैं या कर्ज न चुकाकर, इसका जवाब तलाशना भी बहुत दिलचस्प होगा. 23 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य घोषित की है. 114 उम्मीदवारों ने तो अपना पैन विवरण भी नहीं दिया. दूसरी तरफ 70 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 1 करोड़ रुपये से अधिक बताई है, लेकिन अपना आयकर ब्योरा नहीं दिया है. सवाल है कि क्या ऐसे उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी?

शैक्षणिक स्थिति

पहले चरण के चुनाव में शामिल उम्मीदवारों में 49 प्रतिशत यानी 619 उम्मीदवार स्नातक हैं. 19 उम्मीदवारों ने खुद को साक्षर और 66 ने खुद को निरक्षर बताया है. सिर्फ 7 प्रतिशत यानी 89 महिला उम्मीदवार भी मैदान में हैं.

एडीआर की नजर में गंभीर आपराधिक मामले

  1. पांच साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध.
  2. गैर जमानती अपराध.
  3. चुनाव से संबंधित अपराध (धारा 171 या रिश्वतखोरी).
  4. सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने से संबंधित अपराध.
  5. हमला, हत्या, अपहरण एवं बलात्कार से संबंधित अपराध.
  6. लोक प्रतिनिधि अधिनियम में उल्लेखित अपराध (धारा 8).
  7. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध.
  8. महिलाओं के ऊपर अत्याचार संबंधी अपराध.

दूसरा चरण

बाहुबल

दूसरे चरण की 97 सीटों पर 1,644 उम्मीदवारों ने पर्चे भरे थे, जिनमें से 1,590 उम्मीदवारों के शपथ पत्र का विशलेषण किया गया, जिससे पता चलता है कि करीब 16 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 1,590 में से 251 उम्मीदवारों ने अपने शपथ पत्र में बताया कि उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि 11 प्रतिशत यानी 167 उम्मीदवारों ने बताया कि उन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. दूसरे चरण के चुनाव में जिन दलों के उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, उनमें कांग्रेस सबसे आगे है. भाजपा के जहां 51 उम्मीदवारों में से 16 पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, वहीं कांग्रेस के 53 उम्मीदवारों में से 23 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बसपा के 80 उम्मीदवारों में से 16, एआईएडीएमके के 22 उम्मीदवारों में से 3, डीएमके के 24 उम्मीदवारों में से 11 और शिवसेना के 11 उम्मीदवारों में से 4 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. कुल 1,590 उम्मीदवारों में से 209 उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों, 107 उम्मीदवार राज्य स्तरीय दलों एवं 386 उम्मीदवार अन्य पंजीकृत दलों के हैं और 888 उम्मीदवार निर्दलीय हैं. कई उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले भी दर्ज हैं, जिनमें भाजपा के 10, कांग्रेस के 17, बसपा के 10, एआईएडीएमके के 3, डीएमके के 7 और शिवसेना के 1 उम्मीदवार का नाम शामिल है. इन सबने अपने शपथ पत्र में खुद पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज होने की बात स्वीकारी है. गंभीर आपराधिक मामले के संदर्भ में बात की जाए, तो भाजपा के 51 में से 10 (20 प्रतिशत), कांग्रेस के 53 में से 17 (32 प्रतिशत), बसपा के 80 में से 10 (13 प्रतिशत), एआईएडीएमके के 22 में से 3 (14 प्रतिशत), डीएमके के 24 में से 7 (29 प्रतिशत) उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. गौरतलब है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गैर जमानती अपराध, हमला, हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि अपराध आते हैं. गौरतलब है कि 3 उम्मीदवारों ने खुद पर दोषसिद्ध हुए मामले भी घोषित किए हैं. यानी उन पर दोष सिद्ध हो चुका है. हत्या से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या 6 है. वहीं हत्या के प्रयास से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या 25 है, जबकि अपहरण से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या 8 है. और तो और, महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवार भी इस सूची में हैं, जिनकी संख्या 10 है, जिन्होंने बताया कि उन पर महिलाओं से बलात्कार, स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से हमला या आपराधिक बल प्रयोग करने से संबंधित मामले दर्ज हैं.

