पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग को आंशिक रूप से ठंडा करने के लिए केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती तो कर दी मगर इसमें और कटौती की गुंजाइश अभी बाकी है। हालांकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से अपने वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) और तेल कंपनियों से भी कीमतों की समीक्षा करने को कहा है। माना जा रहा है कि राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर दो रुपये प्रति लीटर वैट की कमी कर सकते हैं और तेल विपणन कंपनियां एक रुपये प्रति लीटर की कटौती कर सकती हैं। इस तरह उपभोक्ताओं को करीब पांच रुपये प्रति लीटर कटौती का फायदा हो सकता है। मगर ऐसा कब तक होगा यह अभी तय नहीं है।

इन सबके बीच बड़ी बात यह है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर सरकार जनता को आधा सच ही बता रही है। एक्साइज ड्यूटी में कटौती करते समय वित्त मंत्रालय ने बताया कि इससे सरकार को एक वर्ष में 26 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। चालू वित्त वर्ष 2017-18 के बाकी छह महीने में यह नुकसान 13 हजार करोड़ रुपये का होगा। मगर पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाते समय सरकारें शायद ही इस बात की जानकारी देती है कि इससे सरकारी खजाने में कितनी बढ़ोतरी होगी। जबकि हकीकत यह है कि पिछले पांच साल में पेट्रोल-डीजल से सरकार की कमाई करीब पांच गुना बढ़ गई है। इसकी वजह इस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी है।

मौजूदा सरकार के तीन साल में तो पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में 126 फीसदी और डीजल में 374 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने राजकाज संभाला तो पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यूटी 9.48 रुपये प्रति लीटर थी जो 2 अक्टूबर, 2017 को बढ़कर 21.48 रुपये पर पहुंच गई थी और बुधवार को 2 रुपए घटने के बाद 19.48 रुपये प्रति लीटर पर रही।

साथ ही एनडीए के राज में डीजल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी भी 3.56 रुपये से बढ़कर 17.33 रुपये प्रति लीटर पहुंच गई थी जो 3 अक्टूबर को कम कर 15.33 रुपये प्रति लीटर की गई। तीन साल से ज़्यादा के कार्यकाल में मोदी सरकार ने 11 बार पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुक्ल बढ़ाया जबकि घटाया महज एक बार।

साल दर साल बढ़ी कमाई

मध्य प्रदेश के समाजसेवी चंद्रशेखर गौड़ के आरटीआई के जवाब में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिस्टम एंड डाटा मेंटेनेंस (डीजीएसडीएम) ने बताया है कि पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स से सरकार की आय लगातार बढ़ी है। डीजीएसडीएम के मुताबिक वित्त वर्ष 2012-13 में सरकार को पेट्रोल-डीजल से 98,602 करोड़ रुपये की आय हुई। वित्त वर्ष 2013-14 में सरकार ने पेट्रोल-डीजल की बदौलत 1,04,163 करोड़ रुपये कमाए। वित्त वर्ष 2014-15 में यह कमाई बढ़कर 1,22,926 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। 2015-16 में पेट्रोल-डीजल से आमदनी 2,03,825 लाख करोड़ रुपये हुई। इसी तरह वित्त वर्ष 2016-17 में सरकार को पेट्रोल-डीजल से 2.67 लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। यानी पिछले पांच साल में यह सरकार की कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गया है।

एक्साइज ड्यूटी में ताजा कटौती के बावजूद सरकार प्रति लीटर पेट्रोल पर आप से  34.37 रुपये की कमाई कर रही है। वहीं, डीजल के मामले में सरकार की जेब में 23.91 रुपये जा रहे हैं। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के सितंबर के आंकड़ो के मुताबिक एक लीटर पेट्रोल तैयार करने में तेल कंपनियों को 30.42 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। 3.24 रुपये का डीलर कमीशन जोड़कर यह कीमत 33.66 रुपये के करीब पहुंच जाती है। इसके बाद उस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से टैक्स लगाया जाता है, जो इसकी कीमत को दिल्ली में 70 रुपये तक और मुंबई में 80 पर पहुंचा देता है।

डीजल की बात करें तो कंपनी को एक लीटर डीजल को तैयार करने में 29.98 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। प्रति लीटर डीजल पर 3 रुपये के करीब डीलर कमीशन होता है। इसके बाद इस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के टैक्स की बदौलत एक लीटर डीजल की कीमत 59 रुपये के करीब पहुंच जाती है।

ऐसे समझें कमाई को 

दिल्ली में बिकने वाले एक लीटर पेट्रोल पर 3 अक्टूबर तक केंद्र सरकार 21.48 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लगाती थी जो अब दो रुपये कम कर दी गई है। वहीं, दिल्ली सरकार 14.89 रुपये का वैट वसूलती है। कंपनी का खर्च और डीलर कमीशन को टैक्स के साथ जोड़ने के बाद यहां एक लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपये पहुंच जाती है। अब जब सरकार ने 2 रुपये एक्साइज ड्यूटी घटा दी है तो प्रति लीटर पेट्रोल से सरकार की कमाई घटकर 34.37 रुपये रह गई है।

वहीं एक लीटर डीजल की बात करें तो इस पर केंद्र सरकार 17.33 रुपये की एक्साइज ड्यूटी वसूलती थी जो अब दो रुपये घट गई है। इसके बाद राज्य सरकार 8.58 वैट वसूलती है। इस तरह कंपनी का खर्च और डीलर कमीशन जोड़ने के बाद एक लीटर डीजल की कीमत दिल्ली में 59 रुपये के करीब पहुंच जाती है।

अंतरराष्ट्रीय कीमत का फायदा ग्राहकों को नहीं

पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले करते समय सरकार ने तर्क दिया था कि इससे ग्राहकों को फायदा होगा। मगर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा क्योंकि जब अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटती हैं तो सरकार इसका फायदा ग्राहकों को देने की बजाय टैक्स बढ़ाकर अपनी झोली भरने लगती है और जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ती है तो सरकार दाम में तेजी की दुहाई देने लगती है और नुकसान का रोना रोने लगती है। यानी इस मोर्चे पर भी ग्राहकों की ही जेब काटी जाती है और उन्हें भ्रमित किया जाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।

पिछले दिनों पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दलील दी थी कि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आने की वजह से ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं मगर वे इस सच्चाई को छुपा गए कि जब कीमतें घटी थी तो इसका फायदा ग्राहकों को क्यों नहीं दिया गया। मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत आधी रह गई है। जून, 2014 में कच्चे तेल की कीमत लगभग 115 डॉलर प्रति बैरल हुआ करती थी जो आज की तारीख में गिर कर 55 डॉलर के करीब रह गई है। इसके बावजूद पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतें जून 2014 के मुकाबले कहीं ज्यादा है। यानी सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर जनता को आधा सच ही बता रही है और आपकी जेब पर डाका डाल कर अपने खजाने भर रही है।