एनआरसी अद्यतन पर घमासान

गुलाम चिश्ती।

इन दिनों सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) अद्यतन का काम तेजी से चल रहा है। यह असम समझौते का एक हिस्सा है। इसके पूरा होने से राज्य में 25 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों की समस्या के समाधान में मदद मिलेगी। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अखिल असम छात्र संघ (आसू) के साथ ऐेतिहासिक असम समझौता किया था। मगर यह दुर्भाग्य है कि विदेशी समस्या के समझौते के 27 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक समझौते में शामिल सभी बिंदुओं का क्रियान्वयन नहीं हुआ। इसके विरोध में लगातार कई वर्षों से आसू स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या से लेकर दूसरे दिन सुबह तक प्रदर्शन करता है। वैसे तो एनआरसी अद्यतन को लेकर गतिविधियां बीते दो-तीन वर्ष पहले ही शुरू हो गई थीं मगर इसमें तेजी वर्ष 2015 से आई।

इन दिनों राज्य में कई दशकों से रहने वाले हिंदीभाषियों, नेपालियों और मूल रूप से अन्य राज्यों से आए लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि उन्हें राज्य के मूल लोगों की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा है। उन्हें भय है कि बाद में उनके साथ भेदभाव बरता जाएगा और उनकी नागरिकता दोयम दर्जे की मानी जाएगी। यह विवाद तब शुरू हुआ जब राज्य में सैकड़ों वर्ष पहले विभिन्न राज्यों से आए चाय समुदाय के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर कर मांग की कि उन्हें राज्य का मूल निवासी मानते हुए एनआरसी में उनके नाम के आगे मूल निवासी लिखा जाए। कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद तेजपुर के सांसद रामप्रसाद शर्मा ने लोकसभा में इस मामले को उठाते हुए राज्य में रहने वाले नेपाली समुदाय के लोगों को भी मूल निवासी की श्रेणी में रखने की मांग की। बाद में हिंदीभाषी समुदाय के बीच भी इसे लेकर काफी सक्रियता देखी गई। अखिल असम भोजपुरी परिषद और सरकार की ओर से गठित हिंदीभाषी विकास परिषद के अध्यक्ष परशुराम दुबे इस मामले को लेकर लगातार आंदोलनरत हैं। वे राज्य भर में बैठकें आयोजित कर हिंदीभाषी समाज को संगठित कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे पूर्वज सैकड़ों वर्ष पहले असम में आकर बस गए थे। हम असम की सभ्यता व संस्कृति में पूरी तरह रच बस गए हैं। ऐसे में हमें मूल निवासी की श्रेणी से बाहर क्यों किया जा रहा है। यदि हमारी मांग नहीं मांगी गई तो हम अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। इसके अलावा अन्य कई हिंदीभाषी संगठन खुद को मूल श्रेणी में नहीं रखे जाने का विरोध कर रहे हैं। बीते दिनों असम विधानसभा के सामने स्थित लास्टगेट पर नेपाली समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।

एनआरसी अद्यतन, असम के संयोजक प्रतीक हाजेला आशंकाओं को दूर करते हुए कहते हैं, ‘एनआरसी में मूल-अमूल नागरिकों के वर्गीकरण के बावजूद नागरिकों के अधिकार बराबर होंगे। अमूल श्रेणी के भारतीय नागरिकों को वे सभी सुविधाएं एवं अधिकार प्राप्त होंगे जो मूल श्रेणी के नागरिकों को प्राप्त हैं। अमूल श्रेणी में आने वाले नागरिक भी चुनाव लड़ सकेंगे।’ उन्होंने कहा कि कानून के अनुसार मूल निवासी को एनआरसी में सम्मिलित किया जाना चाहिए। यह प्रावधान इसलिए बनाया गया कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई मूल निवासी, जिनके पास कोई प्रपत्र नहीं है, को कानून के तहत सुरक्षा प्रदान की जा सके ताकि वह प्रपत्र के अभाव में या अन्य किसी कारण एनआरसी में सम्मिलित होने से वंचित न हो सके।