धनबल

दूसरे चरण के सबसे अमीर उम्मीदवार कांग्रेस के एच वसंता कुमार हैं, जिनकी संपत्ति 417 करोड़ रुपये है. वसंता कुमार तमिलनाडु की कन्याकुमारी सीट से लड़ रहे हैं. दूसरे स्थान पर कांग्रेस के ही उम्मीदवार उदय सिंह हैं, जो बिहार की पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने अपनी 341 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है. दिलचस्प रूप से सबसे अमीर उम्मीदवार की सूची में तीसरे स्थान पर भी कांग्रेस के उम्मीदवार का ही नाम है, डीके सुरेश, जो कर्नाटक की बेंगलुरु ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने अपनी 338 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है. दूसरे चरण के 27 प्रतिशत यानी 423 उम्मीदवारों की संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. कांग्रेस के 53 में से 46 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की घोषित की है. जबकि भाजपा के 51 में 45 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई है. डीएमके के 24 में से 23, एआईएडीएमके के सभी 22 और बसपा के 80 में से 21 उम्मीदवारों की संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. कुल मिलाकर यह कि दूसरे चरण के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति करीब 3 करोड़ 90 लाख रुपये है.

शैक्षणिक स्थिति

कुल 697 यानी 44 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता 5वीं से 12वीं के बीच घोषित की है. 756 यानी 48 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता स्नातक या इससे अधिक घोषित की है. 35 ने अपनी शैक्षणिक योग्यता साक्षर और 26 ने निरक्षर बताई है. इस चरण में सिर्फ 8 प्रतिशत महिलाएं ही चुनाव मैदान में थीं.

क्या है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स

सोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) की स्थापना 1999 में भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के प्रोफेसरों के एक समूह द्वारा की गई थी. 1999 में इन लोगों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों की आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि का खुलासा करने का अनुरोध किया गया था. इसके आधार पर, 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लडऩे वाले सभी उम्मीदवारों के लिए चुनाव आयोग के पास एक हलफनामा दायर कर अपने आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया.

गुजरात विधानसभा चुनाव 2002 में एडीआर ने पहली बार इलेक्शन वाच का काम किया था. इसके तहत, चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि का विस्तृत विश्लेषण किया गया था ताकि चुनाव के दौरान मतदाता ये जान सकें कि उनके उम्मीदवारों की असलियत क्या है. इसका मकसद यह था कि ऐसी जानकारी के सार्वजनिक होने से मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चुनने में मदद मिलेगी. तब से एडीआर ने नेशनल इलेक्शन वॉच के सहयोग से लगभग सभी राज्य विधान सभा और लोकसभा चुनावों के लिए इलेक्शन वॉच का संचालन किया. एडीआर देश की राजनीतिक और चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से कई परियोजनाओं का संचालन करता है.

एडीआर का लक्ष्य चुनावी और राजनीतिक सुधार के क्षेत्र में निरंतर काम करके शासन में सुधार लाना और लोकतंत्र को मजबूत करना है. इस क्षेत्र में काम करने का दायरा बहुत बड़ा है. इसलिए, एडीआर देश की राजनीतिक प्रणाली से संबंधित कई क्षेत्रों में अपने प्रयासों को केंद्रित कर रहा है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स राजनीतिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण कम करने, बेहतर और पारदर्शी विकल्प के लिए उम्मीदवारों और पार्टियों से संबंधित सूचनाओं के अधिक प्रसार के माध्यम से मतदाताओं का सशक्तीकरण करने, राजनीतिक दलों की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने, आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और पार्टी-कामकाज में पारदर्शिता लाने आदि के क्षेत्र में काम कर रहा है.

