स्वामी प्रसाद मौर्य के बहुजन समाज पार्टी को छोड़ने के साथ वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विपक्ष के पद से भी मुक्त हो गए हैं। मार्च 2012 से विधानसभा के नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य की उंगली खास पहचान बन गई थी। नेता विपक्ष के तौर पर बोलते हुए जब भी मौर्य जी दाएं हाथ की तर्जनी उठा कर बोलते थे तो विधानसभा अध्यक्ष और प्रेस गैलरी में बैठे पत्रकार समझ जाते थे कि विपक्ष सदन से वाक आउट करने वाला है और यही होता भी था। सत्ता पक्ष के लोग भी मुस्कराते थे कि मौर्य जी बस अब बाहर जाने ही वाले हैं। बीस साल तक बहुजन समाज पार्टी में रहने के बाद मौर्य ने मायावती पर ही उंगली उठा दी और बहुजन समाज पार्टी से बाहर हो गए।

मायावती पर उठी मौर्य की उंगली का 2017 के विधानसभा के चुनाव पर गहरा प्रभाव पडेÞगा और बीजेपी, समाजवादी पार्टी दोनों ही मौर्य को अपने पाले में लाना चाहते हैं। लेकिन मौर्य अभी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं। बसपा से इस्तीफे की घोषणा के तुरंत बाद मौर्य समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और संसदीय कार्य मंत्री आजम खान और सपा के प्रदेश प्रभारी  और मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव से मिले। इस मुलाकातों से इस धारणा को बल मिला कि मौर्य सपा में शामिल होने जा रहे हैं। वह पहले भी सपा में रह चुके हैं। बसपा से इस्तीफे की घोषणा करते समय मौर्य ने मायावती पर बीजेपी को मजबूत करने का आरोप लगाकर स्वयं यह संकेत दिया कि वह सपा के पाले में जा सकते हैं। राजनीतिक हलकों में कई महीनों से दबे जबान चर्चा थी कि कुशीनगर की विधानसभा सीट से मायावती ने उनका टिकट काट दिया है और मौर्य की बीजेपी के शीर्ष के नेताओं से मुलाकात हो चुकी है।

लेकिन राजनीतिक जानकारों का मत है कि मौर्य की जो उंगली चार साल से भी अधिक समय तक सपा के ऊपर उठती रही क्या वो उसी पार्टी में जाना पसंद करेंगे? उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मार्च 2017 में होने हैं और मौर्य के पास निर्णय करने का वक़्त है।

अति पिछड़े वर्ग से आते मौर्य जो भी निर्णय करें  उसका अगले विधानसभा चुनाव पर गहरा असर होगा। अति पिछड़े प्रदेश के कुल मतदाता का लगभग चालीस प्रतिशत हैं।

बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए चेहरे की घोषणा नहीं की है। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बना कर इतना तो स्पष्ट संकेत दे ही दिया है कि पार्टी गैर यादव बैकवर्ड जातियों को प्रमुखता देगी। स्वामी प्रसाद मौर्य के एक साथी नेता ने कहा है कि किसी दल में जाने के स्थान पर मौर्य अपना दल बना कर किसी दल से गठबंधन करके भी चुनाव में उतर सकते हैं। अभी सभी संभावनाओं पर विचार हो रहा है।

स्वामी प्रसाद मौर्य जो भी निर्णय करें लेकिन बसपा से अलग होकर उन्होंने 2017 में सत्ता में आने के मायावती के सपने को जोरदार झटका दिया है। 2007-2012 बसपा सरकार में मंत्री रह चुके दद्दू प्रसाद ने कहा कि उत्तर प्रदेश को सपा-बसपा के राज के दुश्चक्र से मुक्ति मिलने का समय आ गया है। बहुजन मुक्ति पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दद्दू प्रसाद ने कहा कि मायावती जिस तरह की राजनीति की आदी हो चुकी हैं उसमें बहुजन समाज यानी दलित और बैकवर्ड जाति का कोई नेता लम्बे समय तक उनके साथ रह ही नहीं सकता। मौर्य ने बसपा से अलग होकर समझदारी का काम किया है। अगर वो देर करते तो कहीं के नहीं रहते।’

उत्तर प्रदेश में बैकवर्ड जाति की राजनीति अब यादव युग या पोस्ट यादव युग में आ चुकी है और अति पिछड़े वर्गों को ज्यादा समय तक राजनीति में प्रभावी भूमिका से वंचित नहीं किया जा सकता। 2001 में बीजेपी की राजनाथ सिंह की सरकार ने सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। कैराना से बीजेपी सांसद और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हुकुम सिंह समिति ने बैकवर्ड कोटे के सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण कोटा को तीन भागों में विभाजित करने की सिफारिश की थी जिसमें अति पिछड़े वर्ग के लिए अलग कोटा निर्धारित किया गया था। उस समय सपा और बसपा दोनों ने सामाजिक न्याय समिति का डटकर विरोध किया था।

मौर्य का बीस साल तक मायावती के साथ का सफर बुधवार को एक झटके में खत्म हो गया। स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ने से पहले उन्हीं की शैली में लंबा पत्र जारी कर उन पर जोरदार हमला किया और कहा कि बहिन जी अपनी राजनीति से आपको बर्खास्त करता हूं।

