नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट व कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन में रार बढ़ती ही जा रही है। उनमें टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कोर्ट की अवमानना मामले में जस्टिस कर्णन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और अदालत से भिड़ गए।
जस्टिस कर्णन ने अदालत से कहा कि काम छीने जाने की वजह से उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया है। इसलिए उन्हें उनका काम लौटाया जाए। लेकिन कोर्ट ने कर्णन की इस मांग को ठुकरा दिया और कहा, अगर मानसिक संतुलन खराब है तो मेडिकल प्रमाणपत्र लाओ तभी मानेंगे। इसके जवाब में कर्णन ने कहा, इसकी जरूरत नहीं है।
कर्णन ने कहा, मैं संवैधानिक पद पर हूं, मेरे घर पुलिस ऐसे गई जैसे कि मैं आतंकवादी, अपराधी या असामाजिक तत्व हूं, मेरी सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को चार सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जस्टिस कर्णन से पूछा कि क्या वह पूर्व में दिए अपने बयान पर कायम रहते हुए कोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगने या फिर इस मामले में जिरह के लिए खुद या अपने वकील को पेश करने को तैयार हैं। क्या जस्टिस कर्णन का पूर्व में दिया बयान नासमझी या भूलवश था।
इस पर एडवोकेट जनरल ने कहा कि इसमें भूल या नासमझी जैसा कुछ होने का सवाल ही नहीं उठता है। जस्टिस कर्णन बखूबी जानते हैं कि वह क्या कह रहे हैं और क्या कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इस मामले में जस्टिस कर्णन नहीं जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए जस्टिस कर्णन को दो और मौके दिए गए थे, लेकिन वह पेश नहीं हो सके थे। इस वजह से कोर्ट ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद शुक्रवार को वह कोर्ट में पेश हुए थे। जस्टिस कर्णन को यह नोटिस मद्रास उच्च न्यायालय के अपने समकक्ष और अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ लगातार आरोप लगाए जाने को लेकर भेजा गया है।
जस्टिस कर्णन ने कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कई जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवमानना मानकर सुनवाई करने का फैसला किया है। जस्टिस सीएस कर्णन पहले मद्रास हाई कोर्ट में ही पदस्थापित थे। वहां उन्होंने जस्टिस संजय कॉल पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था।
जब सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन का तबादला कोलकाता किया तो उन्होंने उस फैसले पर ही रोक लगा कर अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी। हालांकि बाद में माफी मांगते हुए वह कोलकाता चले गए। आमतौर पर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित कराना पड़ता है। इसके लिए दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना जरूरी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले खुद ही सुनवाई का फैसला किया है।