तीसरा चरण

बाहुबल

तीसरे चरण में कुल 115 सीटों के लिए 1,612 उम्मीदवारों ने पर्चे भरे थे. तीसरे चरण में 21 प्रतिशत दागी, 25 प्रतिशत करोड़पति उम्मीदवार मैदान में थे. दिलचस्प तथ्य यह कि बीजापुर के एक उम्मीदवार ने अपनी संपत्ति सिर्फ 9 रुपये बताई, जबकि वायनाड में राहुल गांधी के प्रतिद्वंद्वी श्रीजीत ने अपनी कुल संपत्ति सिर्फ 120 रुपये बताई. तीसरे चरण में 23 अप्रैल को 15 राज्यों की 11५ लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ था. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने कुल 1,612 में से 1,594 उम्मीदवारों के शपथपत्र का विश्लेषण किया. उसके मुताबिक, 340 यानी 21 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ कम से कम एक आपराधिक मुकदमा दर्ज है. जबकि 230 यानी 14 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं. 29 उम्मीदवारों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें बलात्कार, यौन उत्पीडऩ एवं महिलाओं के प्रति कू्ररता जैसे आरोप शामिल हैं. 14 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने यह घोषित किया कि वे आपराधिक मामलों में दोषी सिद्ध हो चुके हैं. 13 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चल रहा है, जबकि 30 पर हत्या के प्रयास का आरोप है. 14 उम्मीदवार फिरौती के लिए अपहरण करने के आरोपी हैं और 26 के खिलाफ नफरत फैलाने वाले बयान देने का मामला दर्ज है. इन 115 में से 63 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां तीन या उससे ज्यादा दागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

धनबल

तीसरे चरण के चुनाव में 25 प्रतिशत यानी 392 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. इनमें कांग्रेस के 90 उम्मीदवारों में से 74 यानी 82 प्रतिशत, भाजपा के 97 में से 81 यानी 84 प्रतिशत, सपा के 10 में से 9, बसपा के 12 और शिवसेना के 7 उम्मीदवारों की संपत्ति 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. इस चरण में उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.95 करोड़ रुपये है. इस चरण के सबसे अमीर उम्मीदवार हैं, सपा के देवेंद्र सिंह यादव, जो एटा सीट पर मैदान में थे और जिनकी संपत्ति 204 करोड़ रुपये है. दूसरे नंबर पर हैं, सतारा से एनसीपी उम्मीदवार भोंसले श्रीमंत छत्रपति प्रतापसिंह महाराज, जिनकी संपत्ति 199 करोड़ रुपये है, जबकि तीसरे नंबर पर बरेली से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रवीण सिंह हैं, जिनकी संपत्ति 147 करोड़ रुपये है. तीसरे चरण में 11 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्होंने शपथपत्र में अपनी संपत्ति शून्य बताई है.

शैक्षणिक स्थिति

तीसरे चरण के चुनाव में 49 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शिक्षा 5वीं से 12वीं के बीच घोषित की है. वहीं 43 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शिक्षा स्नातक या इससे अधिक बताई है. 57 उम्मीदवारों ने अपनी शैक्ष्णिक योग्यता साक्षर और 23 ने खुद को निरक्षर बताया. इस चरण में सिर्फ 9 प्रतिशत महिलाएं चुनाव मैदान में हैं.

 चौथा चरण

बाहुबल

चौथे चरण में 8 राज्यों की 71 लोकसभा सीटों के लिए कुल 943 उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें से 207 राष्ट्रीय दलों, 48 राज्य स्तरीय दलों, 330 गैर मान्यता प्राप्त दलों के हैं और 345 निर्दलीय हैं. चूंकि 15 उम्मीदवारों के शपथपत्र अस्पष्ट थे, इसलिए एडीआर ने केवल 928 उम्मीदवारों द्वारा दाखिल किए गए शपथपत्रों के आधार पर उनके वित्तीय, आपराधिक एवं अन्य विवरणों पर अपनी रिपोर्ट जारी की.

