ओपिनयन पोस्ट ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बनाने, रसूखदार लोगों (नेताओं-कारोबारियों) की बोर्ड में दखंलदाजी खत्म करने और क्रिकेट की बेहतरी के लिए जिस लोढ़ा कमेटी का गठन किया और कमेटी की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए जो प्रशासकों की समिति (सीओए) बनाई, वह अपने मकसद में कामयाब होता नहीं दिख रहा है। कुंबले-कोहली विवाद और अब शास्त्री-सीएसी (क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी) विवाद से यह बात पुख्ता होती जा रही है कि सीओए भी बीसीसीआई के पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही है। यानी बीसीसीआई में बदलाव का जो सपना सुप्रीम कोर्ट ने देखा है वह बेमानी ही है। तो क्या बीसीसीआई के काम करने के तरीके में बदलाव मुमकिन नहीं है।

इस बात से सभी वाकिफ हैं कि बीसीसीआई की अंदरूनी राजनीति न सिर्फ बोर्ड रूम तक सीमित है बल्कि इसके असर से टीम इंडिया का ड्रेसिंग रूम भी अछूता नहीं है। न सिर्फ बीसीसीआई के अधिकारी व पदाधिकारी बोर्ड में अपनी पैठ, हनक व रूतबा दिखाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं बल्कि क्रिकेट खिलाड़ी भी टीम इंडिया में चयन से लेकर बाकी तमाम मौकों पर राजनीति और बीसीसीआई अधिकारियों से अपने संबंधों को अपना हथियार बनाते हैं। इन सबके पीछे एक बड़ी वजह है बीसीसीआई के पास अथाह धन का होना। इस वजह से तमाम रसूखदार लोग इस संस्था से किसी न किसी रूप से जुड़े रहना चाहते हैं। चाहे वे नेता हों, कारोबारी हों या फिर पूर्व क्रिकेटर। इस खेल में मजेदार बात यह है कि सभी इसी बात की दुहाई देते हैं कि वे क्रिकेट की भलाई के लिए इससे जुड़े रहना चाहते हैं।

पिछले हफ्ते जब टीम इंडिया के मुख्य कोच का चयन हुआ तो कोच चुने जाने के बाद पूर्व क्रिकेटर रवि शास्त्री ने भी यही बात दोहराई थी कि कुंबले के इस्तीफे के बाद आए संकट को देखते हुए ही उन्होंने इस पद के लिए आवेदन किया था। अब जब उनका चयन हो चुका है तो उन्होंने सपोर्टिंग स्टाफ को लेकर बखेड़ा खड़ा कर रखा है। वे अपने लंगोटिया यार भरत अरुण को टीम इंडिया का गेंदबाजी कोच बनाना चाहते हैं जबकि सीएसी ने जहीर खान को गेंदबाजी कोच नियुक्त किया है। भरत अरुण इससे पहले भी टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच रह चुके हैं। उस समय टीम इंडिया के मैनेजर और डायरेक्टर रवि शास्त्री ही थे। शास्त्री ने ही बीसीसीआई से सिफारिश कर उनकी नियुक्ति करवाई थी।

रवि शास्त्री ने सीएसी की नियुक्ति पर सीओए से संपर्क साधा है। माना जा रहा है कि सीओए कोच के मनमुताबिक सपोर्टिंग स्टॉफ देने की उनकी मांग पर राजी हो गया है। अब इसका सिर्फ औपचारिक ऐलान बाकी रह गया है। गेंदबाजी कोच के रूप में जहीर खान की नियुक्ति पर सीओए अपने रुख से पलट गया है। अब उसका कहना है कि उनकी नियुक्ति नहीं हुई है सिर्फ इसकी सिफारिश की गई है। जबकि बीसीसीआई ने इसका औपचारिक ऐलान किया था और उन्हें सोशल मीडिया पर बधाई भी दी थी। जहीर खान के बारे में शास्त्री की ओर से कहा जा रहा है कि वे सिर्फ 150 दिन के लिए उपलब्ध होंगे। जबकि उन्हें ऐसा कोच चाहिए जो 365 दिन उपलब्ध हो। इस सवाल पर शास्त्री से पूछा जाना चाहिए कि क्या टीम इंडिया साल के 365 दिन क्रिकेट खेलती है या फिर 365 दिन अभ्यास में जुटी रहती है। जहां तक जहीर के उपलब्ध होने की बात है तो शायद यह बात वे भी अच्छे से जानते होंगे कि देसी-विदेशी सीरीज में उनकी मौजूदगी रहेगी तभी उन्हें गेंदबाजी कोच का जिम्मा दिया जाएगा। ऐसे में सीरीज और उससे पहले के अभ्यास मैचों में उनके मौजूद नहीं रहने का कोई सवाल ही नहीं रह जाता।

गांगुली की पसंद को नकार रहे शास्त्री

यह सवाल शास्त्री की ओर से शायद इसलिए उठाया जा रहा है ताकि वे भरत अरुण को गेंदबाजी कोच के रूप में अपने साथ रख सकें जैसा कि वे पहले कर चुके हैं। इसके अलावा यह उनके लिए अपना दबदबा दिखाने और अपनी बात मनवाने का भी एक जरिया बना हुआ है। यह बात जाहिर हो चुकी है कि सीएसी के सदस्य सौरव गांगुली ने ही जहीर खान को गेंदबाजी कोच बनाने की सिफारिश की थी। जहीर खान की एवज में ही गांगुली रवि शास्त्री को मुख्य कोच बनाने को तैयार हुए थे। गांगुली और शास्त्री के बीच तनातनी पिछले साल उस समय जगजाहिर हो गई थी जब शास्त्री की जगह अनिल कुंबले को टीम इंडिया का मुख्य कोच चुना गया था। तब कोच नहीं बन पाने के लिए शास्त्री ने गांगुली को ही जिम्मेदार ठहराया था। गांगुली ने भी इसका करारा जवाब दिया था। उसके बाद से ही दोनों के रिश्ते तल्ख बने हुए हैं। अब शास्त्री को गांगुली से बदला लेने का मौका मिल गया है। शायद यही वजह है कि वे गांगुली की पसंद को मानने को तैयार नहीं हैं और पसंद का गेंदबाजी कोच चाहते हैं।

इससे पहले भी जब टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली का अनिल कुंबले से विवाद हुआ था तो उसकी भी अहम वजह यही थी कि कोहली कोच के रूप में कुंबले को नहीं चाहते थे। पिछले साल जब कुंबले को कोच बनाया गया था तो कोहली ने इसका विरोध किया था मगर तब बीसीसीआई ने कोहली को कुंबले के साथ काम करने के लिए मना लिया था। मगर कोहली-कुंबले विवाद के बाद सीएसी कप्तान की पसंद का कोच चुनने को राजी हो गया था। इसी का नतीजा है कि कोहली की पसंद रहे रवि शास्त्री को मुख्य कोच बनाया गया। मगर अब कोच अपनी पसंद का सपोर्टिंग स्टॉफ चाह रहा है।

तो फिर सीएसी का रोल क्या

ऐसे में सवाल उठता है कि इस सलाहकार समिति को बनाने का मकसद क्या था ? जब उनके फैसले और उनकी सलाह का कोई महत्व ही नहीं है तो फिर इस समिति को बनाया ही क्यों गया? सीएसी में शामिल सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे महान खिलाड़ियों की बेइज्जती क्यों की जा रही है? गेंदबाजी कोच की भूमिका अगर भरत अरुण निभाएंगे तो जहीर का क्या काम रह जाएगा ? बल्लेबाज़ी कोच के तौर पर अगर संजय बांगड़ ही फिट हैं तो फिर राहुल द्रविड़ का क्या रोल होगा ?

इन सवालों का जवाब न बीसीसीआई के पास है और न ही सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण समझ पा रहे हैं कि ये हो क्या रहा है। बीसीसीआई ने जहीर खान और राहुल द्रविड़ के सलाहकार के तौर पर टीम इंडिया से जुड़ने के सीएसी के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। सीओए ने कहा है कि 22 जुलाई को रवि शास्त्री से मिलने के बाद वह इसका फैसला करेंगे कि जहीर खान और राहुल द्रविड़ का रोल क्या होगा। खबरें ये भी हैं कि अगर जहीर और द्रविड़ टीम के साथ जुड़े तब भी उनका इस्तेमाल कैसे और कब करना है इसका फैसला भी शास्त्री करेंगे।

