नोएडा पहुंच तोड़ा मिथक और अंधविश्वास

उमेश सिंह

गोरखनाथ की क्रांतिकारी पंक्तियां हैं ‘अदेखी देखीबा, देखी विचारिबा/ अदिष्टि राखिबा चीया/ आप भजिबा सदगुरू खोजीबा/ जोगपंथ न करिबा हेला।’ अर्थात अदृश्य को देखो (स्वयं को अनुभव करो), देखे हुए के बारे में सोचो, अंधविश्वास पर भरोसा मत करो। सीएम ने नोएडा पहुंचकर नाथपंथ के प्रवर्तक गोरखनाथ की इन क्रांतिकारी पंक्तियों को यथार्थ की धरातल पर उतार दिया। दरअसल पूर्ववर्ती सीएम नोएडा जाने से डरते थे, क्योकि उनकी कुर्सी चली जाती थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ वहां गए और कहा भी कि ‘मुझे नोएडा में बार-बार देखा जाएगा। मैं किसी मिथक और अंधविश्वास को नहीं मानता।’

गोरखनाथ पीठ के मुखिया को कुछ भी गलत न करने, गलत न होने देने की विरासत परंपरा में मिली है। चाहे गलत करने वाले ईश्वर समान उनके गुरु ही क्यों न हों? असम गए गुरु मछंदरनाथ भोग विलास में पड़ गए थे। उनके शिष्य गोरखनाथ ने ही उन्हें चेताया था। ‘जाग मछंदर गोरख आया, चेत मछंदर गोरख आया, चल मछंदर गोरख आया।’ गुरु मत्स्येंद्रनाथ माया छूटी तो वे बेहाल हो गए। सिर चकरा गया। गौर से देखा तो सामने शिष्य खड़ा था। गुरु को अपराधबोध हुआ और वे लज्जित हो गए। गोरखनाथ ने असम से पेशावर, कश्मीर से नेपाल और महाराष्ट्र तक की यात्राएं कीं। उनकी बनाई गई एक दर्जन शाखाएं अब भी जीवित हैं। रावलपिंंडी के रावल या नागनाथ पंथ में ज्यादातर मुस्लिम योगी ही हैं।

गोरखनाथ पीठ सदियों से तार्किकता, सहिष्णुता, जातिपात विहीन, वर्ग विहीन, लोकतांत्रिक मानवतावादी विचार और उनका पालन करने हेतु प्रचार करने वाले मठ के रूप में जानी जाती है। महान संत गुरु गोरखनाथ शिव के अवतार तथा हठयोग, नाथ संप्रदाय एवं वाममार्ग के भी जनक माने जाते हैं। वैदिक देवताओं के प्रति निष्ठा है लेकिन ज्ञान की ठोस भौतिक शर्तों की व्याख्या करने के लिए वेदों और उपनिषदों के अर्थ का वे विस्तार करते हैं। जो लोग मुख्यमंत्री की अतिसक्रियता, अथक मेहनत देख चकित हैं, उन्हें गोरखनाथ की इस वाणी पर चिंतन-मनन जरूर करना चाहिए ‘आसनद्रिध आहारद्रिध जो निद्रादिध होय/ गोरख कहे सुनो रे पुतर, मरे न बुड्ढा होय’ यानि जब आसन की स्थिति सुनिश्चित हो, खाने की प्रक्रिया सही हो और नींद में भी जो जाग्रत हो, वह न बूढ़ा होता है और न ही मरता है। नाथ संप्रदाय ने हिंदू साधु बिरादरी को जाति का त्याग करने और एक समतावादी व्यवस्था बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसमें एक साधु की पृष्ठभूमि और सामाजिक उत्पत्ति अप्रासंगिक थी।

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