अब हर साल एक ही बजट पेश होगा वो भी फरवरी की शुरूआत में। सरकार ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने का फैसला किया है। साथ ही ये भी तय हुआ है कि बजट सत्र तय तारीख से पहले शुरु होगा।

सरकार के फैसले के बाद अब रेल बजट अलग से पेश नही होगा, बल्कि वो आम बजट का ही हिस्सा होगा। वित्त मंत्री अरूण जेटली का कहना है कि 1924 में रेल बजट को अलग करने का फैसला विभिन्न जरुरतों के आधार पर हुआ था, लेकिन अब ऐसी जरुरतें नहीं रह गयी है। जेटली ने ये भी कहा कि आज के दिन में रक्षा और परिवहन जैसे कई क्षेत्रों का आकार रेलवे से कहीं बड़ा है, जबकि इनका बजट आम बजट में शामिल किया जाता है।

ओपिनियन पोस्ट से बात करते हुए आर्थिक मामलों के जानकार आलोक पुराणिक ने कहा कि सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। अब अलग से बजट का कोई तर्क नहीं है यह अकारण है। 92 साल पहले रेल बजट बहुत बड़ा हुआ करता था, उसका उस समय महत्व था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

वैसे रेलवे का आकार अब भी काफी बड़ा है। इसमे 13 लाख से ज्यादा कर्मचारी है, यानी ये अपने आप में एक लघु भारत है। इन सब के वावजूद सरकार की दलील है कि रेलवे को आम बजट में मिलाए जाने से बेहतर व्यवस्था बन सकेगी और अनावश्यक के कामकाज से बचा सकेगा। हालांकि इस विलय के बावजूद वित्तीय मामलों में रेलवे को पूरी स्वायतता रहेगी और उनके विभिन्न अधिकारी अपने-अपने स्तर पर वित्तीय अधिकारों का पूरी तरह से इस्तेमाल कर सकेंगे। यही नहीं रेलवे के खर्चें उसी के संसाधन के जरिए पूरी किए जाएंगे।

 रेलवे को एक फायदा ये भी है कि उसे डिविडेंड नहीं देना होगा, यानी हर साल उसे करीब 10 हजार करोड़ रुपये का फायदा होगा।