साहित्य अकादेमी में कार्यक्रम कथासंधि के अंतर्गत प्रख्यात हिंदी एवं मराठी लेखिका मालती जोशी के रचना- पाठ का आयोजन किया। मालती जोशी ने अपनी तीन कहानियाँ-  ‘नो सिंपैथी प्लीज़’, ‘यातना शिविर’ एवं ‘यशोदा माँ’ का पाठ किया। तीनों कहानियाँ आधुनिक परिवारों के धीरे- धीरे छिन्न- भिन्न होते जा रहे संबंधों पर केंद्रित थी। ‘नो सिंपैथी प्लीज’ में नायिका अपनी दीदी के प्रति जीजाजी के बर्ताव को लेकर परेशान है। लेकिन दीदी की मृत्यु के बाद उसके जीजाजी जिस तथ्य से उसे अवगत कराते है उसे जानकर वह अपनी दीदी की बजाय जीजाजी के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है। शेष दो कहानियों के केंद्र में माँ और उसके परिवार के साथ बनते बिगड़ते संबंध थे।

मालती जोशी की पहली कहानी 1971 में ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानियों का संसार भारतीय परिवारों का जीवंत परिवेश है। उनकी विविध विधाओं में 40 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। मराठी में भी 10 कहानी-उंचयसंग्रह, एक गीत- उंचयसंग्रह प्रकाशित हैं। इनकी प्रमुख कहानी संग्रह हैं –पाषाण युग, मध्यांतर, मन न हुए दस बीस, एक घर हो सपनों का, आखिरी शर्त, महकते रिश्ते, बाबुल का घर (कहानी -संग्रह), पटापेक्ष, सहचारिणी, राग विराग (उपन्यास), हार्ले स्ट्रीट (व्यंग्य) मेरा छोटा सा अपनापन (गीत-उसंग्रह), दादी की घड़ी, जीने की राह, सच्चा सिंगार (बालकथा- उंचयसंग्रह) आदि।

मालती की अनेक कहानियों का अनुवाद कई भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं में हुआ है। इनके दो दर्जन से भी अधिक नाटकों का रेडियो एवं टेलीविजन नाट्य रुपांतर हुआ है। मालती जोशी को मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, अक्षर आदित्य सम्मान तथा मध्यप्रदेश के राज्यपाल द्वारा अहिंदी भाषी हिंदी लेखिका का सम्मान सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हैं।

कार्यक्रम के पश्चात श्रोताओं के सवालों का जवाब देते हुए मालती जोशी ने कहा कि वे अपनी कहानियों में नारीवाद या अन्य किसी तरह का नारा बुलंद नहीं करती है, बल्कि पात्रों को यथा संभव स्वाभाविक रूप से चित्रित करती है। परिवार की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि आजकल एकदूसरे के प्रति सहनशीलता कम हो गई है, जिसके कारण हमारे पारिवारिक संबंध छिन्न-भिन्न हो रहें है।श्रोताओं ने उनके द्वारा अपनी कहानियाँ बिना देखें सुनाने पर अचरज व्यक्त करते हुए इसे अविश्वसनीय बताया। बता दें कि मालती जोशी अपनी कहानियाँ कंठस्थ रखती है और बिना पढ़े ही श्रोताओं को सुनाती है।