जातीय आंकड़ों पर गौर करें, तो गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम, यादव एवं आदिवासी मतदाता पूरी तरह महागठबंधन के पक्ष में एकजुट हैं, जिसमें टूट की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है. वहीं निशिकांत दूबे के पक्ष में ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ एवं वैश्य समाज के अलावा आंशिक रूप से दलितों द्वारा भी वोट करने की संभावना है. दूसरी ओर महागठबंधन के उम्मीदवार प्रदीप यादव के सामने झाविमो के कैडर के साथ-साथ कांग्रेस, झामुमो एवं राजद के समर्पित कार्यकर्ताओं-मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट रखने की चुनौती है.

लोकसभा चुनाव का महासमर चरम पर है. गोड्डा के निवर्तमान सांसद निशिकांत दूबे के सामने इस बार महागठबंधन के उम्मीदवार प्रदीप यादव हैं. यहां 19 मई को मतदान होना है. जहां दोनों उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा दांव पर है. प्रदीप जातिगत समीकरण के आधार पर निशिकांत दूबे पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. इन दोनों के अलावा ऐसा कोई तीसरा उम्मीदवार नहीं है, जो 10 से 20 हजार वोट भी पा सके. निशिकांत द्वारा क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों ने उनके समर्थकों एवं मतदाताओं की संख्या में वृद्धि की है. 2009 एवं 201४ में लगातार दो बार जीत चुके निशिकांत दूबे ने क्षेत्र में सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराते हुए खुद को कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित किया है. लेकिन, इस बार निशिकांत दूबे के चुनाव में सक्रिय कार्यकर्ताओं की टीम में ऐसे चेहरे अधिक हैं, जिनकी छवि उनके ही वार्ड-मुहल्ले में काफी खराब है, जिससे मतदाताओं में गलत संदेश जा रहा है. हालांकि, निशिकांत दूबे को शहर के पूर्व महापौर राज नारायण उर्फ  बबलू खवाड़े, भाजपा के पूर्व विधानसभा उम्मीदवार अभिषेक आनंद झा एवं समाजसेवी सुनील खवाड़े का समर्थन हासिल है, जिससे उन्हें देवघर शहरी क्षेत्र में बहुत बड़ी राहत मिल गई है.  राज नारायण खवाड़े ने मतदाताओं से निशिकांत दूबे के पक्ष में मतदान करने की अपील की है. निशिकांत दूबे एवं उनकी धर्मपत्नी अन्नूकांत का सघन जनसंपर्क अभियान जारी है। अन्नूकांत दूबे खासकर महिला मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में वोट करने के लिए समझाने में काफी सक्रिय रही हैं,जिसका लाभ मिलता दिख रहा है.

जातीय आंकड़ों पर गौर करें, तो गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम, यादव एवं आदिवासी मतदाता पूरी तरह महागठबंधन के पक्ष में एकजुट हैं, जिसमें टूट की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है. वहीं निशिकांत दूबे के पक्ष में ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ एवं वैश्य समाज के अलावा आंशिक रूप से दलितों द्वारा भी वोट करने की संभावना है. दूसरी ओर महागठबंधन के उम्मीदवार प्रदीप यादव के सामने झाविमो के कैडर के साथ-साथ कांग्रेस, झामुमो एवं राजद के समर्पित कार्यकर्ताओं-मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट रखने की चुनौती है. संभवत: पहली बार संथाल परगना में इन सभी दलों के नेताओं की एकजुटता दिख रही है. लेकिन सिर्फ  नेताओं की एकजुटता से चुनाव जीत पाना संभव नहीं है. कभी जानी दुश्मन की तरह एक-दूसरे के खिलाफ  चुनाव प्रचार कर चुके कार्यकर्ता नए माहौल में खुद को कितना ढाल पाते हैं, यह देखने की बात होगी. क्षेत्र में कई तरह की आपसी प्रतिद्वंद्विता एवं सामाजिक दूरियां भी होती हैं, जिन्हें पाटना आसान नहीं है.