खासकर बच्चियों से बलात्कार की बढ़ती घटनाओं में कई ऐसी हैं जिनमें बलात्कारी भी किशोर ही है। बारह-तेरह साल की उम्र का। लेकिन दरिंदगी में बड़े-बड़े अपराधी भी जो सोच नहीं सकते उसे वह कर डालता है। हत्या करने में जरा भी नहीं हिचकता। ऐसी ही तमाम बातों पर अजय विद्युत ने बात की जाने माने बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. धीरेद्र कुमार से।
हाल में बलात्कार की घटनाओं में एक नया पैटर्न आया है। अब नाबालिग और उनमें भी ज्यादातर बच्चियां इस हैवानियत का शिकार बनाई जा रही हैं। और कई बार उनकी नृशंस हत्या भी। इसके पीछे कौन कौन से कारक और कारण हो सकते हैं?
एक बात तो यह कि आज ये बातें हाईलाइट ज्यादा हो रही हैं। लेकिन यह नहीं कह सकते कि पहले ऐसी चीजें नहीं थीं या नहीं हुर्इं। हां, यह जरूर है कि पहले के मुकाबले इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। दूसरा, जब हम इसके पीछे की वजहों की बात करते हैं तो उनमें सबसे बड़ी यह है कि डिफरेंट मीडिया तक आम लोगों की, जिसमें सभी आयु वर्ग के लोग शामिल हैं, पहुंच काफी बढ़ गई है। अब जैसे पोर्नाेग्राफी सामग्री है। जिन लोगों के अंदर इस तरह की प्रवृत्ति होती है वे इस तरह की चीजों को ज्यादा देखने लगते हैं और उनको लगता है कि ये सब तो सामान्य बात है इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। अब हम बात करते हैं इसकी कि वे पोर्नाेग्राफी के आदी होने के बाद इस तरह की घटनाएं करते हैं जिसमें बच्चों को शिकार बनाते हैं और फिर हत्या कर दी जाती है। जहां तक बलात्कार के बाद बच्चियों की हत्या की बात है- उसमें वे लोग तो शामिल हैं ही जिनमें इस तरह की प्रवृत्तियां पहले से रहती हैं और वे आपराधिक मानसिकता से ग्रस्त होते हैं- लेकिन कई बार लोग इस डर से भी हत्या कर देते हैं कि कहीं उनके कुकर्म का पता लोगों को न लग जाए। तो बलात्कार के बाद हत्या के पीछे हमें ये दो मुख्य वजहें दिखाई देती हैं।
अभी तक बलात्कारी को मानसिक रूप से अनियंत्रित या फिर कामजनित विकृतियों से ग्रस्त बताया जाता रहा है। लेकिन खासकर बच्चियों को शिकार बनाना क्या यह नहीं बताता कि बलात्कार के पीछे कुछ और मंशा भी हो सकती है?
यह कतई जरूरी नहीं है कि बलात्कार करने वाले के दिमाग में पहले से ही कोई गड़बड़ चल रहा हो और वह कुछ मानसिक विकृतियों से ग्रस्त हो। ये हो सकता है जीवन में विकास के दूसरे पैमानों पर खरे उतरते हैं, अपनी जिंदगी के दूसरे क्षेत्रों में बेहतर कर रहे हों, वहां उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई समस्या न हो- लेकिन केवल ये एक विशेष क्षेत्र ऐसा हो सकता है जहां पर कि वे अलग हैं और दूसरे सामान्य लोगों की तरह व्यवहार नहीं करते। केवल इस विशिष्ट क्षेत्र में वे हम चिकित्सकीय तकनीकी भाषा में कहें तो वे ‘डिस्टर्ब्ड’ हो सकते हैं।
स्टडीज में यह भी देखने को मिलता है कि जो लोग बच्चियों के साथ बलात्कार करते हैं या पीडोफाइल- बच्चों के साथ सेक्स करने के आदी होते हैं- कई बार ऐसे लोगों के साथ भी बचपन में या किसी और समय पर यौन शोषण की घटनाएं हुई होती हैं। तो एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके साथ बचपन में सेक्सुअल एब्यूज हुआ है और अब वे भी वही कर रहे हैं।
अलग अलग जगहें, अलग अलग किस्म के समाज हैं, बोलियां और परिवेश हैं- लेकिन मासूमों के साथ हैवानियत की दास्तान एक जैसी?
