अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

हालिया कुछ समय पहले पड़ोसी देश नेपाल के साथ भारत के संबंधों में थोड़ी कड़वाहट आ गई थी। लेकिन वर्षों पुरानी अपनी साझा संस्कृति और संबंधों के मद्देनजर दोनों देश आपसी रिश्तों को सकारात्मक तरीके से सुधारने की कोशिशों में जुटे हैं। यही वजह है कि अब दोनों देशों के संबंध फिर अच्छे होते दिख रहे हैं। दरअसल, भारत की सबसे बड़ी चिंता यही है कि जिन पड़ोसी देशों के साथ उनके संबंध सहज नहीं हैं, वे कहीं भारत-विरोधी गतिविधियों के केंद्र न बन जाएं। मिसाल के तौर पर पाकिस्तान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कुछ समय पहले नेपाल को लेकर भी इस तरह की आशंकाएं पैदा हुई थीं। लेकिन भारत के दौरे पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने भरोसा दिलाया कि नेपाल कभी भी अपनी धरती से भारत-विरोधी गतिविधियां नहीं चलने देगा। इसके अलावा, दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच शिखर वार्ता के बाद सुरक्षा मुद्दों, सड़क निर्माण और मादक पदार्थों की तस्करी नियंत्रित करने सहित आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। गौरतलब है कि भारत और नेपाल अपने राजनयिक संबंधों की सत्तरवीं वर्षगांठ मना रहे हैं।

कुछ समय से नेपाल में चीन जिस तरह की दिलचस्पी दिखा रहा है, उसे देखते हुए इस शिखर वार्ता में रणनीति के स्तर पर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की अहमियत समझी जा सकती है। करीब साल भर पहले यह खबर आई थी कि नेपाल को भारत की ओर से की जाने वाली मदद घट कर आधी रह गई है, जबकि चीन ने अपनी ओर से नेपाल को सहायता के मद में जारी राशि को दोगुना कर दिया था। लेकिन भारत और चीन के बीच जिस तरह की तनातनी चल रही है, उसमें नेपाल पर चीन के प्रभाव को बढ़ने देना एक रणनीतिक भूल होती। इसलिए नेपाल का भरोसा पहले जैसा बहाल करना भारत के लिए जरूरी था। यों नेपाल में अप्रैल 2015 में भयावह भूकम्प के बाद पुनर्निर्माण कार्यों के लिए भारत ने एक अरब डॉलर की राशि देने की घोषणा की थी। अब देउबा के इस दौरे में नेपाल में पचास हजार घरों के पुनर्निर्माण में मदद के लिए आवास अनुदान, शिक्षा, सांस्कृतिक विरासत और स्वास्थ्य क्षेत्र में कई समझौते हुए।