सबसे पहले आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों पर नजर डालते हैं. इस चरण में 210 (23 प्रतिशत) उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि 158 (17 प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. दिलचस्प यह है कि 12 उम्मीदवारों ने अपने शपथपत्र में कहा कि उन पर दोष साबित हो चुके हैं. 5 उम्मीदवारों ने अपने शपथपत्र में कहा कि उन पर हत्या के मामले चल रहे हैं. सांसद बनने के 24 ख्वाहिशमंद ऐसे हैं, जिन्होंने स्वीकारा कि उन पर हत्या की कोशिश के मामले दर्ज हैं, चार पर अपहरण के मामले दर्ज हैं. अगर दलगत रूप से देखें, तो इस चरण में शिवसेना के 21 उम्मीदवारों में से 12, भाजपा के 57 में से 25, कांग्रेस के 57 में से 18, बसपा के 54 में से 11 और 345 निर्दलीयों में से 60 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. भाजपा के 35, कांग्रेस के 16, बसपा के 19, शिवसेना के 43 प्रतिशत और 13 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने शपथपत्र में कहा कि उन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. 21 उम्मीदवारों ने महिलाओं पर अत्याचार संबंधित मामलों का खुलासा किया. इस चरण की 71 में से 37 सीटें ऐसी हैं, जहां तीन या उससे अधिक आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इस वजह से इन निर्वाचन क्षेत्रों को संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया.

धनबल

इस चरण के 11 प्रतिशत उम्मीदवारों की संपत्ति 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक थी, 10 प्रतिशत की संपत्ति 2 करोड़ से 5 करोड़ रुपये के बीच थी, 21 प्रतिशत की संपत्ति 50 लाख से 2 करोड़ रुपये के बीच थी, 23 प्रतिशत की संपत्ति 10 लाख से 50 लाख रुपये के बीच थी और 32 प्रतिशत की संपत्ति 10 लाख रुपये से कम थी. गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर करोड़पतियों को बड़े दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया. इस मामले में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. दरअसल, कांग्रेस ने 50, भाजपा ने 50, बसपा ने 20, शिवसेना ने 13 और सपा ने 8 करोड़पति उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि इस चरण के कुल 197 करोड़पति उम्मीदवारों में से 141 का संबंध केवल इन्हीं पांच दलों से है. चौथे चरण में उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 4.53 करोड़ रुपये रही. दलगत औसत देखा जाए, तो भाजपा के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 13.63 करोड़, कांग्रेस के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 29.03 करोड़, बसपा के उम्मीवारों की औसत संपत्ति 2.69 करोड़ और शिवसेना के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 17.85 करोड़ रुपये रही. इस चरण में तीन उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी संपत्ति 100 करोड़ रुपये से ऊपर है. छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) से कांग्रेस के उम्मीदवार नकुल नाथ की संपत्ति 660 करोड़ रुपये से ऊपर है. इसी तरह साउथ सेंट्रल मुंबई से वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार संजय सुनील भोंसले की संपत्ति 125 करोड़ रुपये है. तीसरे नंबर पर हैं, झांसी (उत्तर प्रदेश) से भाजपा के उम्मीदवार अनुराग शर्मा, जिनकी संपत्ति 124 करोड़ रुपये है. ऐसा नहीं कि इस चरण में सभी धन्ना सेठ ही चुनाव मैदान में उतरे. तीन उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य दिखाई है. 70 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपने शपथपत्र में पैन विवरण देना जरूरी नहीं समझा.

 शैक्षणिक स्थिति

जहां तक शैक्षणिक योग्यता का सवाल है, तो इस दौर के 404 यानी 44 प्रतिशत उम्मीदवार ऐसे थे, जिनकी शैक्षिक योग्यता 5वीं से 12वीं के बीच थी, जबकि 454 यानी 49 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षिक योग्यता स्नातक या अधिक घोषित की है. इस चरण में उम्मीदवारों की आयु भी काफी चर्चा में रही. पहले भी कई उम्मीदवारों की जन्मतिथि को लेकर काफी विवाद होता रहा है. इस चरण में 287 यानी 31 प्रतिशत उम्मीदवारों की आयु 25 से 40 वर्ष के बीच है यानी उन्हें सचमुच युवा कहा जा सकता है. जबकि 489 यानी 53 प्रतिशत उम्मीदवार 41 से 60 वर्ष के आयु वर्ग के हैं. 148 यानी 16 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी आयु 61 से 80 वर्ष के बीच बताई. जबकि एक उम्मीदवार ने तो अपनी उम्र 80 वर्ष के ऊपर बताई. तीन उम्मीदवारों ने अपनी आयु घोषित नहीं की. पिछले दो दशकों से संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की बात कही जा रही है, लेकिन इस चरण में केवल 96 यानी 10 प्रतिशत महिलाएं मैदान में हैं. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल और बीजू जनता दल ने ओडिशा में 33 प्रतिशत महिला उम्मीदवार उतारे.

