सुनील वर्मा
नई दिल्ली। मोदी सरकार अपने तीन साल पूरे होने पर अपनी तमाम स्कीम्स की सफलता को गिना रही है। ‘स्टार्टअप इंडिया’ भी इन स्कीम्स में शामिल है। लेकिन हैरानी की बात है कि जिस स्टार्टअप इंडिया के लिए 2025 तक 10 हजार करोड़ रूपये खर्च का प्रावधान किया था उसे अब तक सरकार की ओर से केवल 623.50 करोड़ ही मिले हैं। जिसके चलते निवेश्‍कों का लगातार हो रहे नुकसान और फंड के चलते स्‍टार्टअप इंडिया की हालत बेहद खराब चल रही है।

फंड की कमी से गिरता ग्राफ
फंड की कमी से गिरता ग्राफ

बता दें कि सरकार की व्यापक पहल के चलते वर्ष 2015 में स्टार्टअप की ओर निवेशक तेजी से आकर्षित हुए और टेक स्टार्टअप्स को बड़ी संख्या में निवेशक भी मिले, लेकिन उसके बाद से इस ओर निवेशकों का आकर्षण धीरे-धीरे कम होता गया।
‘वीसीसीएज’ ने वर्ष 2017 की पहली तिमाही में स्टार्टअप की दशा-दिशा पर एक रिपोर्ट जारी की है, रिपोर्ट के मुताबिक जैसे-जैसे भारतीय स्टार्टअप सेक्टर परिपक्व होता जा रहा है, उद्यमियों को निवेशकों की तलाश करने में दिक्कतें आ रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017 की पहली तिमाही के दौरान स्टार्टअप डील्स में पिछले वर्ष की इस अवधि के मुकाबले 47.45 फीसदी की कमी आयी है।
जनवरी से मार्च, 2017 की तिमाही में 120 डील्स हुए, जो यह दर्शाता है कि आरंभिक एंजेल और सीड इनवेस्टमेंट का वॉल्यूम करीब आधा हो चुका है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 245 डील्स हुए थे। साथ ही पिछले एक वर्ष के समयांतराल में सीड फंडिंग के जरिये ग्राहकों के आधार में विस्तार और कारोबार के विकास के संदर्भ में होनेवाले डील वैल्यू में भी करीब 65 फीसदी कमी आयी है।
भारत में स्टार्टअप सेक्टर में होने वाली फंडिंग में भी लगातार गिरावट आ रही है। इससे बडे स्टार्टअप्स का नुकसान बढ़ गया अौर उनका मूल्यांकन तेजी से घट गया। डीआईपीपी और सि‍डबी की ओर से जारी रि‍पोर्ट के मुताबि‍क, फाइनेंशि‍यल ईयर 2016-17 के दौरान सरकार की ओर से भी केवल 623.50 करोड़ रुपए का ही फंड मि‍ल पाया है। सि‍डबी की ओर से सेबी रजि‍स्‍टर्ड ऑल्‍टरनेटि‍व इन्‍वेस्‍टमेंट फंड्स (AIFs) को 600 करोड़ रुपए जारी कि‍ए गए हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ इस फंड के बनने के बाद अब तक सरकार ने 623 करोड़ का फंड दिया है। जिन स्टार्टअप को ये फंडिंग दी गई हैं उनकी संख्या मात्र 62 है। एक रिपोर्ट माने तो गुड़गांव में अभी तक एक भी स्टार्टअप शुरू नहीं किया जा सका है। सूत्रों का कहना है कि अपेक्षित मुनाफा न मिलने, परिचालन लागत न निकल पाने और निवेशक के अभाव में स्टार्टअप कंपनियां फंड की कमी से जूझ रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 8 महीनों के दौरान कंपनियों के बंद होने, बिकने या ब्रांडों को खत्म करने, वेतन में देरी, छंटनी और शेयरधारकों की ओर से चेतावनी मिलने जैसे कई मामले सामने आए हैं, जो ई-कॉमर्स की खराब सेहत का संकेत दे रहे हैं।
सॉफ्टवेयर दिग्गज आईबीएम की ताजा रिपोर्ट की माने तो कि भारत में फंड की कमी के चलते 90 फीसदी से ज्यादा स्टार्टअप पहले पांच सालों में ही बंद हो जाते हैं।