उन्होंने पत्र में कहा कि मान्यवर कांशीराम की अपील पर दलितों ने अपने वोटों का सौदा बंद कर दिया लेकिन अब दलितों के वोटों का सौदा उनकी उत्तराधिकारी कर रही हैं। 2007 में बसपा की सरकार बनी। लेकिन आपने मान्यवर के नारे को बदल दिया। विधानस•भा चुनाव 2012 के चुनाव में ढाई-तीन साल से तैयारी कर रहे 130 प्रत्याशियों का टिकट ऐन वक्त पर काटा गया और पैसे के बल पर नए प्रत्याशी तय किए गए। इसी का नतीजा था कि 2012 में चुनाव में हम 80 सीटों पर सिमट गए और आपके गोरखधंधे के चलते सपा को सरकार बनाने का मौका मिल गया। आपने अपनी गलतियों से सबक व प्रायश्चित करने के बजाय अपना गुस्सा जोनल कोआर्डिनेटरों के कार्यक्षेत्र में परिवर्तन करके उतारा। यदि आपने उस वक्त चिंतन किया होता तो 2014 के लोकस•भा चुनाव में बसपा को जीरो पर आउट नहीं होना पड़ता। लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन का आधार आर्थिक मजबूती रहा। आपकी पैसे की भूख अब हवस बन गई है। यहां तक कि विधानसभा, सेक्टर, पोलिंग बूथ के कार्यकर्ताओं को भी नहीं बख्शा गया। जिला पंचायत में भी टिकट का आधार यही रहा, जिसका नतीजा यह रहा कि बसपा के घोषित प्रत्याशी हार गए और कार्यकर्ता अपने दम पर लड़कर जीते। मैंने अगस्त, 2014 में आपसे कहा था कि यह परिणाम पैसे लेकर टिकट देने के फलस्वरूप आया है इसलिए 2017 में टिकट देने का आधार बदला जाए। 2017 में जनता ने बसपा सरकार बनने की उम्मीदें पाल रखी हैं कि आपके सीएम बनने के बाद कानून का राज होगा, गुण्डाराज का सफाया होगा लेकिन आप जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर रही हैं। मैंने आपसे कहा था कि 2012 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशियों को टिकट दिया जाए लेकिन सभी सीटों पर पैसों को आधार बना कर प्रत्याशी का चयन दुर्भाग्यपूर्ण है।

बसपा अपने पिछड़ी जाति के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ कर चले जाने के नफा-नुकसान का आकलन करने में जुट गई है। उम्मीद है कि मायावती अगले एक-दो दिन में पिछड़ी जातियों को पार्टी से जोड़ने के काम को गति देने के लिए कोई फैसला ले सकती हैं। सियासी हलकों में मायावती के अगले कदम पर निगाहें लग गई हैं। सूत्रों के अनुसार मौर्य प्रकरण पर बसपा मुखिया ने पार्टी के बड़े नेताओं से बात की। अलबत्ता पार्टी का मानना है कि स्वामी प्रसाद के जाने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला। उलटे पार्टी छोड़ कर या निकाले गये नेताओं की कुछ समय बाद सियासी अहमियत खत्म हो जाती है। पार्टी के पास ऐसे दर्जनों नेताओं के उदाहरण हैं जिनका बसपा से नाता खत्म होने के बाद वे राजनीतिक परिदृश्य से ही बाहर हो गये।

नेताजी से पुराना याराना

बसपा में बगावत का झंडा उठाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ पुराना दोस्ताना रहा है। वे एक दशक से ज्यादा समय तक मुलायम के साथ काम कर चुके हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भूगोल में परास्नातक और एलएलबी करने वाले मौर्य ने 1980 में सक्रिय राजनीति की शुरुआत रालोद से की। तब चौधरी चरण सिंह रालोद के सर्वेसर्वा हुआ करते थे और मुलायम सिंह भी इसी दल में थे। मौर्य को पहली जिम्मेदारी युवा रालोद के संयोजक की मिली।

इसके बाद वे युवा लोकदल के प्रदेश महामंत्री तथा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य, प्रदेश महामंत्री और मुख्य महासचिव रहे। जनता दल के गठन के बाद मौर्य •भी जनता दल के साथ हो लिए और 1991-95 तक प्रदेश महासचिव रहे। मुलायम भी तब जनता दल का हिस्सा थे। आगे चलकर मुलायम ने समाजवादी पार्टी बनाई और मौर्य 1996 में बसपा में शामिल हो गए। इस तरह मौर्य एक दशक से ज्यादा समय तक सपा मुखिया के साथ रह चुके हैं। अब एक बार फिर उनकी नई पारी सपा के साथ शुरू होने के संकेत हैं।

बसपा से मिली बड़ी पहचान

स्वामी प्रसाद मौर्य दो जनवरी 1996 को बसपा में शामिल हुए। बसपा संस्थापक कांशीराम ने उन्हें प्रदेश महासचिव बनाया। इसके बाद वे प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए।

1996 के विधानस•भा चुनाव में मौर्य पहली बार विधायक चुने गए। कुल चार बार वे विधायक चुने गए। जब वे विधायक नहीं थे तो मायावती ने उन्हें एमएलसी बनाया। मायावती जब-जब सरकार में आर्इं मौर्य को मंत्री बनाया। बसपा विपक्ष में रही तो उन्हें पार्टी विधानमंडल दल का नेता और नेता विरोधी दल की जिम्मेदारी सौंपी। मायावती ने उन्हें विधान परिषद में नेता सदन की जिम्मेदारी भी सौंपी। मौर्य 2007 से 2012 तक बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2012 में जब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी वापस ली गई तो राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। 