 नेताओं के लिए उम्र का कोई मायने नहीं

नामांकन के समय दाखिल किए जाने वाले शपथपत्र में संपत्ति, आपराधिक मामले, शैक्षिक योग्यता आदि के साथ-साथ ऐसी कई जानकारियां होती हैं, जो हर उम्मीदवार को देनी होती हैं. शपथपत्र के हवाले से अक्सर कई तरह के विवाद सामने आ जाते हंै, जैसे मौजूद लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों के तीर चलाए गए. कई बार शपथपत्रों में कुछ हास्यास्पद चीजें भी सामने आ जाती हैं. मिसाल के तौर पर 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव की आयु उनके बड़े भाई तेज प्रताप से अधिक दिखाई गई थी. दरअसल, इस तरह की असहज स्थिति से केवल तेजस्वी और तेज प्रताप ही नहीं, बल्कि कई और भी नाम हैं, जो गुजर चुके हैं. ऐसे कई नाम हैं, जिनकी जन्मतिथि एक चुनाव में कुछ और दूसरे चुनाव में कुछ और हो जाती है. उदाहरण के लिए धनबाद (झारखंड) से कांग्रेस के उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद को लेते हैं, जो पहले दरभंगा से भाजपा के सांसद थे. उन्होंने 2009 में अपनी आयु 48 वर्ष बताई थी, जो 2014 में 55 वर्ष हो गई थी. यानी 2009 से 2014 के पांच वर्षों में उन्होंने सात वर्षों का सफर तय किया था. इस बार उन्होंने अपनी आयु 58 वर्ष बताई है. यानी 2014 से 2019 के बीच उनकी आयु में केवल तीन साल का इजाफा हुआ है.

इसी तरह बांका (बिहार) से राजद के उम्मीदवार जय प्रकाश नारायण यादव का मामला है. 2004 में उनकी आयु 54 वर्ष थी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी उम्र 60 वर्ष बताई गई. यानी 10 वर्षों में उनकी आयु में सिर्फ छह साल का इजाफा हुआ. इस बार उनकी आयु 65 वर्ष बताई गई है. वर्तमान में केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा सांसद राधा मोहन सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला है. 2004 में उनकी उम्र 56 वर्ष थी और 2009 में 59 वर्ष. इस बार उन्होंने अपनी आयु लगभग69 वर्ष बताई है. अगर दो या उससे अधिक बार चुनाव लड़ चुके सभी उम्मीदवारों का जायजा लिया जाए, तो ऐसे कई मामले सामने आएंगे. यह स्थिति न सिर्फ हास्यास्पद है, बल्कि ऐसी विसंगतियों के चलते शपथपत्र दाखिल करने का मकसद ही समाप्त हो जाता है. शपथपत्र इसलिए दाखिल कराया जाता है, ताकि वोटर अपने उम्मीदवारों से संबंधित सही जानकारी हासिल कर सकें और उसी आधार पर अपना वोट दे सकें. सवाल यह भी उठता है कि उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग को दिए जाने वाले शपथपत्र में इस तरह की गलत बयानी क्यों की जाती है

पांचवां चरण

बाहुबल

लोकसभा चुनाव 2019 के पांचवें चरण में सात राज्यों के कुल 51 लोकसभा क्षेत्रों के लिए 6 मई को मतदान कराए गए. इन 51 लोकसभा क्षेत्रों में 674 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा, जिनमें 149 उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों और 31 क्षेत्रीय दलों के हैं. इसके अलावा 236 उम्मीदवार गैर मान्यता प्राप्त दलों से हैं. 252 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं. नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने इन 674 उम्मीदवारों में से 668 के शपथपत्रों का विश्लेषण करके उनकी पृष्ठभूमि की जांच की.

सबसे पहले इन उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की बात करते हैं. राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की बढ़ती संख्या आज चिंता का कारण बनी हुई है. इसलिए जनता को भी उन नेताओं के बारे में जानने का पूरा अधिकार है, जिन पर किसी भी तरह का मुकदमा चल रहा है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 668 उम्मीदवारों में से 126 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. देखा जाए, तो पांचवें चरण में 51 लोकसभा क्षेत्रों में हुए चुनाव में 19 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इन आपराधिक मामलों के अलावा इसमें एक अन्य श्रेणी का भी विश्लेषण किया गया है, जिसमें गंभीर आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी देने की कोशिश की गई है. इस चरण में चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों में से 95 यानी 14 प्रतिशत उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 6 उम्मीदवारों को दोषी करार दिया जा चुका है. इस चरण में संसद पहुंचने की कोशिश में लगे 668 उम्मीदवारों में से तीन पर हत्या और 21 पर हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं. पांच उम्मीदवारों पर अपहरण का मामला भी दर्ज है. देखा जाए, तो हर पार्टी के नेता प्रत्येक मंच पर महिला सुरक्षा की बात करते हैं. हर पार्टी महिलाओं को सम्मान दिलाने और उनके अधिकारों को सुरक्षित रखने का वादा करती है, लेकिन, अगर चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के बारे में बात करें, तो कानून बनाने वाली इस संस्था में वे लोग भी जाने की तैयारी कर रहे हैं, जिन पर महिलाओं के ऊपर अत्याचार करने के मामले दर्ज हैं. पांचवें चरण में चुनाव लडऩे वालों में नौ उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन पर महिलाओं के ऊपर अत्याचार करने का मामला दर्ज है.

राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या की बात तो हर पार्टी करती है और राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने का वादा भी करती है, लेकिन इन पार्टियों की कथनी और करनी में बहुत अंतर है. पांचवें चरण में भाजपा ने 48 उम्मीदवार उतारे. भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करने वाली इस पार्टी के 48 में से 22 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. पांचवें चरण में चुनाव लडऩे वाले भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों में से 46 प्रतिशत पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. यही नहीं, भाजपा के 19 यानी 40 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. अपराधियों को टिकट देने में कांग्रेस भी किसी से पीछे नहीं है. देश में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता पर काबिज रहने वाली इस पार्टी ने पांचवें चरण में 45 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 14 यानी 31 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि 13 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की भी यही स्थिति है. इस चरण में बहुजन समाज पार्टी ने 33 उम्मीदवार उतारे, जबकि समाजवादी पार्टी ने नौ उम्मीदवार खड़े किए. बसपा के 33 में से 9 उम्मीदवारों यानी 27 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले और सात उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसी तरह समाजवादी पार्टी के सात यानी 78 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके अलावा 252 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 26 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

धनबल

राजनीति में बाहुबल के साथ-साथ धनबल भी गंभीर चिंता का विषय है. पांचवें चरण में भी धनवान उम्मीदवारों की संख्या काफी अधिक रही. इस चरण के 60 उम्मीदवारों की संपत्ति जहां पांच करोड़ रुपये से अधिक है, वहीं 61 उम्मीदवारों की संपत्ति 2 करोड़ से लेकर पांच करोड़ रुपये के बीच है. पचास लाख से दो करोड़ रुपये की संपत्ति वाले 142 उम्मीदवार इस चरण में चुनाव लड़ रहे हैं, तो 194 उम्मीदवारों की संपत्ति दस लाख से पचास लाख रुपये के बीच है. पांचवें चरण में 211 उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने अपनी घोषित संपत्ति दस लाख रुपये से कम बताई. देखा जाए, तो पांचवें चरण में 184 यानी 28 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. करोड़पतियों को टिकट देने के मामले में क्षेत्रीय पार्टियों ने राष्ट्रीय पार्टियों को पीछे छोड़ दिया है. सपा के 89 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. हालांकि, इस चरण में बसपा के 52 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. भाजपा भी किसी से पीछे नहीं है. उसके 48 में से 38 उम्मीदवार करोड़पति हैं. इस चरण में भाजपा के 79 प्रतिशत उम्मीदवारों के पास एक करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है. करोड़पतियों को टिकट देने में कांग्रेस ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. कांग्रेस के 45 में से 32 उम्मीदवार करोड़पति हैं. देखा जाए, तो पांचवें चरण में कांग्रेस के 71 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. पार्टियों की बात छोड़ दें, तो आजकल अमीरों के भीतर राजनीति में आने की बेचैनी का पता इसी बात से लगता है कि केवल 51 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे वाले 252 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 31 करोड़पति हैं.

