रियो डी जेनेरियो। देवेंद्र झाझरिया ने अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए जेवलिन थ्रो का स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने 63.7 मीटर दूर जेवलिन फेंककर नया रिकॉर्ड बनाया। यह उनका दूसरा स्वर्ण पदक है। इससे पहले उन्होंने 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में 62.15 मीटर दूर जेवलिन फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया था। रियो पैरालिंपिक में भारत का यह दूसरा स्वर्ण पदक है। इससे पहले मरियप्पन थंगावेलु ने पुरुषों के हाई जंप मुकाबले में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। अब रियो पैरालिंपिक में भारत के चार पदक हो गए हैं। भारत की दीपा मलिक ने गोला फेंक में रजत और वरुण भाटी ने हाई जंप में कांस्य पदक जीता है।
देवेन्द्र के अलावा एक अन्य एथलीट रिंकू सिंह जेवलिन थ्रो में पांचवें स्थान पर रहे। भारत की ओर से जेवलिन थ्रो में हिस्सा लेने के लिए तीन एथलीट गए थे। इनमें से तीसरे खिलाड़ी सुंदर सिंह गुर्जर से भी पदक की बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन वे इवेंट के लिए समय पर स्टेडियम ही नहीं पहुंच पाए।
पैरालिंपिक के भारतीय हीरो देवेंद्र की झोली में पहले से कई उपलब्धियां हैं। उनका जन्म राजस्थान के चुरु जिले में एक साधारण परिवार में हुआ था। आठ साल की उम्र में एक पेड़ पर चढ़ते समय उनका हाथ बिजली के तार से छू गया था जिसकी वजह से उन्हें अपना बायां हाथ खोना पड़ा। उनकी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन 1995 में तब आया जब उन्होंने स्कूली पैरा-एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। 1997 में स्कूली प्रतियोगिताओं में देवेंद्र के प्रदर्शन को देखकर उनके कोच रिपुदमन सिंह ने खेल को गंभीरता से लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
देवेंद्र ने अपना अतंरराष्ट्रीय करियर 2002 में पुसान (दक्षिण कोरिया) में हुए एशियाई खेलों से शुरू किया। यहां भी उन्होंने गोल्ड जीता था। उन्होंने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक 2004 में एथेंस में हुए ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक में जीता। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जेवलिन थ्रो को 2008 और 2012 ओलंपिक में नहीं रखा गया था। इसलिए देवेंद्र दोनों ओलंपिक में भाग नहीं ले पाए थे। 2004 में हुए ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बाद अब उन्होंने 12 साल बाद फिर से गोल्ड जीता है। देवेंद्र इस वक्त वर्ल्ड रैंकिग में तीसरे स्थान पर हैं।