संस्कृति भले अलग हो लेकिन इंसान तो सब जगह एक ही है न। इसलिए इस तरह की प्रवृत्ति हर जगह पाई जाती है। हां यह जरूर है कि समाज और संस्कृति का मनुष्य के स्वभाव व क्रियाओं पर असर पड़ता है और उसके अनुसार अलग अलग स्थानों या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले समाजों में ऐसी घटनाओं की दर भिन्न भिन्न हो सकती है। अगर हम महिलाओं के साथ अत्याचार व अपराध की बात करें तो थोड़ी शांत जगहों पर- उदाहरण के लिए गुजरात मान लें- जहां संस्कृति में महिलाओं को आदर देने का भाव होता है, वहां ओवरआॅल क्राइम रेट कम होता है और इसके साथ ही महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की घटनाएं की कम होती हैं। तो कुल मिलाकर किसी जगह पर या समाज में महिलाओं के प्रति कैसा बर्ताव होता है वह यह बात परिभाषित करता है कि वहां महिलाओं के प्रति होने वाले घृणित अपराधों की दर ज्यादा होगी या कम होगी। शून्य किसी भी सोसाइटी में नहीं हो सकती। अगर किसी समाज में महिलाओं को केवल एक वस्तु (आॅब्जेक्ट) के रूप में देखा जाता है तो वहां महिलाओं के साथ, वे किसी भी आयुवर्ग की हो सकती हैं, बलात्कार और ऐसे ही अन्य अपराधों की घटनाएं ज्यादा होंगी। जैसे अगर हम अब से थोड़े समय पहले के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि को देखें तो वे महिलाओं को तो आॅब्जेक्ट की तरह ही ट्रीट करते थे। तो वहां इस प्रकार के अपराध भी ज्यादा थे। अब अपराधों में पहले के मुकाबले गिरावट आई है। पहले दिखता कम था क्योंकि रिपोर्टिंग कम होती थी, लेकिन क्राइम ज्यादा था आज से। आज अपराधों की रिपोर्टिंग बढ़ गई है इसलिए लगता है कि आज ज्यादा घटनाएं हो रही हैं। मैं पहले के बहुत सारे लोगों को देखता हूं जिन्होंने इस तरह की चीजें की हैं और वे फ्री घूम रहे हैं।
पहले भी कई मामलों में नाबालिग बलात्कार और मासूम शिकार की दरिंदगी से हत्या करते रहे हैं। लेकिन अब तो बारह साल की उम्र का बच्चा भी बलात्कारी और दरिंदा बन बैठा है… क्या है वजह?