शैक्षणिक स्थिति

पांचवें चरण के चुनाव में 40 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता 5वीं से 12वीं के बीच घोषित की है. वहीं 52 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शिक्षा स्नातक या अधिक बताई. 43 उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता साक्षर और 6 ने खुद को निरक्षर बताया. इस चरण में सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं चुनाव मैदान में हैं.

छठा चरण

बाहुबल

राजनीति में धनबल और बाहुबल का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है. हमें अपने जनप्रतिनिधियों के बारे में ही नहीं, बल्कि चुनाव लडऩे वाले लोगों के बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताकि हम अपने वोट का सही इस्तेमाल कर सकें. साल 2019 का लोकसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न कराया गया. इसके हर चरणों में चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में जांच करना लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है. छठे चरण के चुनाव में सात राज्यों के कुल 59 लोकसभा क्षेत्रों के लिए 12 मई को मतदान कराए गए. इस चरण में 797 उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 174 उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों एवं 64 उम्मीदवार राज्य स्तरीय दलों के हैं. इसके अलावा गैर मान्यता प्राप्त दलों के 422 उम्मीदवारों के साथ-साथ 252 निर्दलीयों ने भी अपनी किस्मत आजमाई. एडीआर ने इस चरण में चुनाव लडऩे वाले 979 में से 967 उम्मीदवारों के शपथपत्रों का विश्लेषण करके उनकी पृष्ठभूमि की जांच की. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 189 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं यानी छठे चरण में हुए चुनाव में भाग लेने वाले 19 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं 146 यानी 15 प्रतिशत उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 967 उम्मीदवारों में से चार को दोषी करार दिया जा चुका है, जबकि 6 के खिलाफ हत्या और 25 के खिलाफ हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं. इसके अलावा पांच उम्मीदवारों पर अपहरण के मामले भी दर्ज हैं. इस चरण के 967 उम्मीदवारों में से 21 के खिलाफ महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित मामले दर्ज हैं.

जहां तक राजनीतिक दलों की बात है, तो अपराधियों को टिकट देने की होड़ मची है. हर पार्टी केवल अपनी सीटें बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ती दिखाई दे रही है. राजनीति में सदाचार लाने का सपना टूटता नजर आ रहा है. राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या के प्रति चिंता तो सभी जताते हैं, लेकिन जब उन्हें टिकट देने की बारी आती है, तो पार्टियों को केवल जीत का समीकरण दिखाई पड़ता है. छठे चरण में भाजपा ने 54 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 26 के खिलाफ आपराधिक, जबकि 18 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. अपराधियों को टिकट देने में कांग्रेस भी किसी से पीछे नहीं है. देश में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता पर काबिज रहने वाली इस पार्टी ने छठे चरण के लिए 46 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 20 के खिलाफ आपराधिक, तो 12 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. क्षेत्रीय दलों की स्थिति भी कमोबेश यही है. बसपा ने इस चरण में 49 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 19 पर आपराधिक और 17 पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसी तरह शिवसेना ने 16 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से पांच पर आपराधिक और पांच पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

