अजय विद्युत

किसी के जख्म पर चाहत की पट्टी कौन बांधेगा/ अगर बेटी नहीं होगी तो राखी कौन बांधेगा।

मुनव्वर राना का यह शेर अपनी जगह। देश के कुछ हिस्सों और खासकर राजस्थान में तो ऐसा नजारा आम है कि जिसने अभी जन्म ही लिया है, जिसे हम परमात्मा का अंश मानते हैं, उस नवजात को कोई नालियों में फेंक जाता है तो कोई कचरा पात्र में, कोई झाड़ियों में फेंक आता है तो कोई नदी-नालों के पास… इन नवजातों में अधिकांश बालिकाएं होती हैं।

योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल
योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल

उदयपुर में महेशाश्रम के योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल ने सबसे पहले इस ओर कुछ करने के विचार से पालना योजना की शुरुआत की। उनका कहना था- फेंको मत हमें दो। अस्पताल में आश्रय स्थल का निर्माण किया गया, जिसमें पालना लगाए गए। पालने में नवजात को छोड़ने के दो मिनट बाद घंटी बजती। कोई भी नवजात को उस पालने में छोड़कर इतनी देर में सुरक्षित जा सकता था। चिकित्सक पालने से नवजात को उठा कर उसका उपचार करते। फिर उन्हें नई जिंदगी दी जाती और ईश्वर का स्वरूप मानकर लालन पालन किया जाता।

देवेंद्र अग्रवाल ने बताया, ‘हमारी योजना काफी सफल रही। बाद में सरकार ने उसे अपनाया और वृहद स्तर पर राजस्थान में लागू किया। मुझे इस योजना के संचालन के लिए राज्य सरकार ने सलाहकार नियुक्त किया।’

अग्रवाल ने कहा, ‘एक भी बच्ची का जीवन बचाना जीवन की ऐसी अनमोल घटना है जिसे हम ईश्वर का साक्षात्कार जैसा ही मानते हैं। अभी तक कई बच्चियां इस तरह से बचाई जा चुकी हैं।’

पहले गर्भ में ही बेटियां मार डाली जाती थीं। गर्भ में लिंग जांच पर जबसे डॉक्टरों पर सरकारी शिकंजा कसा है, तब से से नवजात बच्चियों को फेंके जाने की घटनाएं बढ़ी हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में लिंग अनुपात की स्थिति सबसे खराब है। वहां 1000 लड़कों पर 883 लड़कियां हैं। ऐसी बालिकाओं को बचाने के लिए वहां सरकार ने अभी 65 अस्पतालों में पालना योजना चला रखी है।

अस्पताल में पालना स्थल
अस्पताल में पालना स्थल

योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल के महेशाश्रम की समाजसेवा की पंद्रह योजनाओं में सात को सरकार ने अपनाया है। देवेंद्र अग्रवाल कहते हैं, ‘जब सरकार हमारी किसी योजना को लेती है तो हम उसे पूरी व्यवस्था के साथ सरकार के सुपुर्द कर देते हैं। कई बार तो चल-अचल संपत्ति तक देने में हिचक नहीं करते। पालना योजना को ही लीजिए, हमने जितने पालने लगाए थे वे सब सरकार को सौंप दिए। समाज की बेहतरी के लिए हमारा छोटा सा भी योगदान हमें ईश्वर के आशीर्वाद का पात्र बनाता है।’

गुलजार ने कहा- जिंदगी क्या है जानने के लिए/ जिंदा रहना बहुत जरूरी है/ आज तक कोई भी रहा तो नहीं।

हमने जरा भी होश के साथ जिंदगी को समझा होता तो उन बेटियों के जन्मते ही, जिनके बिना धरती पर मनुष्य के बचे रहने की कोई संभावना न रह जाएगी, ऐसा सलूक हरगिज न करते।