बीसीसीआई के इस रुख की इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कड़ी आलोचना की है। रामचंद्र गुहा ने ट्वीट कर कहा है, ”अनिल कुंबले के साथ शर्मनाक व्यवहार किया गया था। अब उसी तरह से ज़हीर ख़ान और राहुल द्रविड़ के साथ किया जा रहा है। कुंबले, द्रविड़ और ज़हीर ख़ान सच्चे महान खिलाड़ी रहे हैं। इन्हें सार्वजनिक रूप अपमानित नहीं किया जाना चाहिए।” गुहा सीओए में भी थे मगर उन्होंने बीसीसीआई के निर्णयों पर आपत्ति जताते हुए समिति से इस्तीफा दे दिया था।

बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने अपने आखिरी कार्यकाल में विवादों से बचने के लिए टीम इंडिया का मुख्य कोच चुनने के लिए सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण वाली क्रिकेट सलाहकार समिति (सीएसी) का गठन किया था। लेकिन पिछले दो कोच और सहयोगी स्टाफ के चयन में जितना विवाद हुआ, शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ।सीएसी को ही कोच चुनने की पूरी पावर देने की बात कहने वाली बीसीसीआई व सीओए किसी न किसी तरीके से चयन में दखल देती रही। सीओए को बताना चाहिए कि जिस सीएसी को आप सर्वेसर्वा बता रहे थे उसके फैसले को टालने से क्या अब क्रिकेट की बेइज्जती नहीं हो रही। यही नहीं सीओए ने सहयोगी स्टाफ और सलाहकारों पर फैसला लेने के लिए एक समिति का गठन कर दिया। यह समिति कोच रवि शास्त्री से भी सलाह लेगी।

रवि शास्त्री सपोर्ट कोचिंग स्टाफ मामले के हल के लिए बीसीसीआई द्वारा गठित 4 सदस्यीय समिति से मंगलवार को मुलाकात करेंगे। शास्त्री की समिति के साथ होने वाली बैठक के दौरान कई सवालों के जवाब मिलने की संभावना है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या जहीर अपनी भूमिका निभाने को तैयार हैं। इसके अलावा क्या शास्त्री सिर्फ जरूरत के हिसाब से जहीर की सेवाएं लेना चाहते हैं। बैठक में इस बात पर भी चर्चा होने की संभावना है कि पहले ही भारत ए और अंडर 19 की टीम कोचिंग का जिम्मा संभाल रहे द्रविड़ बल्लेबाजी सलाहकार के रूप में कितनी सेवाएं दे पाएंगे। ऐसा भी माना जा रहा है कि शास्त्री ने बीसीसीआई को अभी तक यह नहीं बताया है कि वह द्रविड़ और जहीर की सेवा नहीं लेना चाहते हैं।

सीएसी पहले ही पत्र लिखकर इस बात पर दुख जता चुकी है कि ऐसा दिखाया जा रहा है कि उन्होंने द्रविड़ और जहीर की नियुक्तियां मुख्य कोच शास्त्री पर थोपी थीं। सीएसी के पास इस बात के सुबूत भी हैं कि उन्होंने जहीर व द्रविड़ के चयन को लेकर शास्त्री से बात की थी जिस पर उन्होंने सहमति भी दी थी।

हितों के टकराव में फंस सकते हैं अरुण

अगर भरत अरुण के नाम पर अंतिम मुहर लगती है तो वह हितों के टकराव के मामले में फंस सकते हैं। दरअसल, रविवार को तमिलनाडु प्रीमियर क्रिकेट लीग ने उन्हें वीबी थिरूवल्लूर वीरंस का कोच बनाने का ऐलान कर दिया। ऐसे में टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच बनाए जाने पर वह ठीक वैसे ही हितों के टकराव के मामले में फंस सकते हैं जैसे जूनियर टीम इंडिया के कोच राहुल द्रविड़ फंसे थे। द्रविड़ के मामले में सीओए ने स्पष्ट कर दिया था कि यह साफ-साफ हितों के टकराव का ममाला है। इसके बाद द्रविड़ के आईपीएल की टीम दिल्ली डेयर डेविल्स का साथ छोड़ने के बाद ही उनके उनके साथ बोर्ड ने करार किया था। इसके अलावा भरत अरुण आईपीएल की टीम रॉयल चैलेंजर बेंगलुरु यानी आरसीबी के गेंदबाजी कोच भी हैं। ऐसे में अगर उन्हें रवि शास्त्री के साथ टीम इंड़िया में जुड़ने का मौका मिलता है तो उन्हें आरसीबी का साथ भी छोड़ना होगा।