धनबल

भारत में लोकतंत्र को धनतंत्र में बदलने की कोशिश की जाती है और चुनाव के समय सैकड़ों करोड़ रुपये जब्त किए जाते हैं. छठे चरण में भी धनवान उम्मीदवारों की संख्या काफी अधिक है. इस चरण के 109 उम्मीदवारों की संपत्ति पांच करोड़ रुपये से अधिक है, वहीं 107 उम्मीदवारों की संपत्ति 2 करोड़ से पांच करोड़ रुपये के बीच है. पचास लाख से दो करोड़ रुपये की संपत्ति वाले 219 उम्मीदवार इस चरण में चुनाव लड़ रहे हैं, तो 275 उम्मीदवारों की संपत्ति दस लाख से पचास लाख रुपये के बीच है. 257 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति दस लाख रुपये से कम बताई है. आंकड़ों पर गौर करें, तो छठे चरण के 311 यानी 32 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. करोड़पतियों को टिकट देने में भाजपा सबसे आगे है. उसके 46 में से 46 उम्मीदवार करोड़पति हैं. धनवानों को टिकट देने में कांग्रेस भी भाजपा के आसपास दिखाई पड़ती है. इस चरण में कांग्रेस ने 46 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 37 (80 प्रतिशत) करोड़पति हैं. क्षेत्रीय दल भी किसी से पीछे नहीं हैं. दलितों की राजनीति करने वाली मायावती की बसपा के 66 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से राजनीति में अपने पैर जमाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी करोड़पति उम्मीदवारों को तरजीह दी है. इस चरण में आम आदमी पार्टी ने अपने 12 उम्मीदवार खड़े किए, जिनमें से 06 करोड़पति हैं. निर्दलीय उम्मीदवारों में भी करोड़पतियों की संख्या कम नहीं है. इस चरण में चुनाव मैदान में उतरने वाले 307 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 71 करोड़पति हैं. इस चरण के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 3.41 करोड़ रुपये रही. छठे चरण में मध्य प्रदेश के गुना से चुनाव लडऩे वाले कांग्रेस के उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया की कुल संपत्ति जहां 374 करोड़ रुपये है, वहीं पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे वाले क्रिकेटर एवं भाजपा के उम्मीदवार गौतम गंभीर की कुल संपत्ति 147 करोड़ रुपये है. इस चरण में भाग लेने वाले भाजपा के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति जहां 12.70 करोड़ रुपये है, वहीं कांग्रेस के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 22.37 करोड़ रुपये है.

शैक्षणिक स्थिति

छठे चरण के चुनाव में 4१ प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता 5वीं से 12वीं के बीच घोषित की है. वहीं 5३ प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी शिक्षा स्नातक या अधिक बताई. ३५ उम्मीदवारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता साक्षर और १० ने खुद को निरक्षर बताया. इस चरण में सिर्फ ९ प्रतिशत महिलाएं चुनाव मैदान में हैं.

 निष्‍कर्ष

पिछले कई दशकों से राजनीति के अपराधीकरण पर खूब चर्चा होती रही है. इस मुद्दे पर होने वाली चर्चाओं में हर राजनीतिक दल ने खुलकर हिस्सा लिया. यही नहीं, मीडिया भी इसके लिए अभियान चलाता है, लेकिन एडीआर की ताजा रिपोर्ट बताती है कि इस हम्माम में सभी नंगे हंै. चुनाव में उतरे सभी राजनीतिक दल विकास एवं सुशासन को अपना चुनावी मुद्दा बताते हैं. अपराध भी उनका एक बड़ा चुनावी मुद्दा होता है. लेकिन, एडीआर द्वारा जारी आंकड़े कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं. दरअसल, दागी और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने में कोई भी दल पीछे नहीं है. सभी दलों के लिए किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना हर तरह की नैतिकता से ऊपर है. अब सवाल यह उठता है कि जब हर दल राजनीति के अपराधीकरण को एक अहम मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतरता है, तो फिर वह आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को मैदान में क्यों उतारता है? हां, अगर कोई आपराधिक छवि वाला शख्स निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े तो और बात है. बहरहाल, राजनीतिक दल चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान इस मुद्दे को इतना जोर-शोर से उठाते हैं कि उसे देखते हुए कम से कम यह उम्मीद रखी जा सकती है कि सभी नहीं, तो कम से कम बड़े दल आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट न देें. लेकिन, सच्चाई इसके ठीक उलट है. चुनाव में राजनीतिक दलों को कामयाबी तक पहुंचाने में जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है. चूंकि आम कार्यकर्ता गरीब होता है और चुनाव में खर्च करने के लिए उसके पास पैसे नहीं होते, इसलिए वह जमीन से जुड़ा होने के बावजूद चुनाव नहीं लड़ पाता. राजनीतिक दलों पर करोड़पतियों से पैसे लेकर टिकट देने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं. यह चुनाव भी ऐसे आरोपों से मुक्त नहीं है. इसमें छोटे-बड़े सभी दल शामिल हैं.