राज्य के संसदीय कार्य मंत्री चंद्रमोहन पटवारी का कहना है, ‘मूल निवासियों को कोई विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है। साथ ही इससे किसी भी आवेदनकर्ता के साथ प्राथमिकता या विभेद का व्यवहार नहीं किया जाएगा। किसी भी वास्तविक भारतीय नागरिक को उसके धर्म, जाति या समुदाय, भाषा या क्षेत्र के आधार पर एनआरसी में शामिल होने से वंचित नहीं किया जाएगा। वे सभी लोग जिनके नाम एनआरसी में शामिल होंगे उन्हें नागरिकता के सभी समान अधिकार प्राप्त होंगे। चुनाव, नौकरी या अन्य किसी नागरिक अधिकार के मामले में वे बराबर के अधिकारी होंगे। जिन लोगों को मूल निवासी की श्रेणी में रखा गया है, उन्हें कोई अतिरिक्त लाभ नहीं दिया जाएगा। मूल निवासियों से भी चिन्हित प्रमाण पत्र लिए गए हैं।’

प्रतीक हाजेला का कहना है, ‘एनआरसी अद्यतन में अन्य राज्यों से समुचित सहयोग नहीं मिल रहा है। जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों को 2.68 लाख दस्तावेज भेजे गए हैं मगर अब तक करीब पांच हजार दस्तावेज ही जांच होकर वापस आए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार को जितने भी दस्तावेज भेजे गए हैं उनमें से कोई भी जांच प्रक्रिया पूरी कर वापस नहीं आए। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कुल 6.63 करोड़ दस्तावेज प्राप्त हुए हैं। इनमें से पांच लाख दस्तावेज जांच के लिए बाहर भेजे जाने हैं। हाजेला चेतावनी के अंदाज में कहते हैं कि जांच प्रक्रिया में अन्य राज्यों की ओर से सहयोग नहीं मिलने का मामला हम सुप्रीम कोर्ट में उठाएंगे। उनकी वजह से अद्यतन प्रक्रिया तेजी से आगे नहीं बढ़ रही है।’

एनआरसी अद्यतन में लगे एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने ओपिनियन पोस्ट को बताया, ‘त्रिपुरा ने सबसे अच्छा सहयोग दिया है। इस मामले में बिहार की स्थिति सबसे बदतर है। बिहार को 31,380 दस्तावेज भेजे गए हैं मगर उनमें से कोई जांच के बाद वापस नहीं आया। सबसे अधिक 64 हजार 547 दस्तावेज पश्चिम बंगाल भेजे गए हैं जिनमें से 542 ही वापस आए हैं। राजस्थान को 6,509 दस्तावेज भेजे गए हैं। उनमें से 858 ही जांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद वापस आए। उन्होंने कहा कि हमें देशभर से दस्तावेजों की जांच करानी है। इसलिए इसमें समय लग रहा है।’ उन्होंने स्वीकार किया कि पैसे के अभाव में बीते कुछ महीनों में एनआरसी की प्रक्रिया धीमी पड़ गई थी मगर अब उम्मीद है कि बजट पास होने के बाद इसमें और तेजी आएगी। बजट में इसके लिए राशि निर्धारित की गई है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के लिए अब तक 288.18 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं जबकि इसके लिए कुल 793.89 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गई है। उन्होंने कहा कि अब तक 137 फर्जी दस्तावेज पाए गए हैं। मगर उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि इनमें से कितनों के खिलाफ कार्रवाई हुई।

प्रतीक हाजेला ने बताया कि बंगाली हिंदुओं को नागरिकता देने का केंद्र ने हमें कोई आदेश नहीं दिया है। बताते चलें कि राज्य सरकार की ओर से स्पष्ट करने के बावजूद हिंदीभाषी, नेपाली और अन्य राज्यों से आए लोग इन बातों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। गुवाहाटी से प्रकाशित हिंदी दैनिक पूर्वांचल प्रहरी के कार्यकारी संपादक वशिष्ठ नारायण पांडेय का कहना है कि जिन लोगों के पूर्वज सैकड़ों वर्ष पहले असम आए और यहां की मिट्टी में रच-बस गए उन्हें भय है कि बाद में उन्हें सरकारी नौकरी और अन्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ सकता है। इसलिए कई संगठन सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। अब देखना बाकी है कि इस पर कोर्ट क्या फैसला सुनाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *