पद्मावती- बहस के केन्द्र में ढेरों सवाल

फ्रांसीसी लेखक स्तांधाल ने कभी प्रसंगवश टिप्पणी की थी कि, ‘साहित्यिक कृतियों में राजनीति कुछ ऐसी ही है, जैसे संगीत समारोह में गोली चलने की आवाज। यह क्रूर बात है लेकिन इससे किनारा करना मुमकिन नहीं…..।’ फिल्म निर्माण विधा में भी यह यथास्थिति में मौजूद है। यही वजह है कि फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर सारे सवाल बहस के केंद्र में हैं। इसी की परिणति है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी यह कहते हुए पद्मावती पर उबाल को राजनीतिक कवच पहना दिया कि, ‘फिल्म का प्रदर्शन विवाद का हल किए बिना न किया जाए। उन्होंने इस आशय का पत्र केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री और सेंसर बोर्ड को भी लिखा है कि, ‘जनभावना को देखते हुए इतिहास और मान मर्यादा के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। फिल्म को सर्टिफिकेट दिए बगैर सेंसर बोर्ड ने अगर बैरंग लौटाया है तो बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी दो बातों को लेकर खफा हैं। पहली प्रिंट के साथ डिसक्लेमर का दस्तावेज संलग्न नहीं था कि फिल्म काल्पनिक है अथवा ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर निर्मित है? दूसरी-सेंसर बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट जारी किए बगैर फिल्म की स्क्रीनिंग क्यों की गई? इस भूल को फिल्म के निर्माता-निर्देशक संजय भंसाली भी मानते हैं। दरअसल, प्रोड्यूसरों ने फिल्‍म की ‘प्राइवेट स्‍क्रीनिंग’ रखी थी जिसमें देश के कुछ बड़े पत्रकारों को शामिल किया गया। फिल्‍म बनाने के बाद निर्माताओं को सबसे पहले केंद्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंसर बोर्ड के पास एक आवेदन भेजना पड़ता है। इसके बाद सेंसर बोर्ड के कुछ सदस्‍य फिल्‍म को अकेले देखते हैं। बोर्ड की अनुमति के बिना निर्माताओं को यह अधिकार नहीं होता कि वे फिल्‍म को कहीं भी दिखा सकें। पद्मावती को लेकर भंसाली ने यहीं गलती कर दी। उन्‍होंने नियमों का उल्‍लंघन कर पद्मावती की स्‍पेशल स्‍क्रीनिंग रख दी, जिससे सेंसर बोर्ड प्रमुख प्रसून जोशी नाराज हो गए।

बोर्ड की इस आपत्ति ने भंसाली को विरोधियों के खिलाफ आयुध भी थमा दिया है, जो इस बात पर अड़े हुए हैं कि, ‘फिल्म का प्रदर्शन तभी करने दिया जाएगा, जब उनके सामने इसकी स्क्रीनिंग की जाएगी।’ रजवाड़ों और राजपूत संगठनों के विरोध की आंच में झुलसते भंसाली को अगर किसी ने ठंडे छींटे मारे हैं तो वो इकलौता बूंदी राजपरिवार है। राजपरिवार के बलभद्रसिंह और वंशवर्द्धन सिंह का कहना है कि, ‘विरोध करने वाले अपनी राजनीति चमका रहे हैं।’ बलभद्र सिंह का कहना है कि, ‘फिल्म पद्मावती को लेकर तोड़-फोड़ राजपूत गरिमा के खिलाफ और कायराना हरकत है। उनके पास विरोध करने का कोई लॉजिक नहीं है। उनकी यह शाश्वत प्रतिक्रिया उन लोगों के लिए है जो प्रिज्म के हर कोण को देखने की कूबत रखते हैं।’ उधर, वरिष्ठ भाजपा नेता व राज्यसभा सदस्य सुब्रहमण्यम स्वामी ने फिल्म पद्मावती की फंडिग की जांच की मांग करते हुए कहा है कि, ‘इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश है। उन्होंने आरोप लगाया है कि, ‘हिन्दुओं को बदनाम करने और भारतीय महिलाओं की छवि बिगड़ने के लिए फिल्म के लिए दुबई से पैसे भेजे गए हैं।’

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