एक वजह तो यह कि पहले के मुकाबले अब ‘ओेवरआॅल ग्रोथ’ बदली है। पहले बच्चे देर में किशोर होते थे उसके मुकाबले अब बच्चे जल्दी यानी कम उम्र में किशोर हो जा रहे हैं। इसका कारण खानपान, जीवनशैली आदि को माना जा सकता है। दूसरा अब कम उम्र में ही बच्चों की पोर्नाेग्राफी तक पहुंच काफी बढ़ गई है। कई गेम्स हैं जिनमें भयानक स्तर तक क्रूरता और हिंसा है। ऐसा में गलत भावनाओं का एक्सपोजर बढ़ने की पूरी संभावना होती है। आज बच्चे किशोर भले जल्दी हो जा रहे हों, शरीर भले पहले से जल्दी विकसित होने लगता हो, लेकिन किशोरावस्था में मस्तिष्क विनियमन जिसे हम ब्रेन रेगुलेशन कहते हैं उतना विकसित नहीं हो पाता। दूसरी तरफ नेगेटिव चीजों का एक्सपोजर बढ़ गया है। जबकि उसे कंट्रोल करने की क्षमता कम होती है। वह तो जैसे जैसे हम बढ़े होंगे वैसे वैसे ही हमारे मस्तिष्क में कंट्रोल करने की क्षमता का विकास होगा। तो कम कंट्रोल वाली स्थिति में आपने मुझे नेगेटिव चीजों का एक्सपोजर बढ़ा दिया, तो मेरे उसे करने के अवसर क्या होंगे… बढ़ जाएंगे। दूसरी तरफ आज के समाज में पेरेंटल सुपरविजन (माता पिता का पर्यवेक्षण) बहुत कम हो गया है। आज से पंद्रह साल पहले जाएं जब आप किसी छोटे शहर में रहते थे, बच्चे थे, किसी दूसरे क्षेत्र में जाकर कुछ खाने लग गए या देखने लग गए किसी लड़की को- तो आपके घर खबर पहुंच जाती थी कि आप आपका लड़का उस जगह पर खड़ा हुआ उस लड़की को देख रहा था। आज की तारीख में बच्चा कुछ भी करता रहे घर तक कोई खबर ही नहीं पहुंचती। तो पेरेंटल सुपरविजन कम होने से यह होता है कि जब छोटी छोटी एक्ट (घटनाओं) में बच्चे को नहीं रोका जाता, उसे रेगुलेट और सुपरवाइज नहीं किया जाता, तो कल को वह बड़ी घटनाएं करेगा ही। चूंकि छोटे एक्ट पर से रोक हट गई है इसलिए वे उसकी आदत में विकसित हो जाते हैं।
तो आप कहेंगे कि समाज, परिवार और आसपास का वातावरण भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
एक प्वाइंट यह भी है कि हम इन घटनाओं को सोसाइटी के स्तर पर भी देख सकते हैं। हमारी सोसाइटी आज की तारीख में बहुत ज्यादा इंडिविजुअलिस्टिक है… सब मैं-मैं-मैं में पड़े हैं… तो दूसरों के लिए कुछ करने की भावना नहीं है। ऐसे में हम कई बार बगैर जाने बूझे भी किसी गलत काम को अपने सामने होने देते हैं। अगर कहीं किसी लड़की को कोई छेड़ रहा है तो गुजर रहे लोग उधर देखते ही नहीं और आगे चल पड़ते हैं कि यह हमारा मामला नहीं है। तो समाज में बढ़ती व्यक्तिवादी सोच ने भी बलात्कार जैसे अपराधों को बढ़ावा दिया है।
दूसरी तरफ पैरेंटिंग में भी प्रॉब्लम है। हम अपने बच्चे को अपने आवेगों को काबू में रखना सिखा ही नहीं रहे हैं। बच्चे के मुंह से निकलती नहीं और मां बाप उसकी इच्छा पूरी कर देते हैं। बच्चे को लगना चाहिए कि उसके मन में जो तमाम इच्छाएं आती हैं वो जरूरी नहीं कि पूरी ही करनी हैं और जरूरी नहीं कि वे पूरी होंगी ही। उसे स्थिति को समझना और उसके मुताबिक अपने आप को रेगुलेट करना आना चाहिए। ये चीज पेरेंट्स नहीं सिखा रहे हैं अपने बच्चे को। क्योंकि वे यह मान कर चलते हैं मुझे अपने बच्चे को, जो भी बेस्ट है दुनिया में, वह देना है। अगर बच्चा सेल्फ रेगुलेशन कर पाता है और उसके मन में बारह-तेरह साल की उम्र में विचार आया कि चलो सेक्स कर लें, तो वह इस विचार का रेगुलेशन करेगा। यह सेल्फ रेगुलेशन आज की पीढ़ी में बहुत कम है।
ड्रग्स आज की बहुत बड़ी बीमारी है और बच्चे स्कूल से इसे पा सकते हैं। जितने लोग बलात्कार जैसे अपराधों में शामिल पाए जाते हैं उसमें से एक बड़ा तबका ऐसा है जो ड्र्ग्स या किसी न किसी नशे का आदी होता है। ड्रग्स का इस्तेमाल तो बड़े बड़े इंस्टीट्यूट में चल रहा है दबा के।